Exclusive: भोले की हैट्रिक लगेगी या राजाराम की दौड़ेगी साइकिल? बसपा के राजेश मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का कर रहे प्रयास

Exclusive: भोले की हैट्रिक लगेगी या राजाराम की दौड़ेगी साइकिल? बसपा के राजेश मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का कर रहे प्रयास

त्रिपुरेश अवस्थी, कानपुर देहात। अकबरपुर संसदीय सीट पर भाजपा सांसद देवेंद्र सिंह भोले अब हैट्रिक लगाने के लिए व्यग्र दिख रहे हैं। मोदी की गारंटी, क्षेत्र में हुए विकास कार्य और कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर वे जनता से वोट मांग रहे हैं तो इंडिया गठबंधन की प्रमुख सहयोगी पार्टी सपा के उम्मीदवार राजाराम पाल उन्हें हराने के लिए बेरोजगारी, महंगाई और आरक्षण के मुद्दे को अपने हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।

जनता से इन्हीं मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं। इस लड़ाई को बसपा के राजेश द्विवेदी त्रिकोणीय बनाने की कोशिश तो कर रहे हैं पर कितना सफल होंगे यह वक्त बताएगा। फिलहाल मुकाबला भोले और पाल के बीच कांटे का दिख रहा है। बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने चुनावी सभाओं के जरिए अपने- अपने उम्मीदवार के पक्ष में समीकरण साधने का प्रयास तो किया है। पीएम नरेंद्र मोदी भी चार मई को माहौल बना चुके हैं।

अकबरपुर संसदीय सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी। पहले चुनाव में पूर्व बसपा सांसद राजाराम पाल कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे थे और यहां से जीत हासिल की थी। इस चुनाव में बसपा के अनिल शुक्ल वारसी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में भाजपा तीसरे और सपा चौथे नंबर पर थी। 2014 में जब चुनाव हुआ तो भाजपा ने पूर्व मंत्री देवेंद्र सिंह भोले पर दांव लगाया और यह सटीक बैठ गया। 

भोले न सिर्फ 2.79 लाख वोटों के भारी अंतर से जीते बल्कि इस चुनाव में राजाराम पाल चौथे, सपा के लाल सिंह तोमर तीसरे स्थान पर रहे। बसपा के अनिल शुक्ल वारसी को फिर दूसरा स्थान मिला। 2019 में भी भोले ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में अनिल शुक्ल वारसी भाजपा में आ गए थे और बसपा- सपा गठबंधन की संयुक्त उम्मीदवार निशा सचान को दूसरा स्थान मिला था। राजाराम पाल इस चुनाव में भी तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार पाल मुख्य मुकाबले में दिख रहे हैं। जबकि बसपा इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रही है। 

राजाराम पाल पहली बार बने थे सांसद

राजाराम पहली बार बसपा के टिकट पर 2004 में सांसद बने थे तब यह सीट बिल्हौर लोकसभा के नाम से जानी जाती थी। हालांकि ऑपरेशन दुर्योधन में नाम आने के बाद उनकी सदस्यता खत्म हो गई थी। इसके बाद 2007 में हुए उप चुनाव में बसपा के टिकट पर तब अनिल शुक्ल वारसी जीते थे। हालांकि 2008 में जब परिसीमन हुआ तो यह सीट खत्म हो गई और अकबरपुर के नाम से अस्तित्व में आई। 

बसपा के ब्राह्मण चेहरे से सपा को दिख रहा फायदा

बसपा ने इस सीट पर ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारा है। इसे सपा अपने लिए मुफीद मान रही है। इस क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या निर्णायक मानी जाती है। कल्याणपुर और अकबरपुर रनिया विधानसभा क्षेत्र में इस जाति के मतदाता प्रभावशाली हैं। ऐसे में सपा को लगता है कि बसपा के परंपरागत मतदाताओं के साथ ही ब्राह्मण मतों के राजेश द्विवेदी के साथ जाने से इस लड़ाई में उसे फायदा होगा और वह देवेंद्र सिंह भोले की हैट्रिक रोकने में कामयाब होगी। 

पांचों विधानसभा सीटें भाजपा व सहयोगी दल के पास

इस क्षेत्र में आने वाली अकबरपुर रनिया, कल्याणपुर, बिठूर और महाराजपुर विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। जबकि घाटमपुर सीट पर भाजपा की सहयोगी अपना दल एस की विधायक हैं। महाराजपुर सीट से विधायक सतीश महाना विधानसभा अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में भोले की तीसरी जीत हो यह उनके लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है। 

भोले और सांगा में छत्तीस का आंकड़ा

सांसद भोले और बिठूर के विधायक अभिजीत सिंह सांगा के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों के बीच का तनाव किसी से नहीं छिपा है चाहे वे क्षेत्र के कार्यकर्ता हों या फिर पार्टी नेतृत्व इस बात से सभी वाकिफ हैं। सांगा लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। जबकि उन्होंने कई बार अकबरपुर रनिया और महाराजपुर, बिठूर के साथ ही घाटमपुर में भी शक्ति प्रदर्शन कर चुके थे। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों में सुलह कराई। अब सांगा भी चुनाव में जुट गए हैं।

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