सहमति से तलाक के बाद भरण- पोषण का दावा पति के उत्पीड़न समान :हाईकोर्ट 

सहमति से तलाक के बाद भरण- पोषण का दावा पति के उत्पीड़न समान :हाईकोर्ट 

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण- पोषण के मामले में पति द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि अगर कोई महिला आपसी सहमति से तलाक के समय अपने पति से गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार छोड़ देती है तब वह बाद में इसकी मांग नहीं कर सकती है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की एकल पीठ ने गौरव मेहता की याचिका को स्वीकार करते हुए की। 

याचिका में अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, गौतमबुद्ध नगर के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अंतरिम भरण-पोषण के रूप में पति को प्रतिमाह 25 हजार रुपए देने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक बार जब एक पत्नी ने समझौते की शर्तों के आधार पर तलाक प्राप्त कर लिया तो पत्नी के लिए अपने पति के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करना संभव नहीं है। यह पति के उत्पीड़न के समान होगा। कोर्ट ने आगे सीआरपीसी की धारा 125 (4) का भी हवाला देते हुए कहा कि इसमें प्रावधान है कि अगर कोई पत्नी सहमति से अलग रह रही है तो उसे पति से भरण- पोषण भत्ता प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा। दरअसल वर्ष 2006 में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पुनरीक्षणकर्ता (पति) से उसकी पत्नी ने आपसी सहमति से तलाक की डिक्री इस शर्त पर प्राप्त की कि वह पति से भरण- पोषण का कोई दावा नहीं करेगी और नाबालिग बेटे की कस्टडी मां को दे दी जाएगी। 

इसके बाद वर्ष 2013 में उसने अपने नाबालिग बेटे द्वारा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए एक आवेदन दाखिल किया। इस आवेदन को स्वीकार करते हुए बेटे को प्रतिमाह 15 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया और वर्ष 2020 में पत्नी ने भी उक्त धारा के तहत पति से उसकी आय का 25 फीसदी भरण- पोषण के रूप में मांगा, जिसे वर्तमान याचिका में चुनौती दी गई है।

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