मनुष्य के वापिस लौटने का नहीं पढ़ा होगा ऐसा वर्णन- पढ़िए बिष्णु महापात्र की ये कविता
इस कविता में बिष्णु महापात्र ने एक मनुष्य के वापस लौटने का बडे़ सुंदर मार्मिक ढंग से प्रस्तुतिकरण किया है कि पाठक सहज ही उससे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है।
लौटूंगा एक दिन
निश्चित
लौट आऊंगा एक दिन
तुम्हारे पास
तीर्थ से लौटे आदमी-सा
मैले-कुचैले कपड़े, गले में तुलसी की माला
हाथ में छड़ी
और कुछ पोस्टकार्ड लिए।
लौट आऊंगा उस दिन
टूट चुका होगा रिश्ता जिस दिन
कविता से,
पराजित सेनानी
ध्वनि और शब्दों से जूझता
पकड़ा जाऊंगा जिस दिन
खुद के फैलाए जाल में,
निर्वासित होऊंगा जिस दिन
रात्रि के साम्राज्य से
मालिन की सात ताल की गहराई से।
लौट आऊंगा उस दिन
कटेगी पतंग जिस दिन
हाथों में मंझा उलझाए
मेले के मैदान से होते हुए
तुम्हारे पास
मौखिक गणित से घबराए
एक बालक-सा।
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