चैटजीपीटी की कही हर बात पर यकीन क्यों किया जाए?

चैटजीपीटी की कही हर बात पर यकीन क्यों किया जाए?

ओंटारियो। प्राकृतिक भाषा में व्याकरण सम्मत सही प्रतिक्रियाएं देने वाली अमेरिकी कंपनी ओपनएआई के चैटबोट 'चैटजीपीटी' द्वारा प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं में से कुछ ही शिक्षक और शिक्षाविदों से मेल खाती हैं। ऐसे में गहन शोध और अध्ययन से ज्ञान अर्जित करने वाले शिक्षाविदों और विद्वानों की तुलना में चैटजीपीटी की कही बातों पर कैसे यकीन किया जाए? अकादमिक प्रकाशकों ने 'चैटजीपीटी' को सह-लेखक के रूप में सूचीबद्ध होने से प्रतिबंधित करने और उन शर्तों को रेखांकित करने वाले सख्त दिशानिर्देश जारी करने के लिए कदम उठाए हैं जिनके तहत इसका उपयोग किया जा सकता है। फ्रांस के प्रसिद्ध साइंसेज पो से लेकर कई ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों तक, दुनिया भर के अग्रणी विश्वविद्यालयों और स्कूलों ने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

ये प्रतिबंध केवल शिक्षाविदों की ओर से नहीं हैं जो चिंतित हैं कि वे नकल करने वालों को कैसे पकड़ पाएंगे। यह केवल उन छात्रों को पकड़ने के बारे में नहीं है जिन्होंने बिना हवाला दिए किसी स्रोत से नकल की। बल्कि, इन कार्रवाइयों की गंभीरता एक सवाल को दर्शाती है, एक ऐसा सवाल जिसे चैटजीपीटी चैटबोट के अंतहीन कवरेज में पर्याप्त ध्यान नहीं मिल रहा है: और वह सवाल है कि हमें उसके द्वारा उल्लेखित किसी भी सूचना पर भरोसा क्यों करना चाहिए? यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है, क्योंकि शिक्षा क्षेत्र और समाचार जगत समेत हमारे समाज की नींव बनाने वाले सूचना स्रोतों का उपयोग स्वीकृति या बिना स्वीकृति के चैटजीपीटी और इसके जैसे कार्यक्रमों द्वारा आसानी से किया जा सकता है। ज्ञान को संचालित करने वाली राजनीतिक अर्थव्यवस्था के तहत अकादमिक प्रतिबंध चैटजीपीटी द्वारा हमारे संपूर्ण सूचना परितंत्र के लिए उत्पन्न खतरे की आनुपातिक प्रतिक्रिया है।

पत्रकारों और शिक्षाविदों को चैटजीपीटी का उपयोग करने से सावधान रहना चाहिए। चैटजीपीटी - या, जिन तरीकों से चैटजीपीटी अपने आउटपुट तैयार करता है - वह ज्ञान के आधिकारिक स्रोतों के रूप में उनकी बहुत विश्वसनीयता पर सीधे लक्षित एक खंजर है। उसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। 

विश्वास और सूचना
इस बारे में सोचें कि हम कुछ सूचना स्रोतों या ज्ञान के प्रकारों को दूसरों की तुलना में अधिक भरोसेमंद क्यों मानते हैं? यूरोपीय प्रबोधन के बाद से, हम सामान्य रूप से ज्ञान के साथ वैज्ञानिक ज्ञान की बराबरी करने के लिए प्रवृत्त रहे हैं। विज्ञान प्रयोगशाला केंद्रित अनुसंधान से अधिक है: यह सोचने का एक तरीका है जो अनुभवजन्य रूप से आधारित साक्ष्य और साक्ष्य संग्रह तथा मूल्यांकन के संबंध में पारदर्शी तरीकों की खोज को प्राथमिकता देता है। और यह उत्कृष्ट मानक है जिसके द्वारा सभी तरह के ज्ञान का आकलन किया जाता है। उदाहरण के लिए, पत्रकारों की विश्वसनीयता होती है क्योंकि वे सूचनाओं की जांच करते हैं, सूत्रों का हवाला देते हैं और साक्ष्य प्रदान करते हैं। भले ही कभी-कभी रिपोर्टिंग में त्रुटियां या चूक हो सकती हैं, लेकिन इससे पेशे का प्राधिकार नहीं बदलता है। ‘ओप-एड’ (संपादकीय पृष्ठ के सामने विचारों से संबंधित पृष्ठ) लेखकों, विशेष रूप से शिक्षाविदों और अन्य विशेषज्ञों के लिए भी यही बात लागू होती है क्योंकि वे - हम - एक विषय में विशेषज्ञों के रूप में अपनी स्थिति से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं। विशेषज्ञता में उन स्रोतों की कमान शामिल होती है जिन्हें हमारे क्षेत्रों में वैध ज्ञान के रूप में मान्यता दी जाती है।

सच और आउटपुट
लेखन कार्य करने वाले इंसान और चैटजीपीटी क्योंकि एक ही आउटपुट - वाक्य और पैराग्राफ- बनाते प्रतीत होते हैं, तो यह समझ में आता है कि कुछ लोग गलती से इस वैज्ञानिक रूप से प्राप्त अधिकार को चैटजीपीटी का आउटपुट मान सकते हैं। चैटजीपीटी और रिपोर्टर दोनों वाक्यों का निर्माण करते हैं, जहां समानता समाप्त हो जाती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है, अधिकार का स्रोत । वह क्या लिखते या बताते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, अहमियत इसकी है कि वे जो बताते हैं उसे अर्जित कैसे करते हैं और पेश कैसे करते हैं? चैटजीपीटी एक संवाददाता की तरह वाक्यों का निर्माण नहीं करता है। चैटजीपीटी, और अन्य मशीन-लर्निंग, बड़े भाषा मॉडल परिष्कृत लग सकते हैं, लेकिन वे मूल रूप से केवल जटिल मशीन हैं। एक ईमेल में केवल अगले शब्द का सुझाव देने के बजाय, वे बहुत अधिक मात्रा में सांख्यिकीय रूप से सबसे अधिक संभावना वाले शब्दों को पेश करते हैं।

 ये कार्यक्रम दूसरों के काम को इस तरह से ‘रीपैकेज’ करते हैं जैसे कि यह कुछ नया हो। वह क्या तैयार कर रहे हैं इसकी ‘समझ’ उन्हें नहीं होती है। चैटजीपीटी की सच्चाई क्योंकि केवल एक सांख्यिकीय सच्चाई है, इस कार्यक्रम द्वारा उत्पादित आउटपुट पर कभी भी उसी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता है जिस तरह से हम एक रिपोर्टर या शिक्षाविद के आउटपुट पर भरोसा कर सकते हैं। आप चैटजीपीटी के स्रोतों की जांच नहीं कर सकते क्योंकि स्रोत सांख्यिकीय तथ्य है और ज्यादातर समय, शब्दों का एक समूह एक दूसरे का अनुसरण करता है। चैटजीपीटी का आउटपुट कितना सुसंगत लग सकता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यह जो तैयार करता है उसे प्रकाशित करना अब भी चीजों को स्वचालित रूप से चलाने के बराबर है। यह एक गैर-जिम्मेदाराना रवैया है क्योंकि यह दिखावा करता है कि ये सांख्यिकीय तरकीबें अच्छे स्रोत और सत्यापित ज्ञान के बराबर हैं।

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