हल्द्वानी: महाराष्ट्र के संतरे को टक्कर दे रहा राजस्थान का संतरा 

हल्द्वानी: महाराष्ट्र के संतरे को टक्कर दे रहा राजस्थान का संतरा 

हल्द्वानी, अमृत विचार। महाराष्ट्र के संतरे के सिर पर रखा नंबर-एक का ताज डोलने लगा है, क्योंकि उसे राजस्थान के संतरे से जबरदस्त टक्कर मिल रही है। नागपुर के संतरे के मुकाबले राजस्थान का संतरा देखने में आकर्षण, रसीला और इसके दाम भी ज्यादा नहीं हैं। 

जी हां, संतरे का जिक्र होने पर ज्यादातर लोगों की जुबां पर स्वत: नागपुर, महाराष्ट्र का नाम आ जाता है। प्रचुर मात्रा में उत्पादन और स्वाद दोनों के मामले में अब तक नागपुर के संतरे का कोई तोड़ नहीं था लेकिन अब उससे मुकाबला करने के लिए राजस्थान का संतरा मैदान में उतर चुका है। 

हल्द्वानी मंडी में इन दिनों महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान का संतरा भी आ रहा है। नवीन मंडी में फलों का कारोबार करने वाले एनके दानी ने बताया कि राजस्थानी संतरे की भी मांग बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि राजस्थानी संतरा देखने में आकर्षक, स्वाद में अन्य की तुलना में ज्यादा रसीला व मीठा और इसके दाम भी अन्य के बराबर हैं।

उन्होंने कहा कि राजस्थान का मौसम गर्म रहने से यह ज्यादा रसीला व मीठा होता है। नागपुरी संतरे का छिलका पतला, जबकि राजस्थानी का छिलका मोटा होता है, इसलिए यह देखने में आकर्षक लगता है। लगभग सभी जगहों के संतरों के दाम एक जैसे हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में मंडी में 30-45 रुपये किलो संतरा बिक रहा है और प्रतिदिन करीब पांच हजार कैरेट संतरा आ रहा है।

फल आढ़तियों ने बताया कि नागपुर के बाद राजस्थान के झालावाड़ जिले का संतरा लगातार लोकप्रिय हो रहा है और यह राजस्थान के नागपुरी संतरे के नाम से चर्चा पा रहा है। यहां के संतरे की गुणवत्ता इतनी बढ़िया है कि किसानों को इसे बेचने के लिए मंडियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते, बल्कि व्यापारी खुद ही उनके पास आते हैं। यहां के संतरे को विदेशों में भी काफी पसंद किया जा रहा है।

इस वर्ष राजस्थान में संतरे की पैदावार पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी हुई है। अभी तक पेड़ों से 25 फीसदी फल ही तोड़ा गया और 75 फीसदी फल तोड़े जाने बाकी हैं। संतरे की फसल जनवरी से तैयार होने लगती है और मार्च तक रहती है। संतरे का पौधा पांच वर्ष में ही फसल देने लगता है। इस पौधे की उम्र बीस साल तक रहती है। संतरे की खेती में किसानों को ज्यादा लागत नहीं लगानी पड़ती और इसके अलावा खेतों में अन्य फसलें भी उगाई जा सकती हैं।

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