वर्षा का पूर्वानुमान सुखद

वर्षा का पूर्वानुमान सुखद

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में परिवर्तन हो रहा है। वर्ष-दर-वर्ष प्राकृतिक परिवर्तनशीलता भी हो रही है। देश के कुछ हिस्सों में 1950 के बाद से मानसूनी वर्षा में कमी आई है। देश का करीब 46 फीसदी कार्यबल कृषि क्षेत्र में काम करता है, इसलिए मानसून भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए काफी मायने रखता है। कई राज्यों में बढ़ते तापमान और लू के मद्देनजर, भरपूर बारिश का पूर्वानुमान सुखद है।

1 जून से 30 सितंबर तक पूरे देश में कुल वर्षा का औसत 87 सेंटीमीटर औसत के साथ 106 प्रतिशत रहने की संभावना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार 1971 से 2020 तक के वर्षा के आंकड़ों के अध्ययन में नई दीर्घकालिक औसत और सामान्य शुरुआत की। भारत में अच्छे मानसून से जुड़ी ला नीना की स्थिति अगस्त-सितंबर के बीच विकसित होगी।

आईएमडी के अनुमान और आकलन के अनुसार चूंकि बीते साल सामान्य से कम बारिश हुई थी, लिहाजा इस बार यह संभावना सुखद लग रही है। यदि बारिश सामान्य से अधिक हुई तो मानसून खरीफ की फसलों के लिए लाभकारी हो सकता है। सवाल उठता है कि क्या अब भी कृषि, किसान और उनके जरिए देश की अर्थव्यवस्था मानसून की बारिश के भरोसे है? 

2002 और 2009 में कृषि का उत्पादन घटा था,क्योंकि बारिश कम हुई थी, लेकिन खाद्य सुरक्षा का कोई भी संकट सामने नहीं आया, लिहाजा उन दोनों अनुभवों को भूल जाना चाहिए। आईएमडी जून और जुलाई में बारिश की मात्रा को लेकर मौन है,लेकिन उम्मीद है कि उस समय “तटस्थ स्थिति” (न तो अल नीनो, न ही ला नीना) व्याप्त होगी। दो शुष्क मानसून महीने और आखिरी दो महीनों में मूसलाधार बारिश कृषि के लिए मुफीद हो सकती है,लेकिन इसके परिणामस्वरूप अत्यधिक बाढ़ आने की संभावना है। भारत प्राकृतिक आपदाओं के मामले में  असुरक्षित है।

आईएमडी के वर्तमान संकेत पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए। राज्यों को आपातकालीन योजनाएं बनानी चाहिएं कि बुनियादी ढांचे मजबूत हों, लोगों की निकासी की योजनाएं तैयार रहें, बांधों की संरचनात्मक स्थिरता एवं उनके संकट-संकेतन नेटवर्क की पर्याप्त जांच-परख हो और व्यापक पूर्व-चेतावनी नेटवर्क मौजूद रहे। यदि मौसम विभाग का अनुमान सही साबित हुआ, भूजल को रिचार्ज करने का भी सकारात्मक प्रयास किया जा सकता है।

बारिश के पानी को जमा करने और फिर उसे भूजल के तौर पर इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति हमारे देश में 100 फीसदी नहीं है। शोधकर्ता अभी भी जांच कर रहे हैं कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन से मानसूनी वर्षा की मात्रा कैसे प्रभावित होगी? कृषि की नियति जलवायु-परिवर्तन पर भी आश्रित होगी, इसके आसार दुनियाभर में बनते जा रहे हैं, लिहाजा मानसून की बारिश के पानी को सहेजना सीखें।