मुरादाबाद : कौन सुनेगा, किसको सुनायें...रोटी के लिए रोटी बेचने का ठौर भी छिना

समय की मार...निर्माण का हथौड़ा यहां अनगिनत लोगों की छाती पर प्रहार कर रहा, ढ़हते निर्माण और बेहिसाब नुकसान देख मन ही मन कराह रहे लोग

मुरादाबाद : कौन सुनेगा, किसको सुनायें...रोटी के लिए रोटी बेचने का ठौर भी छिना

आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। साल 1981 में धर्मेंद्र और हेमा मालिनी अभिनीत फिल्म आस-पास ने धूम मचाई थी। जिसका चर्चित गीत है, मैं फूल बेचती हूं..., यहां हरथला क्षेत्र (हरिद्वार हाईवे के पटरियों के किनारे) के ढ़ाबा और छोटे होटलों में रोटी बेचने वाले भी कल तक इसी तरह गुनगुनाते थे कि हम रोटी बचते हैं, रोटी कमाने के लिए। मगर, अब उनकी आवाज रुध गयी है। ऐसे गीत गुनगुनाने वाले अपनी पीड़ा किसको सुनायें- आखिर, कौन सुनेगा ‌? यही सोचकर सभी चुप हैं। सड़क का चौड़ीकरण हो रहा है। हाई-वे के मध्य से दोनों ओर 11-11 मीटर सड़क चौड़ी की जा रही है, इसमें दोनों ओर दो से चार मीटर तक निर्माण तोड़ा जा रहा है। 

तस्वीर यह है कि यहां रोटी के लिए रोटी बचने वालों का ठौर छिनता जा रहा है। अवैध निर्माण के तोड़े जाने के प्रश्न पर किसी को आपत्ति नहीं है। दसकों से रहने, गुजर- बसर करने और कारोबारी उपयोग के लिए भवनों का सहारा लेने वाले अधिकतर लोग हर कदम प्रशासन के साथ हैं। यह संदर्भ इस बात की गवाही है कि लोग अपने निर्माण स्वयं गिरा रहे हैं। सड़क के लिए भू-भाग खाली कर रहे हैं। लेकिन कुछ शासन-प्रशासन की ओर टकटकी भी लगाएं हैं। उम्मीद है कि कहीं उन्हें भवन और भूखंड के बदले सरकार की ओर से कुछ सहायता मिल जाये। कुछ लोग तो इस उम्मीद में हैं कि हमने कमाई से जमीन खरीदी है। इसलिए जमीन की कीमत मिलनी चाहिए।    

खैर, यह विषय समय तय करेगा। लोक निर्माण विभाग इस सड़क को राष्ट्रीय राजमार्ग के मानक पर तैयार करने में जुटा है। विभाग का तर्क भी स्पष्ट है कि लोगों ने अतिक्रमण करके अपना निर्माण कर लिया है। उधर, लोक निर्माण विभाग के एक जिम्मेदार ने नाम न छापने की शर्त पर दो टूक संदेश दिया कि अब तो लोग केवल अतिक्रमण हटाने की ही सोचें। मुआवजा और सरकारी सहायता की बात निराधार है। हरथला क्षेत्र में सड़क पर अतिक्रमण लोक निर्माण विभाग की भूमि पर हुआ है। आयुक्त आन्जनेय कुमार सिंह कहते हैं कि मुरादाबाद-हरिद्वार हाईवे का शहरी क्षेत्र मॉडल के रूप में दिखेगा। इसके प्रयास किए जा रहे हैं।

... हर चेहरे पर सिसकियों का डेरा 
बेहिसाब हथौड़ियों की आवाज, जेसीबी की गर्जना और मजदूरों के तोड़े गए निर्माण से मलबा हटाने के बीच बकार, सुहेल अहमद, मलिक बिरयानी के प्रबंधक नवाब, पंजाबी ढ़ाबा के राकेश, आभूषण विक्रेता योगेंद्र चंद्र के मैनेजर मेंहदी हसन प्रतिक्रिया देने से स्वयं को नहीं रोक पाये। बोले, हम लोगों के सपने बिखर रहे हैं। रोटी के प्रबंध को लेकर चिंता आ पड़ी है। उधर, सड़क के दाहिने क्षेत्र के लोगों का मन प्रशासन की कार्रवाई पर सहमा हुआ है। समाजसेवा, राजनीति के बाद अब चिंतन- मनन में समय व्यतीत करने वाले डालचंद सागर कहते हैं कि बात सन 1973 की है। हमने आना-पाई जोड़कर 600 रुपये के हिसाब से सवा सौ गज का भूखंड खरीदा था। अब लोक निर्माण विभाग ने मेरी दोनों दुकानें करीब-करीब नहीं के बराबर छोड़ी है। लगभग चार मीटर मेरा निर्माण तोड़ा गया है। हम क्या करें और कहां जाएं यह समझ में नहीं आ रहा है। सच तो यह, यहां के हर चेहरे पर सिसकियों का डेरा है।
  
प्रशासन से गुहार की तैयारी
बसपा के पूर्व जिलाध्यक्ष वेद प्रकाश मोनू कहते हैं कि पहले एक दिशा में 12 से 14 मीटर जमीन खाली कराने की बात विभाग कर रहा था। अब 11 मीटर खाली कराया जा रहा है। रोड के दाहिनी ओर पुरानी बस्ती है। यहां 50 से भी अधिक समय से लोग बसे हैं। हमे विभाग से क्षतिपूर्ति और मुआवजा की उम्मीद है। इस पर हम लोग संगठित होकर प्रशासन से अपना हक मांगेंगे। नाना-धेवती प्रतिष्ठान के मैनेजर मेहंदी हसन कहते हैं कि चार दिन से हम लोगों को नींद नही आ रही है। अब केवल पांच फिट ही दुकान बची है। बातचीत में इमरत, फुरकान, राहुल, गोकुल सिंह और बांकेलाल प्रशासन की कार्रवाई की चर्चा के दौरान भावुक हो गए।

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