World Theatre Day 2023: जैसा कि वे कहते हैं...दी शो मस्ट गो ऑन
आरआरआर को जब ऑस्कर तक पहुंचाया जा सकता है तो थिएटर को समाज से पुन: जोड़ना संभव है
सरकार के समर्थन से जिंदा रखी जा सकती है नाट्य विधा
हल्द्वानी, अमृत विचार। विश्व प्रसिद्ध लेखक विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि "दुनिया एक मंच है और हम सब अभिनेता हैं।" इस छोटी सी पंक्ति में कवी ने जीवन का सार बता दिया था। जीवन के हर पड़ाव में हम अलग-अलग किरदार का चोला पहनते हैं। पैदा होते ही बच्चे का, बड़े होकर माता या पिता का और बुढ़ापे में दादा या दादी की भूमिका में नजर आते हैं। जो व्यक्ति किसी भी किरदार को मौजूदा समय में उसी भाव के साथ बहार निकाल सके तो यही कला उसे साधारण व्यक्ति से अलग कलाकार बनाती है। कलाकार बनने के लिए नवरस में पकड़ बनाना बहुत जरूरी है। सबको लगता है कि अभिनय करना बहुत आसान है बस हंसना और जोर-जोर से रोना ही तो ऐक्टिंग है। किंतु भारतीय संस्कृति में नृत्य के बाद नाट्य को ही सबसे कठिन कलाकृति माना गया है।
नुक्कड़ नाटक या 'स्ट्रीट प्ले' एक सुप्रसिद्ध नाट्य विधा है जो रंगमंच पर नहीं खेला जाता और ना ही इसकी रचना एक लेखक द्वारा की जाती है। नुक्कड़ नाटक सामाजिक मुद्दे उठाने का एक बेहतरीन जरिया है और यह लोगों से भी व्यक्तिगत तौर से जुड़ने में मदद करता है। अगर हम समय में पीछे जाए तो नुक्कड़ नाटक का प्रयोग चुनावों के दौरान राजनीतिक अस्त्र के रूप में भी किया गया और इसके अतिरिक्त कालाबाजारी, भ्रष्टाचार एवं महिला संबंधी मामलों की थीम महत्वपूर्ण रही।
हर बार की तरह इस बार भी अंतरराष्ट्रीय थिएटर इंस्टिट्यूट द्वारा वर्ल्ड थिएटर डे 2023 की थीम है "थिएटर एण्ड ए कल्चर ऑफ पीस"। इस वॉलर्ड थिएटर डे में हमने कुमाऊं स्थित कुछ कलाकारों से बात की, जिस पर उन्होंने उत्तराखंड में नाटक को लेकर क्या बदलाव आया है और सरकार द्वारा कलाकारों के कितना समर्थन प्राप्त हुआ है इसके बारे में बताया।
थिएटर पर चर्चा
"मैं 2016 से थिएटर कर रहा हूं। मेरे हिसाब से सरकार द्वारा फिल्मों और वेब सीरीज सरकार द्वारा प्रोत्साहन मिला है। लेकिन बात की जाए थिएटर की तो आज भी कोई बदलाव नहीं है। थिएटर के अभियास के लिए कोई जगह नियुक्त नहीं की गई है। ऐक्टर को पर्याप्त पैसा नहीं दिया जाता है और कई बार तो आयोजक ऐक्टर को ही कॉस्टयूम का खर्चा उठाने को बोलता है। बाकि सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो थिएटर को लेकर लोगों में खासकर युवाओं में जागरूकता बढ़ी है और युवाओं का रुझान भी देखने को मिल रहा है।"
-प्रतीक कुमार, थिएटर आर्टिस्ट, देहरादून
"मुझे 30 साल हो गए है थिएटर करते हुए। मेरे अनुभव में पहले से थिएटर का प्रभाव कम हो चुका है। जब से वेब सीरीज और टीवी ने लोगों के बीच अपनी जगह बनाई है तबसे लोग थिएटर से लोग अलग हो रहे हैं। सरकार की तरफ से भी कोई खासा समर्थन नहीं मिला है और जितनी भी खर्चा होता है वो थिएटर कलाकार मिल जुलकर ही उठाते हैं।"
- अनवर रजा, प्रयोगांक थिएटर ग्रुप सदस्य, नैनीताल
मैं 1997 से इस कला से जुड़ा हूं और 2001 में शुरू हुई प्रयोगांक नाट्यशाला का निर्देशक भी हूं। शुरू से लेकर अब तक थिएटर देखने वालों की संख्या में गिरावट ही आई है क्योंकि सब कुछ मोबाइल में सिमट कर रह गया है इसलिए लोग 2-3 घंटे की मूवी के लिए सिनेमा जाना पसंद नहीं करते हैं। मेरे हिसाब से रंगमंच को हाईटेक करने की जरूरत है। सरकार और थिएटर ग्रुप्स को साथ बैठ के मंथन करना चाहिए की कैसे थिएटर समाज के काम आ सके। अगर हम थिएटर को थेरपी के रूप में इस्तेमाल करें तो इस प्राचीन कला को जिंदा रखा जा सकता है।" - मदन मेहरा, प्रयोगांक थिएटर ग्रुप निर्देशक, नैनीताल