कानपुर को आ रही छज्जू और मंगल की याद, प्राणि उद्यान विभाग भी कर रहा है विचार

चिड़ियाघर में चिंपैंजी और वनमानुष देखना चाहते हैं दर्शक

कानपुर को आ रही छज्जू और मंगल की याद, प्राणि उद्यान विभाग भी कर रहा है विचार

कानपुर, अमृत विचार। चिड़ियाघर में करीब सात साल से चिंपैंजी और वनमानुष  के बाड़े सूने पड़े हैं। पहले यहां के लोगों का मनोरंजन छज्जू और मंगल करते थे, लेकिन उनकी मौत के बाद से ही ये बाड़े सूने पड़े हैं। यहां के दर्शकों को उनकी याद सताती है। चिड़ियाघर प्रशासन की ओर से दर्शकों की मंशा को जानने के लिए कराए गए एक सर्वे में सबसे ज्यादा दर्शकों ने चिंपैंजी और वनमानुष को देखने की इच्छा जताई है। दर्शकों की इन इच्छाओं को देखते हुए अब चिड़ियाघर प्रशासन भी चिंपैंजी और वनमानुष को लाने की तैयारी पर विचार कर रहा है। इसको लेकर उच्चाधिकारियों से भी परामर्श लिया जाएगा, जिसके बाद कार्यवाही आगे बढ़ाई जाएगी।

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प्रदेश के सबसे बड़े चिड़ियाघर में मंगल व छज्जू की चंचलता हर दर्शक को गुदगुदा देती थी। उसकी हरकतों को देख हर कोई रोमांचित हो जाता था। लंबे समय तक यहां की शान व जान छज्जू और मंगल ही थे। दोनों की मौत से चिड़ियाघर सूना हो चुका। जब तक छज्जू और मंगल थे तो वह अपने बाड़े के अंदर दर्शकों के सामने अपनी अठखेलियों से घंटों उन्हें खड़ा रहने पर मजबूर कर देते थे। छज्जू के लिए तो कहा जाता है वह दर्शकों के इशारे बखूबी समझ जाता था। वहीं मंगल सभी से हाथ बढ़ाकर खाने की वस्तुएं मांगता था। उनकी मौत के बाद बाड़े में दोबारा चिंपैंजी या वनमानुष नहीं आया। अब दर्शकों में इसको लेकर इच्छा बढ़ने लगी है।

नंदनकानन और रायपुर ने पूर्व में ही कर दिया था मना
चिड़ियाघर प्रशासन की ओर से करीब तीन साल पहले चिंपैंजी और वनमानुष को कानपुर प्राणी उद्यान में लाने को लेकर प्रयास किया था। इसको लेकर उन्होंने भुवनेश्वर के नंदनकानन और रायपुर चिड़ियाघर से इनकी डिमांड की थी, लेकिन वहां से इनकार कर दिया गया था। प्राकृतिक जीवों को लेकर सर्वे करने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठन इंटर नेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की एक रिपोर्ट में चिड़ियाघर का वातावरण चिंपैंजी और वनमानुष के लिए अनुकूल नहीं माना गया। लोगों की आवाजाही, प्रदूषण और शोर आदि की वजह से ऐसा माना गया। जिसके बाद से चिड़ियाघर में इन जीवों को लाना आसान नहीं रह गया है।

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सिर्फ 20 चिड़ियाघरों में हैं चिंपैंजी व वनमानुष
पशु चिकित्सक डॉ. नितेश कटियार बताते हैं कि भारत के जंगलों में चिंपैंजी व वनमानुष नहीं हैं। ये साउथ अमेरिका और अफ्रीका में पाए जाते हैं। देश के 53 चिड़ियाघरों में से 20 में ही ये जीव हैं। इनकी संख्या करीब 35 से 40 है। 


जब मैं 12वीं कक्षा में था तो स्कूल तरफ से पहली बार चिड़ियाघर आया था। छज्जू और मंगल की हरकत ने मन मोह लिया था। उसके बाद तो मैं कभी मम्मी पापा के साथ तो कभी दोस्तों के संग केवल इन दोनों नटखट को देखने आया करता था।
-रवि कुमार त्रिपाठी, वन्यजीव प्रेमी, कल्याणपुर

प्रदेश के सबसे बड़े चिड़ियाघर में वन मानुस और चिंपैंजी की कमी खलती है। यह दोनों पशुओं को लेकर बच्चों में भी काफी क्रेज है। चिड़ियाघर प्रशासन को इनको लाने के लिए कार्यवाही करनी चाहिए।
-प्रमिला सिंह मेहरा, वन्यजीव प्रेमी, रावतपुर

बोले जिम्मेदार 
चिंपैंजी और वन मानुस को दर्शक देखना चाहते हैं। उनकी इस डिमांड को लेकर भी मंथन किया जा रहा है। अभी प्रस्ताव भेजा नहीं गया है, इसको लेकर उच्च स्तर पर निर्देश मिलने के बाद कार्यवाही बढ़ाई जाएगी।
डॉ. अनुराग सिंह, उप निदेशक

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