कुतुबखाना पुल : दिसंबर छोड़िए फरवरी से पहले काम पूरा होना मुश्किल

मंडलायुक्त ने निर्माण पूरा करने के लिए 31 दिसंबर तक का दिया है अल्टीमेटम

कुतुबखाना पुल : दिसंबर छोड़िए फरवरी से पहले काम पूरा होना मुश्किल

बरेली, अमृत विचार। स्मार्ट सिटी की बैठक में मंडलायुक्त ने 31 दिसंबर तक कुतुबखाना पुल का निर्माण पूरा करने का अल्टीमेटम दिया था। कार्यदायी संस्था मंटेना इंफ्रासोल के एमडी अमित चोपड़ा ने 15 जनवरी तक काम पूरा करने का वादा किया है, लेकिन निर्माण की सुस्त रफ्तार से फरवरी से पहले काम पूरा होना मुश्किल दिख रहा है। अफसर अब तक 13 महीने में 80 फीसदी काम होने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में 20 फीसदी काम को पूरा करने में कम से कम तीन महीने लगेंगे।

शहरवासियों को जाम से निजात दिलाने के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत कोतवाली से कोहाड़ापीर तक 111 करोड़ रुपये की लागत से 1280 मीटर लंबे पुल का निर्माण सितंबर 2022 से चल रहा है। अफसरों का दावा है कि नवंबर 2023 तक करीब 81 फीसदी निर्माण पूरा हो पाया। इधर, पुल के निर्माण में देरी से व्यापारी परेशान हो रहे हैं। देरी को लेकर मंडलायुक्त से लेकर जिलाधिकारी, नगर आयुक्त के अलावा आए दिन होनी वाली बैठकों में जनप्रतिनिधि भी नाराजगी जता चुके हैं, लेकिन कार्यदायी संस्था की मनमानी से निर्माण कार्य गति नहीं पकड़ रहा है।

निर्माण में देरी की एक वजह यह भी
सेतु निगम के अफसर बताते हैं कि कुतुबखाना पुल निर्माण के दौरान पहले एक मजदूर की जान चली गई, इसके कुछ दिन बाद फिर से राहगीर की मौत हो गई। 20 दिन में दो हादसे हो गए, जबकि एक मजदूर घायल हुआ। इस वजह से काम काफी दिन तक प्रभावित रहा। कई मजदूरों ने काम पर आने से इन्कार कर दिया था। इसके अलावा एक वजह त्योहारी सीजन में बाजार में भीड़ और अतिक्रमण है।

20 लाख रुपये तक का पड़ेगा जुर्माना
निर्माण कार्य की सुस्त रफ्तार पर कार्यदायी संस्था पर दो बार पहले भी 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा चुका है। पिछले दिनों मंडलायुक्त ने भी 31 दिसंबर तक काम पूरा न होने पर जुर्माना डालने की बात कही थी। ऐसे में निर्धारित समय पर काम पूरा नहीं होने पर 20 लाख रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा।

कार्यदायी संस्था को निर्धारित समय में काम पूरा करने के निर्देश दिए जा चुके हैं। समय-समय पर निर्माण कार्य का निरीक्षण करता रहता हूं। जिस तेजी से काम चल रहा है। जनवरी से पहले पूरा होने की संभावना कम है। -अरुण कुमार, डीपीएम, सेतु निगम

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