जैव विविधता दिवस: जिले से विलुप्त हो गईं 142 में 52 पेड़-पौधों की प्रजातियां

जैव विविधता दिवस: जिले से विलुप्त हो गईं 142 में 52 पेड़-पौधों की प्रजातियां

मोनिस खान, बरेली, अमृत विचार। पारिस्थितिकी तंत्र में हर जीव-जंतु, पेड़ पौधे व इनकी प्रजातियां मिलकर जैव विविधता को परिभाषित करती हैं। इंसान खुद इसी जैव विविधता का अंग है। सभी की एक दूसरे पर निर्भरता पूरे पर्यावरण की रचना करता है, बावजूद इसके विकास की अंधी दौड़ में इंसान जैव विविधता के मायने और इसकी अहमियत समय के साथ भूलता चला गया। 

नतीजन, जिन प्रजाति के पेड़ पौधों की भरमार सौ साल पहले थी आज वो जिले में विलुप्त हो चुके हैं। इनमें में 142 में से 52 पौधों की प्रजातियां मौजूदा समय में लगभग विलुप्त हो चुकी हैं या उतनी संख्या में नहीं मिलतीं।

बरेली कॉलेज वनस्पति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. आलोक खरे बताते हैं कि हमारे पास जिले और रुहेलखंड क्षेत्र में 120 साल पहले तक का रिकॉर्ड है। जिसमें बॉटनिस्ट जेएफ दत्थी की पुस्तक 'फ्लोर ऑफ अपर गंगटिक प्लेन' में इस क्षेत्र में 142 के आसपास पेड़ पौधों की प्रजातियों का जिक्र मिलता है। 

कुछ साल पहले हुए एक शोध के मुताबिक इनमें से 52 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। जिनमें सोप ट्री, सर्पगंधा, हर और बहेड़ा जैसी प्रजातियां शामिल हैं। वह बताते हैं कि किसी जमाने में सोप ट्री के बाग इस इलाके में होते थे, लेकिन शोध के दौरान नहीं पाए गए। इसके अलावा बरगद की प्रजातियां फाइकस पामेटा और स्पीडा अब जिले में नहीं मिलतीं।

जिले से गायब हो गए कठा आम के पेड़
डॉ. आलोक खरे बताते हैं कि किसी जमाने में सामान्य तौर पर शहर में देसी यानी कठा आम की भरमार होती थी, लेकिन आज कठा आम का पेड़ ढूंढने से नहीं मिलेगा। वह बताते हैं कि देसी फसलों को कलम के जरिए नई नस्लों में बदला गया। जिसकी वजह से पेड़ पौधों का मूल स्वरूप विलुप्त होता चला गया। मौजूदा समय में कलमी फसलों पर चलन बढ़ गया है, लेकिन हकीकत यह है कि किसी भी कलमी फसल का भविष्य ज्यादा लंबा नहीं हो सकता।

छिपकलियों का जीवन पड़ा खतरे में
बरेली कॉलेज में जंतु विज्ञान विभाग के प्रो राजेंद्र सिंह अपनी पुस्तक ''जैव विविधता जीवन का जाल'' में लिखते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से मधुमक्खियों और तितलियों की कई प्रजातियों को नुकसान हुआ है। वहीं उत्तर भारत में भीषण गर्मी के चलते असमतापी सरीसृप जीवों की असमय मृत्यु हो रही है। जिसमें छिपकलियों पर बुरा असर पड़ा है। साथ ही जलीय जीवों की संख्या में भी कमी आई है।

सफाई चेन की कड़ी गिद्ध हुए विलुप्त
जैव विविधता पर आने वाला संकट मंडल में भी गिद्धों के विलुप्तीकरण के तौर पर देखा जा सकता है। वन विभाग के मुताबिक मंडल में गिद्धों की संख्या शून्य हो चुकी है, जबकि जैव विविधता के लिए वह सबसे महत्वपूर्ण प्राणियों में से एक है। मृत जानवरों का मांस खाने के कारण गिद्धों को सफाई चेन की प्रमुख कड़ी माना गया है। वहीं गौरेया और कौवे भी जिले में दुर्लभ होते जा रहे हैं।

पलास की खेती कछुओं को पहुंचा रही नुकसान
डब्लूडब्लूएफ के संयोजक और कछुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाले डॉ. मोहम्मद आलम के मुताबिक नदी किनारे होने वाली पलास की खेती ने कछुओं को बहुत नुकसान पहुंचाया है। जमीन की जुताई से बड़ी संख्या में कछुओं के अंडे नष्ट हो जाते हैं।

जैव विविधता बचाने के लिए लोगों को आना होगा आगे
जैव विविधता बोर्ड उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. बी प्रभाकर बताते हैं कि जैव विविधता के संरक्षण के लिए लोगों को आगे आना होगा। सभी जिलों में प्रयास कर रहे हैं कि लोगों की भागीदारी इसमें बढ़ाई जाए। इसके लिए जैव विविधता रजिस्टर सभी ग्राम पंचायतों में व्यवस्थित करा रहे हैं।

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