
हल्द्वानी: नौकरी सरकार की, चाकरी कर रहे थे प्राइवेट अस्पताल की
हल्द्वानी, अमृत विचार। कई संगीन आरोपों से घिरे होने के बावजूद खुद के पाक साफ होने का दावा करने वाले न्यूरो सर्जन डॉ. अमित देवल का झूठ बेनकाब हो गया है। वे बेशक डॉ. सुशीला तिवारी अस्पताल में सरकारी नौकरी कर रहे हैं, लेकिन चाकरी प्राइवेट अस्पतालों की कर रहे थे। डॉ. देवल के खिलाफ हुई जांच में और कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
बता दें कि एसटीएच में इलाज के दौरान मरीज के इलाज के दौरान तीमारदार से दवा और सर्जिकल इम्प्लांट बाहर से मंगाने के आरोप में घिरे डॉ. देवल ने स्वास्थ्य विभाग की जांच कमेटी के सामने बयान देते हुए अपने ऊपर लगे आरोपों से इंकार किया था। इतना ही नहीं डॉ. देवल ने मरीज के तीमारदारों से कोई परामर्श शुल्क न लेने की बात भी कही थी, लेकिन शिकायतकर्ता मोहित बिष्ट के उपलब्ध कराए साक्ष्यों से पुष्टि हुई है कि डॉ. देवल ने तीन दिन मुखानी स्थित निजी अस्पताल में मरीज का इलाज किया।
जबकि डॉ. देवल ने सिर्फ एक दिन इलाज करने की बात कही थी और वो भी निशुल्क। इतना नहीं जांच में डॉ. अमित देवल का नाम निजी अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज मिला और अस्पताल के ही पर्चे पर उन्होंने मरीज को एसटीएच रेफर किया था। आरटीआई से मिली कमेटी की जांच रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है।
कमेटी ने भी डॉ. देवल के निजी अस्पताल में सेवा देने को गलत ठहराया है। एक सरकारी अस्पताल में तैनात होते हुए न्यूरो सर्जन डॉ. देवल का बेबाकी से निजी अस्पताल में मरीज को देखना कहीं न कहीं भ्रष्टाचार की अवधारणा है, जो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के जीरो टॉलरेंस पर पानी फेर रहा है।
भ्रष्टाचारी के आगे सरकारी तंत्र भी फेल
न्यूरो सर्जन डॉ. देवल पर लगे गंभीर आरोप सही साबित हुए हैं। उनके इस भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में कहीं न कहीं सरकारी तंत्र भी शामिल है। ऐसा इसलिए कि जब मामला सामने आया तो उच्चाधिकारियों ने कार्रवाई की बात कही, लेकिन जांच रिपोर्ट में आरोपों की पुष्टि होते ही सरकारी तंत्र का रवैया भ्रष्टाचारी डॉक्टर के प्रति सख्त होने के बजाए नरम हो गया। क्योंकि पूर्व में डॉ. देवल को एसटीएच से हटाने के आदेश को दरकिनार कर नया फरमान जारी कर दिया गया कि वो एसटीएच में सेवा देना जारी रखेंगे। ये मामला सोशल मीडिया में काफी चर्चा में है। लोग प्रदेश सरकार की जमकर आलोचना कर रहे हैं।
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