रायबरेली: नौ करोड़ का बजट हुआ लापता, किसानों की जमीनों के लिए अभिशाप बनीं बकुलाही झील!

तीन हजार से अधिक किसानों की जीविका पर आया संकट 

रायबरेली: नौ करोड़ का बजट हुआ लापता, किसानों की जमीनों के लिए अभिशाप बनीं बकुलाही झील!

आशीष दीक्षित/रमेश शुक्ला, रायबरेली। जिले के दो विकास खंड रोहनिया और सलोन के किसानों के लिए बाकुलाही झील अभिशाप बन चुकी है। पूरे वर्ष में अधिकांश समय हजारों एकड़ जमीन जलमग्न रहती है। नतीजन सीपेज की वजह से किसानों के खेत में वर्षों से खेती नहीं हो पा रही है। ऐसे में किसान जीविका के लिए पलायन को विवश हैं। झील की सफाई के लिए करीब दो दशक पूर्व स्वीकृत हुई 9 करोड़ की राशि भी लापता हो गई है।

धरातल पर स्थित जस की तस है। झील की सफाई का मामला विधानसभा लेकर यूपीए सरकार में सांसद सोनिया गांधी तक पहुंचा लेकिन झील की सफाई नहीं हो सकी। सांसद की पहल से जो 9 करोड़ रुपया आया था वह कहां चला गया इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है। झील ने 3 हजार से अधिक किसानों की जिंदगी को बेबस कर दिया है।

बकुलाही झील सलोन विकास खंड से शुरू होकर रोहनिया ब्लॉक के बीच से होते हुए प्रतापगढ़ जिले में प्रवेश करती है | इस झील की सफाई न होने के कारण दोनों विकास खंडों के करीब 3 हजार से अधिक किसानों की जीविका पर संकट पिछले 50 साल से बना हुआ है। किसानों को अपने बुजुर्गों से पुश्तैनी जमीन तो मिली है और जमीन के मालिक भी किसान हैं, लेकिन यह जमीन किसानों की भूख नहीं मिटा पाती है। कारण क्षेत्र की हजारों एकड़ भूमि पूरे साल सीपेज का शिकार बनी रहती है। इसके कुछ हिस्से में मात्र धान की फसल होती है।

यदि कभी अच्छी बरसात हो जाती है तो धान की फसल भी पानी में डूबकर सड़ जाती है। रोहनिया ब्लॉक के गांव रायपुर, तामस गढ़, सुमेर बाग, उमरन, अड्डा, गंगेहरा गुलालगंज, मिश्र पुर सहित करीब दो दर्जन ऐसे गांव हैं जो तीन तरफ से सीपेज का शिकार हैं। इन गांवो में एक तरफ शारदा सहायक नहर है तो दूसरी ओर एनटीपीसी का ऐस पाण्ड। तीसरी ओर बकुलाही झील का विकराल रूप गांवो को टापू बना देता है।

सफाई के लिए 20 साल पहले मिला था बजट 

रोहनिया विकास खंड के किसानों की भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए वर्ष 2003 में केंद्र सरकार की पहल पर प्रयास शुरू हुए थे। उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम द्वारा पूरे क्षेत्र में सर्वेक्षण का कार्य शुरू हुआ। तब शासन ने बकुलाही झील की सफाई और जलनिकासी के लिए 9 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।

वहीं सोनिया गांधी जब पहली बार वर्ष 2004 में रायबरेली की सांसद बनीं तो उनके पास भी यह समस्या पहुंची थी जिस पर उनके द्वारा एक कार्य योजना तैयार कराई गई थी। इसके बाद झील की सफाई के लिए धन का आवंटन उत्तर प्रदेश जल निगम को किया गया था, लेकिन झील की सफाई का काम शुरू नहीं हो पाया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

पक्षी विहार प्रशासन ने दी थी हाईकोर्ट में चुनौती 

शासन द्वारा एक बार तीन दशक पहले बकुलाही झील की सफाई की पहल की गयी थी, तब क्षेत्र के समसपुर के पास स्थित पक्षी विहार प्रशासन ने इस पर आपत्ति की थी। इसके लिए पक्षी विहार की ओर से उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी थी, जिसमे कहा गया था कि यदि सफाई की गयी तो समसपुर झील में पानी कम हो जाएगा और प्रवासी पक्षियों के लिए वातावरण अनुकूल नहीं होगा। पक्षी विहार के आस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा। उसके बाद उच्च न्यायालय ने झील की सफाई पर स्थगन आदेश जारी कर दिया था। उसी के बाद बकुलाही झील की सफाई का काम रोक दिया गया था।

कहां खर्च हुई तीन करोड़ की बड़ी धनराशि ? 

उत्तर प्रदेश जलनिगम को बकुलाही झील की सफाई के लिए शासन द्वारा आवंटित हुए 9 करोड़ रुपये में से तीन करोड़ रुपये खर्च भी गए, लेकिन धरातल पर कहीं भी काम नहीं हुआ। कोई भी नहीं बता पा रहा यह पैसा कहां गया। मिली जानकारी के अनुसार  वर्ष  2017 में इस धनराशि में से तीन करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

यह धनराशि किस संस्था को आवंटित की गयी और धन को कहां व्यय किया गया, यह कोई बता नहीं पा रहा है। इस बारे में कई जनप्रतिनिधियों ने जिला प्रशासन से जवाब भी मांगा, लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। रोहनिया ब्लॉक के पूर्व जिला पंचायत सदस्य श्रीराम पाल ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जिला योजना समिति में भी उनके द्वारा इस मामले को कई बार उठाया गया था, लेकिन जिम्मेदार विभाग कोई उत्तर नहीं दे पा रहे है।

विस. व लोस. चुनाव में बकुलाही झील भी होता है मुद्दा 

रायबरेली में राजनीति का पारा हमेशा चरम पर रहता है। कांग्रेस और सपा का गढ़ होने से यहां पर बड़ी समस्या चुनावी मुद्दा बनती रहती हैं। जबसे केंद्र और प्रदेश में भाजपा सरकार आई है तो मुद्दे और उठते हैं। रायबरेली में बंद फैक्ट्रियों की बात हो या फिर रेल कोच की वाहवाही लेने का मुद्दा हो, कोई भी राजनीतिक पीछे नहीं रहता है।

इसी तरह बकुलाही झील का मुद्दा भी विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में पिछले 40 साल से उठता रहा है। खासकर जबसे ऊंचाहार विधानसभा सीट बनी तब से झील की सफाई का मुद्दा चुनाव में जोरशोर से उठता है लेकिन यह केवल चुनाव तक ही सीमित रहा है। उसके बाद झील से किसानों को होने वाली समस्या को भुला दिया जाता है। 

बकुलाही झील पर एक नजर 

झील का प्रसार- ऊंचाहार की रोहनिया से सलोन और फिर प्रतापगढ़ तक 

झील के किनारे बसे गांव- रोहनिया ब्लॉक के गांव रायपुर, तामस गढ़, सुमेर बाग, उमरन, अड्डा, गंगेहरा गुलालगंज, मिश्र पुर सहित 28 गांव 

झील से बर्बाद हो रहा रकबा- करीब 150 से 200 हेक्टेयर 

झील कब थी साफ- सन 1970 तक 

झील में कब से पानी हुआ गंदा- एनटीपीसी के लगने के बाद

झील में गंदगी के कारण- जलीय वनस्पति का उगना 

झील का सफाई की कोशिश- वर्ष 1995 के करीब 

शासन द्वारा सफाई के लिए भेजा गया पैसा- वर्ष 2003 

कितना पैसा किया गया था आवंटित- 9 करोड़ रुपये 

कितना पैसा किया गया खर्च- 3 करोड़ 

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किसानों का दर्द 

क्षेत्र के गांव धमोली  निवासी किसान सुंदरलाल का कहना है कि उनके पास कुल पांच बीघे जमीन है । जिसमें से मात्र एक बीघे ही कृषि योग्य है । शेष जमीन सीपेज के कारण बंजर पड़ी हुई है। गांव तरैया निवासी किसान रविंद्र यादव ने बताया कि बकुलाही झील के कारण उनकी जमीन पर केवल धान की फसल हो पाती है।

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कभी कभी तो अधिक जलभराव के कारण धान की फसल भी डूब जाती है । उधर गांव रोहनिया निवासी किसान कृपा शंकर ने बताया कि बकुलाही झील की सफाई न होने से क्षेत्र के हजारों एकड़ भूमि बंजर पड़ी हुई है।

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क्षेत्रीय किसान लगातार सरकार से इसकी सफाई की मांग कर रहे है। क्षेत्र के गांव मसौदाबाद निवासी किसान जगदीश प्रसाद ने बताया कि उनके पास मात्र डेढ़ बीघे जमीन है। वह अल्पजोत किसान है। उनकी अधिकांश  जमीन बेकार पड़ी हुई है। जिसमें पूरे साल सीपेज बना रहता है।

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