Exclusive: बुंदेलखंड में भाजपा की हैट्रिक में नहीं गांठ का बंधन; 2019 में सपा-बसपा साथ होकर भी नहीं दिखा पाई थीं कोई कमाल

इस बार बाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन की लड़ाई को बसपा बना रही त्रिकोणीय

Exclusive: बुंदेलखंड में भाजपा की हैट्रिक में नहीं गांठ का बंधन; 2019 में सपा-बसपा साथ होकर भी नहीं दिखा पाई थीं कोई कमाल

चुनाव डेस्क, अमृत विचार। बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे पर वाहनों की तेज रफ्तार वर्षों से उपेक्षित रहे इस इलाके में विकास पहुंचने का अहसास जरूर कराती है, लेकिन लोगों के बुनियादी सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। गरीबी, पानी की समस्या, पलायन और रोजगार के साधन नहीं होने जैसे मुद्दे सालों से समाधान की बाट जोट रहे हैं, इन्हीं मुद्दों के चलते इस इलाके में रह-रहकर उठने वाली अलग बुंदेलखंड प्रदेश की मांग शायद यह पहला चुनाव है, जब कहीं सुनाई नहीं देती। 

बुंदेलखंड के चार संसदीय क्षेत्रों हमीरपुर-महोबा, बांदा-चित्रकूट, झांसी-ललितपुर और जालौन-गरौठा में 2019 के चुनाव में सपा और बसपा के मजबूत माना जा रहा गठबंधन कोई कमाल नहीं दिखा पाया था। इसके बावजूद इस बार  सपा ने कांग्रेस से गठबंधन करके भाजपा की घेराबंदी की है। 

चारों सीटों पर भाजपा और सपा- कांग्रेस गठबंधन में सीधे नजर आ रहे मुकाबले को बसपा प्रत्याशी त्रिकोणीय बनाने में लगे हैं। पिछले चुनाव में बुंदेलखंड की चारों सीटों पर भाजपा ने 2014 का चुनावी इतिहास दोहराते हुए कमल खिलाया था। इस बार पार्टी ने यहां हैट्रिक लगाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।    

रोमांचक मुकाबले में फंसी भाजपा की हैट्रिक

हमीपुर- महोबा संसदीय सीट पर भी मुकाबला इस बार रोमांचक दिख रहा है। कांग्रेस- सपा गठबंधन के उम्मीदवार अजेंद्र राजपूत जहां भाजपा के कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल की हैट्रिक रोकने के लिए लोगों को स्थानीय समस्याओं के समाधान के साथ ही संविधान बचाने के लिए साथ आने की अपील कर रहे हैं तो पुष्पेंद्र सिंह चंदेल यह बताने में जुटे हैं कि पानी की समस्या का समाधान उनकी सरकार ने किया है। 

मोदी की गारंटी के नाम पर वे वोट मांग रहे हैं। तो बसपा ने ब्राह्मण चेहरे निर्दोष दीक्षित पर दांव लगाया है। यहां चुनाव धीरे- धीरे जातीय आधार पर आधारित होता जा रहा है। सपा को लगता है कि ब्राह्मण वोट जितना बसपा काटेगी उतना ही भाजपा का नुकसान होगा। लोध व अन्य पिछड़ी जातियों के सहारे अजेंद्र राजपूत मैदान मारने की तैयारी कर रहे हैं।

यहां अंतरकलह से जूझ रही भाजपा

बांदा- चित्रकूट संसदीय सीट पर भाजपा के उम्मीदवार वर्तमान सांसद आरके सिंह पटेल को अपनों की चुनौती से ही दो-चार होना पड़ रहा है। उन्हें अपनी ही पार्टी के पूर्व सांसद भैंरो प्रसाद की नाराजगी का सामना करना पड़ा रहा है। भैंरों न तो प्रचार के लिए निकल रहे हैं और न ही उनके समर्थक उत्साहित दिख रहे हैं। 

यहां पार्टी में जबरदस्त अंतरकलह दिख रही है। हालांकि आरके सिंह पटेल को पूरी उम्मीद है कि मोदी की गारंटी, विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों के दम पर वे यहां लगातार दूसरी बार जीतने में कामयाब होंगे और उनकी पार्टी हैट्रिक लगेगी। 

सपा ने भी यहां कुर्मी जाति की कृष्णा पटेल को मैदान में उतारा है। इससे कुर्मी वोटों का बंटवारा होने का डर भी भाजपा को है। इसमें बसपा के मयंक द्विवेदी अपना फायदा देख रहे हैं। वे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाकर मैदान मारने की जुगत में हैं। 

राष्ट्रीय मुद्दों के आगे जातीय समीकरण ठंडा

झांसी- ललितपुर संसदीय क्षेत्र में राष्ट्रीय मुद्दे हाबी नजर आ रहे हैं। यहां जातीय समीकरण पूरी तरह से ठंडा नजर आ रहा है। बसपा ने जहां रवि प्रकाश कुशवाहा को मैदान में उतारा है तो भाजपा ने वर्तमान सांसद अनुराग शर्मा और कांग्रेस ने पूर्व सांसद प्रदीप आदित्य जैन को। 2014 में यहां पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता उमा भारती जीतीं थीं लेकिन 2019 में पार्टी ने उनके स्थान पर अनुराग शर्मा को मैदान में उतारा था। वे भी जीते। 

कांग्रेस गठबंधन के सहारे जहां फिर से यहां स्थापित होना चाहती है तो भाजपा को अपनी हैट्रिक की पूरी उम्मीद है। वैसे यह सीट 1989 से 1998 तक हुए चार चुनावों में भाजपा का अभेद्य किला रही, लेकिन 1999, 2004 और 2009 में पार्टी यहां हारी। 2014 से फिर कब्जा है। कांग्रेस स्थानीय मुद्दों को उभारना चाहती है। साथ ही संविधान और आरक्षण बचाओ की बात कर रही है लेकिन भाजपा के लोग सिर्फ मोदी की गारंटी और भ्रष्टाचार के खात्मे पर वोट मांग रहे हैं। 

केंद्रीय मंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर 

जालौन- गरौठा संसदीय सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर है। 2014 और 2019 के चुनाव में जीत चुके वर्मा को सपा के नारायण दास अहिरवार और बसपा के सुरेश चंद्र गौतम ने घेर रखा है। इन दलों के बनाए हुए चक्रव्यूह से निकलने के लिए एड़ी- चोटी का जोर लगाए हुए हैं। 

इस बार यदि वर्मा जीतते हैं तो उनकी हैट्रिक तो होगी ही इस सीट पर उनकी छठवीं बार जीत होगी। इसे पहले वे 1996 और 1998 में जीते पर हैट्रिक से चूक गए थे। 1999 में हारने के बाद 2004 में उन्हें फिर जीत मिली लेकिन 2009 का चुनाव उनके लिए बुरी खबर लेकर आया था।

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