बरेली: प्रतिस्पर्धा की मार, एमएसएमई में 25 फीसदी लोन एनपीए
बरेली, अमृत विचार: बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, आर्थिक मंदी और कोरोना का असर सबसे ज्यादा असर छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ा है। इन्हीं तीनों फैक्टरों ने मुनाफे की कमी और उधार चुकाने की असमर्थता इस कदर बढ़ाई है कि एमएसएमई सेक्टर जूझने के लिए मजबूर हो गया। इस सेक्टर में दिए गए कुल ऋणों में से 25 फीसदी का एनपीए हो जाना यही कहानी बयां कर रहा है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 में बैंकों की ओर से बट्टे खाते में डाले गये 2571 करोड़ में से 663.42 करोड़ एमएसएमई सेक्टर में फंस गए हैं। यह धनराशि 2571 करोड़ के कुल एनपीए का करीब 25 प्रतिशत है। बैंक अधिकारियों के अनुसार इसके पीछे उद्यमियों की वित्तीय स्थिति में सुधार न हो पाना प्रमुख कारण है। इसी वजह से बैंकों से लिए गए ऋणों की अदायगी नहीं हो पाई और एनपीए रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गया।
एमएसएमई के लिए कॉरपोरेट हाउस बन गए हैं खतरा
उद्यमी एवं व्यापारी लवीश कपूर का कहना है कि छोटे उद्यमियों के लिए सबसे बढ़ी समस्या कॉरपोरेट हाउस का मार्केट में उतरना है। प्रमुख शहरों में बड़ी कंपनियाँ के मॉल खुल गए हैं जहां ग्राहकों को एक ही छत के नीचे सारा सामान उपलब्ध है। वे खुद ही इसका उत्पादन करते हैं। इसी कारण एमएसएमई सेक्टर से अलग-अलग छोटे और मझोले दुकानदारों के बीच की चेन टूट रही है। लगातार बढ़ते दबाव के कारण छोटे-मझोले उद्यमी अपने कारोबार को बचाने के लिए बैंक से ऋण लेते हैं और उसे चुकाने के लिए अपने मूल में से ही किस्त भरते हैं और आखिर में कर्ज में डूब जाते हैं।
एमएसएमई सेक्टर को भी किसानों की तरह सब्सिडी दे सरकार
बरेली कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग की प्रोफेसर डॉ. शिखा वर्मा कहती हैं कि देश की आर्थिक तरक्की के लिए छोटे व्यापारियों और उद्यमियों का सशक्त होना बहुत जरूरी है। एमएसएमई सेक्टर में बढ़ते एनपीए को कम करने के लिए सरकार को इन उद्यमियों को किसानों की तरह ऋण में सब्सिडी देनी चाहिए। इसके साथ एमएसएमई सेक्टर के लिए स्पेसिफिक इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाकर राहत दी जा सकती है।
आपसी प्रतिस्पर्धा से मुकाबले के लिए भी सरकार को उनका सहयोग करना चाहिए। यह भी नोटिस किया गया है कि छोटे उद्यमियों को किसानों की दुर्दशा से भी कुछ नुकसान हुआ है। उनका अधिकांश कच्चा माल कृषि क्षेत्र से आता है। कृषि कानूनों के विरोध से कच्चे माल की मांग बढ़ी है जिसका फायदा बड़े उद्योगपति उठाकर जमाखोरी शुरू कर देते हैं। इसका असर भी छोटे उद्यमियों पर पड़ता है। इस पर सरकार को कुछ सख्त नियम बनाने चाहिए।
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