विश्व को सर्जरी की ‘असोपा तकनीक’ देने वाले प्रख्यात सर्जन डॉ एचएस असोपा का निधन, मिला था Medical man का राष्ट्रीय पुरस्कार  

विश्व को सर्जरी की ‘असोपा तकनीक’ देने वाले प्रख्यात सर्जन डॉ एचएस असोपा का निधन, मिला था Medical man का राष्ट्रीय पुरस्कार  

आगरा, अमृत विचार। विश्व को सर्जरी की ‘असोपा तकनीक’ देने वाले प्रख्यात सर्जन डॉ हरि शंकर असोपा का बुधवार तड़के यहां निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। डा असोपा देश दुनिया में सर्जरी के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता और मानवतावादी चिकित्सक के रूप में जाने जाते थे। वह बड़ी संख्या में गरीब मरीजों की मुफ्त सेवा करते थे। उन्होंने जननांगों की सर्जरी की ऐसी तकनीक विकसित की जो विश्व के सभी मेडिकल छात्रों को सिखाई जाती है। डा असोपा ने एसएन मेडिकल कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में एमएलबी मेडिकल कॉलेज झाँसी में प्रोफेसर और सर्जरी विभाग के प्रमुख रहे। इसके बाद वह आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में सर्जरी विभाग के अध्यक्ष रहे। उन्होंने शहर में असोपा हॉस्पिटल की स्थापना की जहां निम्न मध्यम वर्ग के मरीजों का इलाज होता है। 

जुलाई, 1932 में जन्मे डा असोपा का करियर शानदार रहा, उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एमबीबीएस में प्रथम स्थान प्राप्त किया, जिसमें उस समय आगरा, ग्वालियर और इंदौर मेडिकल कॉलेज शामिल थे। उन्होंने चांसलर मेडल सहित कई पदक प्राप्त किए और वर्ष 1964 में सर्जरी (आगरा), एफआरसीएस (इंग्लैंड), एफआरसीएस (एडिनबर्ग) में एमएस किया। वह एक प्रिय और सम्मानित शिक्षक रहे और उन्होंने प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षण के प्रति अपने जुनून को जारी रखा। उन्होंने लड़कों में लिंग और मूत्रमार्ग के जन्मजात दोष हाइपोस्पेडिया के लिए एक चरण के ऑपरेशन का आविष्कार किया। 

प्रत्येक 250 - 300 लड़कों में से एक इस दोष के साथ पैदा होता है। अकेले भारत में लगभग 40 हजार लड़के इस दोष के साथ पैदा होते हैं। यह शोध जून 1971 में जर्नल ‘इंटरनेशनल सर्जरी’ में प्रकाशित हुआ था। असोपा ऑपरेशन के नाम से जानी जाने वाली यह प्रक्रिया जल्द ही पूरी दुनिया में यूरोलॉजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञ, प्लास्टिक और जनरल सर्जन द्वारा की जाने लगी। असोपा प्रक्रिया को लेखों, अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं, अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों और पाठ्यपुस्तकों में स्थान मिला। वर्ष 1984 में उन्होंने हाइपोस्पेडिया के लिए एक और ऑपरेशन प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था ‘फोरस्किन ट्यूब का उपयोग करके हाइपोस्पेडिया की एक स्टेज मरम्मत’, जो मूल असोपा ऑपरेशन का परिशोधन था। इसे ‘असोपा ऑपरेशन’ कहा जाता है और बाद में पाठ्यपुस्तकों में इसे असोपा प्रक्रिया 1990 संस्करण के रूप में वर्णित किया गया।

डॉ. असोपा द्वारा 1990 के दशक के मध्य में स्ट्रिक्चर यूरेथ्रा के लिए आविष्कार किया गया एक ऑपरेशन, जो 2001 में एल्सेवियर साइंस इंक, फिलाडेल्फिया के जर्नल ‘यूरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ था। दुनिया भर में यूरोलॉजिस्ट द्वारा सार्वभौमिक रूप से अपनाया जा रहा है। इसने यूरेथ्रल स्ट्रिक्चर सर्जरी को करना आसान और सुरक्षित बना दिया। यह संदर्भ पुस्तकों और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में दिखाई देता है। इसे यूरोप और अमेरिका में रिकंस्ट्रक्टिव यूरोलॉजिस्ट के बीच ‘डोर्सल इनले यूरेथ्रोप्लास्टी’ या ‘असोपा तकनीक’ के रूप में लोकप्रिय बनाया गया है। दुनिया भर के कई विश्वविद्यालय इस तकनीक को एक प्रमुख तकनीक के रूप में मान्यता दे रहे हैं। वर्ष 2002 में ‘द अमेरिकन जर्नल ऑफ सर्जरी’ में आविष्कार और प्रकाशित एक और ऑपरेशन ने अग्न्याशय के कैंसर के लिए अग्न्याशय की सर्जरी को सुरक्षित बना दिया। डॉ. असोपा को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में आमंत्रित किया गया। उनके व्याख्यान और जटिल ऑपरेशन की फिल्में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और वेबसाइटों पर दिखाई जाती हैं। उन्होंने भारत और विदेशों में 50 से अधिक संस्थानों और प्री कॉन्फ्रेंस कार्यशालाओं में इन ऑपरेशनों का प्रदर्शन किया। 

डॉ. असोपा को कई पुरस्कारों, सदस्यताओं और फ़ेलोशिप से भी सम्मानित किया गया, जिसमें वर्ष 1991 में कर्नल पंडालाई ओरेशन भी शामिल है, जो एसोसिएशन ऑफ़ सर्जन्स ऑफ़ इंडिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। उन्हें वर्ष 1996 में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा ‘प्रख्यात मेडिकल मैन’ के रूप में बीसी रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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