मुंबई: हाईकोर्ट ने की CM शिंदे की कार्यशैली की कड़ी आलोचना

मुंबई: हाईकोर्ट ने की CM शिंदे की कार्यशैली की कड़ी आलोचना

मुंबई। बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने राज्य के सहकारिता मंत्री के फैसले में हस्तक्षेप के मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कार्यशैली की आलोचना की है। विपक्ष के नेता अजीत पवार ने कहा कि इन टिप्पणियों के कारण कैबिनेट में कलह खुलकर सामने आ गई है। साथ ही उन्होंने महाराष्ट्र की गौरवशाली परंपरा के अनुरूप नहीं होने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि अदालत राज्य के मुख्यमंत्री पर शिकंजा कस रही है।

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मुख्यमंत्री द्वारा उठाए गए अहम मुद्दे पर जैसे ही मंत्री ने खुद को जवाब देना चाहा, पवार नाराज हो गए। उन्होंने सरकार को याद दिलाया कि इससे पहले जब राज्य के मुख्यमंत्री की अदालत ने खिंचाई की थी, तब मुख्यमंत्री ने नैतिकता का पालन करते हुए इस्तीफा दे दिया था। प्रदेश के सहकारिता मंत्री अतुल सावे ने चंद्रपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में भर्ती की अनुमति दी थी।

तदनुसार, 29 नवंबर 2022 को सहकारिता मंत्रालय द्वारा एक लिखित आदेश भी जारी किया गया था। मुख्यमंत्री को राज्य के किसी भी मंत्री द्वारा लिए गए अर्ध-न्यायिक निर्णय को बदलने या राज्य के संबंधित विभाग के मंत्री के मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई विशेष अधिकार नहीं है। पवार ने अदालत के आदेश को सदन में पढ़ते हुए इस बात की जमकर आलोचना भी की।

इसके बावजूद मुख्यमंत्री शिंदे ने सहकारिता मंत्री अतुल सावे द्वारा चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल बैंक में नौकरियों की भर्ती को लेकर दिए गए फैसले को स्थगित कर दिया था। मुख्यमंत्री द्वारा भर्ती के फैसले पर रोक लगाने के बाद चंद्रपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक ने हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की थी।

इस याचिका की सुनवाई समय-समय पर नागपुर खंडपीठ में होती रही है और उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि मुख्यमंत्री को अन्य विभागों के मामलों में दखल देने या दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। अजित पवार ने सदन का ध्यान इस बात की ओर भी दिलाया कि अदालत ने मुख्यमंत्री के काम करने के तरीके की कड़ी आलोचना की है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि सहकारिता मंत्री अतुल सावे द्वारा चंद्रपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में प्रशासनिक प्रकृति के रोजगार के संबंध में दिए गए निर्णय पर संबंधित विभाग के मंत्री ही पुनर्विचार या समीक्षा कर सकते हैं। तर्क में यह भी कहा गया है कि सहकारिता विभाग के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का मुख्यमंत्री का अधिकार नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन है।

मंत्री के अलावा संबंधित विभाग के लिए कोई सर्वोच्च या पर्यवेक्षण प्राधिकरण नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री नियम और कानून के आधार पर सहकारिता विभाग के निर्णय पर परस्पर रोक नहीं लगा सकते हैं। इससे इस मामले में वर्तमान मुख्यमंत्री और मंत्री के बीच अनबन देखी जा रही है।

पवार ने इस बात की भी आलोचना की कि मुख्यमंत्री से परिवार के मुखिया के रूप में काम करने की उम्मीद की जाती है जबकि वास्तव में राज्य के विकास को आगे बढ़ाया जाता है और अपने ही मंत्रिमंडल के मंत्रियों द्वारा लिए गए निर्णय को स्थगित करना शिंदे-फडनवीस सरकार में कलह का एक बड़ा उदाहरण है।

 पवार ने कहा कि महाराष्ट्र जैसी गौरवशाली परंपरा वाले राज्य में निश्चित तौर पर अदालत का दखल देना और मुख्यमंत्री की खिंचाई करना बुरा विचार नहीं है। जब आबकारी मंत्री शंभूराज देसाई ने जवाब दिया तो नाराज अजीत पवार ने सरकार की खूब सुध ली।

जब मुख्यमंत्री से इस गंभीर मामले पर अपनी सफाई देने की उम्मीद की जाती है, तो वहीं अन्य मंत्री उन्हें याद दिलाते हुए जवाब देते हैं कि मुख्यमंत्री ने पहले इस्तीफा दे दिया था जब अदालत ने मुख्यमंत्री पर दबाव डाला था।

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