नैनीताल: पेपर लीक प्रकरण हिंसा का सहारा लेने का बहाना नहीं

Amrit Vichar Network
Published By Bhupesh Kanaujia
On

नैनीताल, अमृत विचार। उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने पेपर लीक प्रकरण की सीबीआई जांच कराने संबंधी याचिका पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रश्नपत्र लीक होने के मुद्दे पर आंदोलन करते हुए भीड़ द्वारा हिंसा का सहारा लिया गया था। भले ही प्रश्नपत्र लीक हुए हों, लेकिन यह प्रकरण किसी को भी हिंसा का सहारा लेने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने या सार्वजनिक उपद्रव करने का बहाना नहीं दे सकते। 

 खंडपीठ भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने के मामले की सीबीआई जांच कराने और देहरादून में बेरोजगारों पर लाठीचार्ज करने के दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर देहरादून निवासी विकेश सिंह नेगी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से सरकार के जवाब पर 4 हफ्ते के भीतर प्रति उत्तर देने को कहा है, साथ ही बेरोजगारों द्वारा पुलिस पर पथराव करने एवं हिंसा फैलाने पर कड़ा रुख अपनाते हुए ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।

...हम यह मांग अस्वीकार करते हैं
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपनी कड़ी टिप्पणी में आगे कहा कि याचिकाकर्ता को प्रशासन से उचित अनुमति प्राप्त करने के बाद शांतिपूर्ण सभा में अपना विरोध दर्ज कराने का मौलिक अधिकार है, किंतु उसे हिंसा का सहारा लेने का अधिकार नहीं देता है इसलिए हम पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग को अस्वीकार करते हैं। हम सरकार को हिंसा या आगजनी करने वाले सभी लोगों के खिलाफ उचित और कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं।

याचिका में यह कहा
याचिका के अनुसार, राज्य में पिछले कुछ दिनों से छात्र भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने के कारण सड़कों पर हैं और पुलिस  बेरोजगारों युवाओं पर लाठीचार्ज कर रही है। सरकार इस मामले में चुप है। छात्रों को जेल भेज दिया गया। सरकार पेपर लीक कराने वालों के खिलाफ तो कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है इसलिए इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए। स्थानीय पुलिस और एसटीएफ पर उनका विश्वास नहीं है।