हिंदी दिवस पर विशेष : पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में युवा पीढ़ी की हिंदी से बढ़ रही दूरी, शिक्षाविदों ने अनदेखी पर जताई चिंता

शिक्षकों-अभिभावकों से मातृभाषा को बढ़ावा देने का आह्वान, स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई में हिंदी की उपेक्षा, युवा पीढ़ी पर अंग्रेजी का दिख रहा अधिक असर

हिंदी दिवस पर विशेष : पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में युवा पीढ़ी की हिंदी से बढ़ रही दूरी, शिक्षाविदों ने अनदेखी पर जताई चिंता

मुरादाबाद, अमृत विचार। पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव युवाओं पर अधिक है। यह संस्कृति देश को गर्त की ओर ले जा रही है। युवाओं को हिंदी बोलने में असहजता महसूस होती है। अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई में मातृभाषा हिंदी को प्राथमिकता नहीं दी जाती। स्कूलों में हिंदी बोलने पर बच्चों को डांट पड़ती है। यहां तक की अर्थदंड भी लगाया जाता है। विद्वानों ने इस प्रवृति पर चिंता जताई है।

हिंदी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। 1949 को हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा माना गया। लेकिन, आज के दौर में युवाओं में हिंदी का प्रभाव कम होता जा रहा है। खासकर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में बच्चों को हिंदी नहीं पढ़ाई जा रही है। जिससे बच्चे अपनी सभ्यता से दूर होते जा रहे हैं। गोकुलदास हिंदू गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्य प्रो. चारु मेहरोत्रा ने बताया कि हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा है। लेकिन, आधुनिक दौर में हिंदी का प्रभाव कम हो रहा है। जो चिंता का विषय है। निजी कंपनियों में अंग्रेजी बोलने वाले बच्चों को वरीयता दी जाती है। जिस वजह से बच्चों का रुझान हिंदी के प्रति कम हो रहा है। देश के जिम्मेदारों को हिंदी को मजबूती देने के लिए और प्रयास करने होंगे। खासकर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी पर जोर देने के लिए निर्णय लेने होंगे। जिससे हमारी राष्ट्र भाषा को आने वाली पीढ़ी भी सम्मान दे सके।

डॉ ममता सिंह

प्रो. डॉ. ममता सिंह 

हिंदी साहित्य बहुत ही समृद्ध है। लेकिन इसके साथ ही आवश्यकता यह भी है कि हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों का भी पर्याप्त मात्रा में प्रकाशन और विक्रय होना चाहिए। जिससे युवा पीढ़ी को हिंदी की पुस्तकें आसानी से पढ़ने को मिल सकें। सूचना क्रांति के इस युग में हिंदी को कम्प्यूटर की भाषा भी बनना होगा। ऐसे साफ्टवेयर विकसित होने चाहिए जिनसे विश्व स्तर की महत्वपूर्ण जानकारी का आदान प्रदान आसानी से किया जा सके।- प्रो. डॉ. ममता सिंह, केजीके महाविद्यालय

दीपक रस्तोगी

दीपक रस्तोगी

हमें हिंदी भाषा पर गर्व होना चाहिए। क्योंकि आज भी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी एक है। हिंदी हमारे भारत की संस्कृति को दर्शाती है। इसी की वजह से आज पूरे भारत में हिंदी में संवाद किया जा सकता है। मैं यहीं कहूंगा कि हिंदी है हम, वतन है हिंदुस्तान, हिंदी का मान बढ़ाकर देश का हम करते हैं सम्मान।- दीपक रस्तोगी, शिक्षक, आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज

वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी कल्पना लोक में जब करें विचरण मन के विचार, नव सृजन करने का स्वभाषा बने आधार। राजनीति का वर्तमान परिदृश्य, आशा मन में जगा रहा। विश्व पटल पर कुछ नया, होने को अब जा रहा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अब, शोर सुनाई दे हिंदी-हिंदी। उर में भाव स्वाभिमान का, कहो गर्व से हिंदी- हिंदी। इन पंक्तियों के साथ मैं कहना चाहता हूं कि सरल सहज अभिव्यक्ति की संवाहक भाषा हिंदी है।-चन्द्रहास कुमार हर्ष, रचनाकार

प्रीतम सिंह

प्रीतम सिंह

हिंदी भाषा को अब गंभीरता से लेने का समय आ गया है। क्योंकि बच्चों पर इस समय अंग्रेजी का प्रभाव है। अगर हमने बच्चों को हिंदी सिखाने पर जोर नहीं दिया तो हम काफी पीछे रह जाएंगे। जिसका असर आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा। सरकार को भी हिंदी को और मजबूत करने के बारे में सोचना चाहिए। खासकर निजी कंपनियों में हिंदी का वरीयता दिलाने पर जोर देने चाहिए। जिससे हिंदी बोलने वाले बच्चे भी बड़ी कंपनी में नौकरी कर सकें।- प्रीतम सिंह, प्रधानाचार्य, राजकीय हाईस्कूल, बहोरनपुर कला

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