भारत की मजबूत दावेदारी

भारत की मजबूत दावेदारी

बीते कुछ समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रासंगिकता पर सवाल उठे हैं। सुरक्षा परिषद के बारे में कहा जाता है कि वो अपने मौजूदा रूप में पुराना और कम प्रतिनिधित्व वाला संगठन बन गया है। दूसरी ओर भारत का वैश्विक कद बढ़ा है। 

भारत लंबे समय से विकासशील दुनिया के हितों का बेहतर प्रतिनिधित्व करने के लिए सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की मांग कर रहा है जिसका समर्थन वैश्विक समुदाय भी करता है। टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने कहा कि हम निश्चित रूप से सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र संस्था में सुधारों का समर्थन करते हैं, ताकि इसमें 21 वीं सदी की दुनिया को प्रतिबिंबित किया जा सके। 

एक्स पर एक पोस्ट में मस्क ने कहा कि दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत के पास सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट नहीं है। इसके चलते परिषद बेतुकी है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने बुधवार को कहा कि अमेरिका ने सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र संस्थानों में सुधार के लिए समर्थन की पेशकश की है। 

लोकसभा चुनाव के पहले चरण से पहले 14 अप्रैल को जारी अपने घोषणापत्र में भाजपा ने कहा हम वैश्विक निर्णय लेने में भारत की स्थिति को ऊपर उठाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 2 अप्रैल को कहा था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता जरूर मिलेगी,क्योंकि दुनिया में यह भावना है कि उसे यह पद मिलना चाहिए।  केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत, जापान, जर्मनी और मिस्र ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र के समक्ष एक प्रस्ताव रखा है और उनका मानना है कि इससे मामला थोड़ा आगे बढ़ेगा। यह एक वैश्विक मंच है, जहां विवादों को निपटाने पर चर्चा होती है। 

फिलहाल सुरक्षा परिषद में अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और यूनाइटेड किंगडम स्थायी सदस्य हैं। परिषद के 10 अस्थायी सदस्य हैं। भारत फिलहाल अस्थायी सदस्य है। अस्थायी सदस्य जनरल असेंबली द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। सुरक्षा परिषद में जब भी किसी मसले पर फैसला लेना होता है तो उसके लिए 15 में से 9 सदस्यों के वोट की जरूरत होती है। वोटिंग में स्थायी सदस्य काफी अहम होते हैं। 

अगर कोई भी एक स्थायी सदस्य फैसले से सहमत नहीं होता है तो वो पूरा प्रस्ताव या निर्णय खारिज हो जाता है। स्थायी देशों की इस शक्ति को वीटो पावर कहा जाता है। पिछले कुछ सालों में भारत ने सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के बिना भी वैश्विक नेतृत्व की भूमिका हासिल कर ली है। अब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन से भारत के दावे को मजबूती मिली है।

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