बाराबंकी : पर्चा बनवाने से लेकर डाक्टर को दिखाने तक हर कदम पर दुश्वारियां 

मंडल में इलाज और सुविधाओं के नाम पर पहला स्थान पाने वाले जिला अस्पताल का हाल-बेहाल 

बाराबंकी : पर्चा बनवाने से लेकर डाक्टर को दिखाने तक हर कदम पर दुश्वारियां 

श्रीनिवास त्रिपाठी, अमृत विचार। जिला पुरूष अस्पताल में मरीजों को पर्चा बनवाने से लेकर डाक्टरों को दिखाने के लिए हर कदम पर दुश्वारियां ही दुश्वारियां उठानी पड़ रही हैं। नौपता की वजह से प्रचंड गर्मी में मरीज बड़ी आस लेकर अस्पताल आते हैं कि उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। लेकिन यहां तो कदम कदम मरीजों को दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। आलम यह है कि जिला पुरूष अस्पताल में मरीजों को शीतल जल की व्यवस्था तक उपलब्ध नहीं है। वाटर कूलर तो लगे हैं पर पानी गर्म दे रहे हैं। मरीजों और उनके तीमारदारों को बाहर से पानी की बोतल खरीदना पड़ रहा है।

ओपीडी में कहीं डाक्टर मौजूद हैं तो कहीं अप्रेंटिस कर रहे चिकित्सकों के सहारे मरीज का इलाज चल रहा है। इसके अलावा तमाम डाक्टरों के साथ प्राइवेट लड़के मरीजों को बाहर की दवा भी लिखते मिले। अमृत विचार के संवाददाता ने जब जिला पुरूष अस्पताल का मौका मुआयना किया तो पर्चा बनवाने से लेकर चिकित्सकों को दिखाने और दवा लेने तक मरीज कदम कदम पर दिक्कतों का सामना करते दिखाई पडे। हमारे संवाददाता ने जो देखा उस असलियत को जिला प्रशासन और पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश की है। जिससे प्रशासन का ध्यान मरीज की मूलभूत सुविधाओं की तरफ जा सके।

ट्रामा सेंटर (1) 

समय सुबह 11:30 बजे :  पर्चा बनवाने के लिए लम्बी कतार 

सोमवार को सुबह होते ही मरीजों का अस्पताल आना शुरू हो गया। अस्पताल खुलने के बाद पहले कतारबद्ध होकर मरीज पर्चा बनवाने पहुंचे। पर्चा बनवाने वाले काउंटर पर मरीजों की भयंकर भीड़ दिखी। मरीजों की अपेक्षा काउंटर पर पर्चा बनाने वाले कर्मचारी कम दिखे। महज चार कर्मचारी पर्चा बनाते हुए देखे गए। जिसके चलते इस भयंकर गर्मी में मरीजों को घंटों तक लाइन में धक्के खाने पड़े।

समय सुबह 11:45 बजे : अस्पताल में फार्मास्युटिकल कम्पनियों का संजाल

जिला अस्पताल में फार्मास्युटिकल कम्पनियों का संजाल फैला हुआ है। ओपीडी में चिकित्सकों और उनके साथ बैठे प्राइवेट लड़कों द्वारा द्वारा मेरीजों को छोटे पर्चे पर बाहर की दवाइयां लिखी जा रही थीं। चिकित्सकों के पास फार्मास्युटिकल कंपनी के रिप्रेजेंटेटिव बैठकर छोटी पर्ची पर धड़ल्ले से दवाइयां लिख रहे थे। लेकिन न तो जिला अस्पताल प्रशासन का ध्यान इधर जा रहा है और न ही जिले के अन्य जिम्मेदार अधिकारियों का। यही कारण है कि दूर दराज के मरीजों को बाहर से महंगी दवाईयां लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है। डीएम सत्येन्द्र कुमार ने बाराबंकी में तैनाती होने के बाद शुरुआत में ही अस्पताल का दौरा किया तो व्यवस्थाएं जरूर थोड़ा पटरी पर आई थीं। लेकिन फार्मास्युटिकल कंपनियों का काकस टूटने का नाम नहीं ले रहा।

वार्ड (1)

समय 11:55 बजे : ओपीडी में मरीजों को दिखाने को लेकर जद्दोजहद 

मरीज अपनी बीमारी को लेकर ओपीडी में लाइन लगाए खड़े देखे गये। वरिष्ठ फीजिशियन डाक्टर राजेश कुशवाहा एक-एक कर मरीजों को देखते मिले। मगर अन्य डाक्टरों की जगह अधिककतर अप्रेंटिस कर रहे कम उम्र के चिकित्सक और प्राइवेट लड़के ही नजर आये। यानी इन्हीं के भरोसे मरीजों का इलाज किया जा रहा था। आधे विभागों की ओपीडी अप्रेंटिस कर रहे नवयुवक चिकित्सकों के भरोसे ही चल रहा था। पूछने पर पता चला कि डाक्टर इमरजेंसी में गंभीर रोगियों को देखने गये हैं। लेकिन मरीजों के मुताबिक जिला अस्पताल का यह हाल हमेशा ही रहता है। डाक्टर किसी न किसी बहाने के अपने कमरे से हमेशा गायब ही रहते हैं।

समय दोपहर 12:00 बजे : अल्ट्रासाउंड कराने के लिये घंटों करना पड़ रहा इंतजार

जिला पुरूष अस्पताल में मरीजों को अल्ट्रासाउंड के लिए लम्बा इन्तजार करना पड़ रहा है। अल्ट्रासाउंड कराने के लिए सुबह से ही भीड़ लग जाती है। जिला मुख्यालय से करीब चालीस किलोमीटर दूर से आई मरीज रिंका कुमारी पेट दर्द से पीड़ित मिलीं। सुबह आठ बजे पहुंच गई थीं। यही हाल लखईचा से आई 12 वर्षीय पूजा का था। इस तरह न जाने कितने मरीज थे जो अपना अल्ट्रासाउंड कराने के लिए नंबर के इंतजार में भूखें प्यासे बैठे थे। स्टाफ की कमी के कारण यहां मरीजों को दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। यहां बारह बजे तक 75 अल्ट्रासाउंड हो चुके थे। जबकि सैकड़ों अपने नंबर आने के इंतजार में भूखे प्यासे बैठे रहे।

समय दोपहर 12:20  स्थान- ट्रामा सेंटर

इमरजेंसी में मरीजों के स्ट्रेचर की सुविधा नजर आई, लेकिन गम्भीर मरीजों के लिए स्ट्रेचर पर लाने और ले जाने के लिए कोई वार्ड ब्वाय मोजूद नहीं दिखा। तीमारदारों अपने मरीज को खुद स्ट्रेचर से खींच कर ले जाते दिखा पड़े। ऐसे में गैर अनुभवी तीमारदारों के स्ट्रेचर खींचने की जरा सी लापरवाही मरीज की दिक्कतों को और बढ़ा भी सकती है।

समय दोपहर 12:45 मिनट : इमर्जेंसी वार्ड में मरीजों को झेलनी पड़ रही भीषण गर्मी 

इमरजेंसी में तीन वार्ड हैं। दूसरी मंजिल पर मरीज अपने बेड पर पसीने से लथपथ दिखे। तीनों वार्ड के पंखे केवल घूम रहे हैं। कुछ पंखे खराब थे, जिनको ठीक कराने वाला कोई नहीं दिखा। तीनों वार्ड में कूलर तो लगे हैं पर कूलर में पानी न होने की वजह से गर्म हवा फेंकते मिले। मरीजों के साथ बैठे तीमारदारों ने बताया कि गर्मी से बुरा हाल है। टायलेट गन्दे पड़े हैं। दरवाजा टूटा है। ऐसे में मरीजों का कहना है कि एक तो बीमारी ऊपर से ये गर्मी और टायलेट से आ रही बदबू हम लोगों को और बीमार कर देगी।

समय दोपहर 1:20 बजे 

इमर्जेंसी से निकलते ही तेज प्यास की वजह से व्याकुल अमृत विचार के संवाददाता ने ठंडे पानी के लिए इमरजेंसी वार्ड के सामने लगे वाटर कूलर को खोला तो उसमें से गर्म पानी निकल रहा था। उससे आगे अस्पताल के रोड परिसर पर जब दूसरे दो लगे वाटर कूलर पर निगाह पड़ी तो वहां पहुंचे। कुछ तीमारदार पानी बोतल में यह कहते हुए भर रहे थे कि इतना पैसा कहां है कि बार-बार बीस रूपए की बोतल खरीद पाऊं। रिपोर्टर ने जब पूछा पानी ठंडा है तो तीमारदार बोले इस गर्मी में भी यहां ठंठा पानी नसीब नहीं।

जिला अस्पातल के सीएमएस डा. बृजेश कुमार सिंह ने बताया कि तकनीकी खराबी से हो सकता है वाटर कूलर खराब हो गया हो। जो भी कमियां संज्ञान में आई हैं उन्हें दुरुस्त कराया जाएगा। कूलर में पानी की व्यवस्था की जाती है। खत्म होने के बाद दोबारा क्यों नहीं भरा इसको लेकर जिम्मेदार पर कार्रवाई की जाएगी और सख्ती से पालन कराया जायेगा। इमरजेंसी में वार्ड ब्वाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह मरीज को स्ट्रेचर पर लेकर जाएं। इसके स्पष्ट निर्देश दिए गये हैं। वार्ड ब्वाय के संबंध में जांच कराई जाएगी। चिकित्सकों को बोला गया है कि मरीजों को जेनेरिक साल्ट का नाम पर्चे पर लिख कर दें। ऐसा नहीं हो रहा है तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और सख़्ती से पालन कराया जायेगा।

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