लिट्टे की चुनौती

लिट्टे की चुनौती

केंद्र सरकार ने मंगलवार को लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) पर लगे प्रतिबंध को पांच साल के लिए और बढ़ा दिया है। यानि वर्तमान में भी लिट्टे भारत के समक्ष चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। वास्तव में लिट्टे पर प्रतिबंध बढ़ाया जाना जरूरी था क्योंकि वह अपनी विघटनकारी और अलगाववादी गतिविधियों को जारी रखे हुए है। सरकार के मुताबिक इससे भारत की अखंडता और संप्रभुता को खतरा है। 

लिट्टे देश की क्षेत्रीय अखंडता को खतरा पहुंचाने के अलावा लगातार लोगों के बीच अलगाववाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है और अपने लिए भारत में, खासकर तमिलनाडु में समर्थन आधार बढ़ा रहा है। गौरतलब है कि लिट्टे श्रीलंका का हिंसक व अलगाववादी संगठन है लेकिन भारत में इसके समर्थकों से सहानुभूति रखने वालों और एजेंटों का उद्देश्य सभी तमिलों के लिए एक मात्र भूमि तमिल ईलम की स्थापना करना है जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा है। 

यह गैर-कानूनी गतिविधि के दायरे में आता है। सरकार ने गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के प्रावधानों के तहत लिट्टे को गैर-कानूनी संगठन घोषित किया था। दरअसल, 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत में लिट्टे पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तब से हर पांच साल में लिट्टे पर लगे प्रतिबंध को बढ़ाया जाता रहा है। 

लिट्टे के प्रमुख वी.प्रभाकरन की हत्या के बाद इस संगठन को 2009 में श्रीलंका में सैन्य हार का सामना करना पड़ा था। लिट्टे अपनी हार के लिए भारत को जिम्मेदार मानता है। लिट्टे इंटरनेट पोर्टल में लेखों और अन्य सामग्रियों के जरिए श्रीलंकाई तमिलों के बीच भारत विरोधी भावना को भड़काने की कोशिश कर रहा है। लिट्टे अपनी गैर-कानूनी गतिविधियों को जारी रखने के लिये सोशल मीडिया का भी प्रयोग कर रहा है। यदि उसका प्रचार जारी रहता है तो भारत में कई अति महत्वूपर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

 गृह मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार बचे हुए लिट्टे नेताओं या कैडर ने भी बिखरे हुए कार्यकर्ताओं को फिर से संगठित करने तथा स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगठन को पुनर्जीवित करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। 2009 में लिट्टे प्रमुख वी. प्रभाकरन की हत्या के बाद लिट्टे का आतंक खत्म तो हो गया लेकिन श्रीलंका और भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में फैले इसके समर्थक अभी भी चुनौती बने हुए हैं। इसके बचे हुए नेता दुनिया के कई देशों में फैले हुए हैं जो एक बार फिर इस संगठन को खड़ा करना चाहते हैं। जिनसे लगातार सतर्क रहने की जरूरत है।