Bareilly News: स्मार्ट सिटी में पानी की तरह बह गया पैसा, यह देखा ही नहीं पीने का पानी है कैसा

Bareilly News: स्मार्ट सिटी में पानी की तरह बह गया पैसा, यह देखा ही नहीं पीने का पानी है कैसा

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शब्या सिंह तोमर, बरेली, अमृत विचार। स्मार्ट सिटी बन चुके बरेली शहर और आसपास के इलाकों में लंबे समय से पानी में टीडीएस की जांच नहीं हुई है। जल निगम की लैब के इंचार्ज अनिल गंगवार कहते हैं कि उन्हें याद नहीं आता कि पिछले दो साल में शहरी क्षेत्र के पानी की गुणवत्ता की एक भी जांच उनकी लैब में हुई हो। 

उधर, वाटर प्यूरीफायर कंपनियों का दावा है कि शहर के कई इलाकों के भूजल में पिछले दो साल में ही टीडीएस दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गया है। रामपुर बाग जैसे पॉश इलाके में भी भूजल में टीडीएस की मात्रा कुछ ही समय में बढ़कर किसी औद्योगिक क्षेत्र के बराबर हो गई है।

वाटर प्यूरीफायर बेचने वाली कंपनी का दावा कहने को तो अनाधिकारिक है लेकिन सरकारी स्तर पर पानी की नियमित रूप से जांच न कराने की कोई नीति अस्तित्व में न होने की वजह से इस पर यकीन करने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। कंपनी के मुताबिक उसकी ओर से पिछले 12 साल से लगातार शहरी इलाकों में भूजल में टीडीएस की जांच कराई जा रही है। 

जो स्थिति सामने आ रही है, वह बेहद चिंताजनक है। रामपुर बाग में दो साल पहले तक भूजल में टीडीएस का स्तर 200 से 250 था जो अब 500 से 600 के बीच पहुंच गया है। यही स्थिति सिविल लाइंस के दूसरे इलाकों की भी है।

शहर के बाकी इलाकों की स्थिति और ज्यादा खराब है। बदायूं रोड पर भूजल में टीडीएस 700 से 900 और जोगीनवादा में एक हजार के पार पहुंच गया है जो मानव स्वास्थ्य के लिए कितना घातक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भोजीपुरा इंडस्ट्रियल एरिया के भूजल में भी टीडीएस सिर्फ 800 के करीब है। शहर से सटे सीबीगंज में स्थिति कुछ नियंत्रण में है। यहां भूजल में टीडीएस का स्तर 400 से 500 के ही बीच है।

रामपुर बाग के अस्पतालों में बने सोक पिट भूजल को कर रहे हैं प्रदूषित
सर्वे में पता चला है कि रामपुर बाग के कई अस्पतालों में अंडरग्राउंड सोक पिट बनाकर अपने वेस्ट को ठिकाने लगाया जा रहा है। यही वजह है कि अस्पतालों के आसपास भूजल की स्थिति और ज्यादा खराब है। कहीं-कहीं तो पानी का रंग लाल तक हो गया है। रामपुर बाग पॉश कॉलोनी है और यहां ज्यादातर लोग पीने के लिए आरओ का ही इस्तेमाल करते हैं, इस वजह से अंदाजा नहीं होता कि यहां पानी कितनी तेजी से प्रदूषित हो रहा है। नल का पानी इस्तेमाल करने वालों की सेहत के लिए यह ठीक नहीं है।

रामगंगा भी संकट में
कई औद्योगिक इकाइयों का दूषित पानी बदायूं रोड पर रामगंगा नदी में पहुंचने से उसके पानी की गुणवत्ता गिर रही है। दो महीने रामगंगा के पानी में आर्सेनिक के भी कण पाए गए थे। इसी कारण रामगंगा के आसपास के इलाकों में बच्चों में त्वचा की गंभीर बीमारियां पाई जा रही हैं।

कई देशों में क्लोरिनेशन प्रतिबंधित
भारत में पानी को शुद्ध करने के लिए अब तक उसका क्लोरिनेशन किया जाता है, जबकि कई देशों में क्लोरीन युक्त पानी पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। कोई भी वाटर प्योरिफायर अगर एक गिलास पानी फिल्टर करता है तो इसके लिए तीन गिलास पानी बर्बाद करता है। पानी की बर्बादी भी संकट बन रही है।

भूजल दोहन एक गंभीर समस्या है, इसी कारण टीडीएस जैसी पानी संबंधी समस्याएं देखने को मिलती हैं। शहर में जल संरक्षण के लिए कई जगह अमृत सरोवर और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नगर निगम ने बनवाए हैं। लोगों को पानी की कम से कम बर्बादी करनी चाहिए। -सौरभ श्रीवास्तव,जीएम, जलकल विभाग

दो साल में शहरी क्षेत्र में मुश्किल से ही पानी की जांच किसी ने कराई है। इसलिए शहरी क्षेत्र के भूजल के टीडीएस की जानकारी नहीं है। ग्रामीण इलाकों में जल निगम का काम चल रहा है, वहां रोज टेस्टिंग की जा रही है। फूड रेस्टोरेंट के लिए पानी की टेस्टिंग आवश्यक कर दी गई है। - अनिल गंगवार, लैब इंचार्ज जल निगम

पानी में टीडीएस कम हो तब भी मुश्किल और ज्यादा हो तब भी
जिला अस्पताल के फिजिशियन डॉ. रिषभ शुक्ला कहते हैं कि टीडीएस वह इकाई है जिससे पानी की गुणवत्ता का आंकलन होता है। यदि पानी में टीडीएस 50 से लेकर 300 तक है तो वह हमारे शरीर के लिए बहुत अच्छा होता है। हमारा शरीर 500 तक टीडीएस को भी एक हद तक झेल सकता है लेकिन इससे ज्यादा टीडीएस घातक हो सकता है। ऐसे पानी के इस्तेमाल से लूज मोशन, डायरिया,नॉजिया जैसी कई परेशानियां होने लगती हैं। एक हजार के तक टीडीएस पहुंचने के बाद दांतों में गंभीर समस्याएं होने लगती हैं। 

अगर पानी में कैल्शियम और पोटेशियम ज्यादा आने लगता है तो दिल की समस्याएं भी होने लगती हैं। टीडीएस 50 से नीचे जाता है तो भी शरीर को दिक्कत होती है। ऐसे में इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम, कब्ज के साथ शरीर में कैल्शियम और पोटेशियम जैसे तत्वों की कमी होने लगती है।आरओ का पानी ठीक है क्योंकि वह पानी में टीडीएस को रेगुलेट कर देता है। उबाला हुआ पानी पीना भी ठीक है क्योंकि वह सबसे शुद्ध होता है।

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