नैनीताल: अंधेरे के चलते इस गांव का नाम पड़ गया 'अन्यारपाटा'
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नैनीताल, अमृत विचार। सरोवर नगरी के क्षेत्रों के नामों को लेकर कहा जाता है कि अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन ने शहर को खोजा व विख्यात किया। नगर के अधिकांश भाग, भवन, अस्पताल व सड़कों के नाम ब्रिटिश शासकों के नाम पर ही पड़े हैं, जबकि ऐसे क्षेत्र भी हैं जिनके नाम अंग्रेजों के आने से पहले ही अस्तित्व में आ चुके थे और आज भी वे पुराने नामों से ही प्रचलित हैं।
अंग्रेज शासनकाल से पूर्व नगर में बसासत नहीं थी। आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग नगर में तीर्थ यात्री के रूप में आया करते थे। तब यहां सिर्फ मां नयना देवी का मंदिर हुआ करता था जो तब वर्तमान बोट हाउस क्लब के समीप हुआ करता था। समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के श्रद्धालु यहां मंदिर में दर्शन के लिए आया करते थे। उन्हीं के द्वारा यहां क्षेत्रों नाम भी दिये गए। जैसे कि अन्यारपाटा क्षेत्र। यह पश्चिमी छोर जो राजभवन से बारापत्थर तक फैला हुआ है।
अन्यार यानि अंधेरा, पाटा का मतलब भाग। इस क्षेत्र के नाम को लेकर कुछ इतिहासकार बताते हैं इस क्षेत्र में एक समय में अयार के वृक्षों का घना जंगल हुआ करता था, जो आबादी बढ़ने के साथ विलुप्त होता चला गया। अयार के वृक्ष के नाम से इस क्षेत्र को अयारपाटा भी कहा जाता है।
इतिहासकार प्रो. अजय रावत कहते हैं कि इस नगर में कभी शेरों का भी बसेरा हुआ करता था। जिनकी दहाड़ दिन में सुनाई पड़ती थी। जिस कारण नगर के पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ी का नाम शेर का डांडा पड़ गया। इस पहाड़ी में लगातार शेर देखे जाने व अक्सर शेर की गुर्राहट के किस्से भी खासे चर्चित रहें हैं। आज भी इस क्षेत्र में हिरन, काकड़, घूरल, गुलदारों के अलावा हिमालयन भालू समेत कई अन्य जंगली जानवरों को देखा जाना आम बात है।
यहां के लैला मजनू भी मशहूर
नैनीताल। तल्लीताल क्षेत्र में डांठ से चंद मीटर की दूरी पर झील किनारे लैला मजनू के वृक्ष सदाबहार एक दूजे से लिपटे नजर आते हैं। अधिकतर लोग इस बात से अंजान हैं कि आपस में लिपटे ये वृक्ष ही लैला मजनू के पेड़ हैं जो हमेशा एक दूसरे के लिए समर्पित नजर आते हैं। मजनू का वृक्ष लैला की ओर झुका रहता है जबकि लैला का वृक्ष पूरी तरह से मजनू के वृक्ष पर झुका रहता है। इतना ही नहीं इसकी टहनियां भी मजनू के पेड़ पर लिपटी रहती हैं। यह वृक्ष पानी वाली जगह पर उगते हैं।