बरेली: राजकीय संकेत विद्यालय... यहां मौन की भाषा में खुद धोखा खा रहे हैं 119 बच्चे

बरेली: राजकीय संकेत विद्यालय... यहां मौन की भाषा में खुद धोखा खा रहे हैं 119 बच्चे

बरेली, अमृत विचार। वे न सुन सकते हैं न बोल पाते हैं। इसलिए शायद कभी कह भी नहीं पाएंगे कि सरकारों को उनके लिए जो करना चाहिए था, वह नहीं किया। उनके हिस्से में भी सिर्फ जुबानी हमदर्दी ही आई।

ये राजकीय संकेत आवासीय विद्यालय के बच्चे हैं, कहने को यहां उन्हें उस कमी को पूरा करने के लिए रखा गया है जिसने उनकी पैदाइश के साथ उनके जीवन को असामान्य बना दिया लेकिन इस विद्यालय में भी ऐसे हालात हैं कि जब भी पढ़ाई पूरी करके वे यहां से निकलेंगे, यही महसूस करेंगे कि उनके साथ धोखा किया गया।

पढ़ाने के लिए शिक्षक न होने के बावजूद उन्हें काबिल बनाने का सपना दिखाकर कई साल बर्बाद कर दिए गए।

सरकारी व्यवस्था में कितनी संवेदनशीलता बची है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजकीय संकेत आवासीय विद्यालय में 119 बच्चे हैं और सिर्फ एक शिक्षक। स्कूल इन बच्चों को एलिमेंट्री से आठवीं तक शिक्षा देने के लिए है।

मूकबधिर बच्चों को कुछ सिखाना और फिर सामान्य शिक्षा देना कितना आम बच्चों की तुलना में कई गुना ज्यादा कठिन काम है। इसी वजह से सामान्य स्कूलों में जहां 30 से 40 बच्चों के लिए एक शिक्षक का मानक है, वहीं इस विद्यालय में आठ बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक होना चाहिए।

इस मानक के हिसाब से यहां 15 शिक्षकों की तैनाती होनी चाहिए लेकिन एक ही शिक्षिका तैनात है। उनके अलावा एक प्रधानाध्यापक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। कोई बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन विद्यालय का माहौल ही साफ इशारा करता है कि यहां रह रहे बच्चों को मौन की भाषा में ही धोखे में रखा जा रहा है।

कठिनाई और अनिश्चितता से घिरा भविष्य

मूकबधिर बच्चों को पढ़ाने की पहली और सबसे बड़ी चुनौती है, उन्हें भाषा सिखाना। टोटल कम्युनिकेशन के तहत इन बच्चों को शारीरिक हाव-भाव पढ़ना, अपनी बात अभिव्यक्त करना, लिप रीडिंग सिखाई जाती है।

बच्चे होठों को देखकर दूसरे की भाषा समझते हैं और साइन लैंग्वेज यानी हाथों से इशारे कर अपनी बात समझाते हैं। यह विद्यालय आठवीं कक्षा तक है, अगर नौवीं और दसवीं में बच्चों में बोलने की क्षमता प्रकट हो जाती है तो उन्हें हियरिंग एड लगवाकर सामान्य विद्यालयों में भेज दिया जाता है।


प्रदेश के बाकी संकेत विद्यालयों का भी ऐसा ही हाल
उत्तर प्रदेश में पांच राजकीय संकेत विद्यालय हैं। इनमें गोरखपुर और आगरा हाईस्कूल तक है। लखनऊ, फर्रुखाबाद और बरेली जूनियर हाईस्कूल हैं। अकेले लखनऊ के संकेत विद्यालय में पांच शिक्षक हैं।

बाकी किसी विद्यालय में दो से ज्यादा शिक्षक नहीं हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी हर महीने इस विद्यालय का दौरा करते हैं और बच्चों और शिक्षकों के अनुपात की रिपोर्ट भी तैयार करके शासन को भेजते हैं लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकलता।


2011 में पूरे थे शिक्षक, 2013 के बाद नहीं हुई भर्ती, बच्चों की क्षमता बढ़ाकर कर दी तीन गुना से ज्यादा

संकेत राजकीय आवासीय विद्यालय में वर्ष 2011 तक पर्याप्त शिक्षक थे, लेकिन 2013 के बाद एक-एक करके वे रिटायर होते गए और नई भर्ती हुई नहीं। कुछ शिक्षकों का ट्रांसफर भी हो गया, अब काफी समय से एक ही शिक्षक यहां हैं।

शिक्षक न होने के बावजूद इस विद्यालय की क्षमता बढ़ा दी गई। पहले यहां सौ ही बच्चों की क्षमता थी जो अब बढ़ाकर 340 कर दी गई है। शिक्षकों की भर्ती कर्मचारी चयन आयोग के स्तर पर होती है।

अधिकांश मामलों में सुनाई न देने की वजह से ही बच्चों को बोलने में दिक्कत आती है। अध्यापकों की पहली प्राथमिकता बच्चे को भाषा का ज्ञान देने की होती है। इन बच्चों के घर की भाषा अलग होती है। विद्यालय आने के बाद सभी बच्चों की भाषा मानक अनुसार हो जाती है। शिक्षकों की पहली चुनौती यह है कि कैसे बच्चे को भाषा सिखाई जाए कि वह किसी को भी अपने घर का पता बता सके। इसके बाद बच्चों को पाठ्यक्रमानुसार शिक्षा दी जाती है। - बलवंत सिंह, प्रधानाध्यापक राजकीय संकेत विद्यालय

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