पीलीभीत: दो ऐतिहासिक गेटों की बिखरती काया को मिलेगी संजीवनी, संरक्षण में लेगा पुरातत्व विभाग...17वीं शताब्दी में कराया गया था निर्माण

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Published By Vishal Singh
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पीलीभीत, अमृत विचार। ऐतिहासिक विरासतों के सानिध्य में जहां पीलीभीत की संस्कृति फली फूली, मगर वक्त बीतने के साथ ही कभी सभ्यता की पालनहार बनीं यह ऐतिहासिक धरोहरें आज खुद अपनी काया देखकर आंसू बहा रही हैं। इन रोगी हुई कायाओं ने सिस्टम एवं सियासत के अलंबरदारों की ओर भी टकटकी लगाई, मगर मदद न मिलने से इन धरोहरों की काया जर्जर होने के साथ जमींदोज होती चली गई।

फिलहाल अब जनपद की ऐतिहासिक धरोहरों को संजीवनी देने की कवायद शुरू की जा चुकी है। पुरातत्व विभाग ने 17वीं शताब्दी में बने शहर के बरेली एवं कोतवाली दरवाजा को संरक्षण में लेने की तैयारी शुरू कर दी है। इसको लेकर प्रदेश के संस्कृति अनुभाग ने अधिसूचना भी जारी कर दी है।

जनपद में ब्रिटिश एवं मुगल काल के दौरान कई इमारतों का निर्माण कराया गया था। यह प्राचीन धरोहरें ही शहर ही एक पहचान भी है, मगर सिस्टम की अनदेखी के चलते अधिकांश प्राचीन धरोहरें धूल धूसरित होती चली गई। कुछ बुद्धिजीवियों ने इन प्राचीन धरोहरों की बिगड़ती जा रही काया को लेकर इनका अस्तित्व बचाने की गुहार भी लगाई , मगर बुद्धिजीवियों की आवाज को शोर समझकर अनसुना कर दिया गया। इनमें शहर स्थित प्राचीन चार दरवाजे भी शामिल हैं। देखरेख के अभाव में दो दरवाजे कुछ साल पहले ही धराशायी हो चुके हैं।

अब मात्र बरेली और कोतवाली दरवाजा ही बचा हैं, मगर इन दोनों प्राचीन दरवाजों की हालत बेहद दयनीय होती जा रही है। प्राचीन धरोहरों को दयनीय हालत देख शहर निवासी युवा अधिवक्ता शिवम कश्यप ने इनके सुधार का बीड़ा उठाया। वर्ष 2018 में उन्होंने पुरातत्व विभाग को पत्र भेजकर इनके संरक्षण की बात कही थी। इसके बाद पुरातत्व विभाग ने अपनी ओर से कार्रवाई शुरू की। जिला प्रशासन से दरवाजों संबंधी अभिलेख मांगे गए।

वहीं, सर्वे आदि को लेकर चली लंबी प्रक्रिया के बाद अब पुरातत्व विभाग ने शहर के बरेली और कोतवाली दरवाजे को संरक्षण में लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसको लेकर प्रदेश के संस्कृति अनुभाग की संयुक्त सचिव उमा द्विवेदी ने संरक्षित स्मारक घोषित करने को अधिसूचना भी जारी कर दी है। जारी अधिसूचना में आपत्तियां मांगी गई है। आपत्ति प्रस्तुत करने का समय स्मारक पर चस्पा होने की दिनांक से एक माह के भीतर निर्धारित किया गया है।

सुरक्षा की दृष्टि से बनवाए गए थे चार दरवाजे
मुगलकाल फिर उसके ब्रिटिश काल के दौरान जनपद में तमाम इमारतों का निर्माण कराया गया, जो पीलीभीत की शान के रूप में जानी जाने लगी। 17वीं शताब्दी के दौरान शहर में रोहेला सरदार हाफिज रहमत खां द्वारा शहर में दिल्ली की जामा मस्जिद की तर्ज पर जामा मस्जिद, गौरी शंकर मंदिर द्वार का निर्माण कराया था। प्राचीन इमारतों में शहर के चार दरवाजे भी शामिल हैं। गजेटियर के अनुसार इन चार दरवाजों का निर्माण 1734 ईसवी में अली मोहम्मद खान ने सुरक्षा के लिहाज से कराया था।

अली मोहम्मद खान हाफिज रहमत खां के सूबेदार हुआ करते थे। इसमें दो प्राचीन दरवाजे देखरेख के अभाव में पहले भी धराशायी हो चुके हैं। आजादी के बाद इन दरवाजों में सरकारी कार्यालयों के अलावा पुलिस चौकी भी संचालित की जाती थी। इधर अब बरेली और कोतवाली दरवाजा की शेष बचे हैं। इन दोनों दरवाजों की हालत भी बेहद जर्जर हो चुकी है।

कुछ यूं चली संरक्षण की कवायद
प्राचीन दरवाजों के संरक्षण को लेकर शहर के युवा अधिवक्ता शिवम कश्यप ने छह साल पहले मुहिम शुरू की थी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में उन्होंने दरवाजों के संरक्षण को लेकर पुरातत्व विभाग से पत्राचार किया था। राज्य पुरातत्व विभाग ने दोनों दरवाजों का निरीक्षण करने के बाद 26 अक्टूबर 2018 को तत्कालीन डीएम को पत्र भेजकर दोनों दरवाजों के जीर्णोद्धार को आवश्यक बताते हुए जिला योजना के माध्यम से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया। 20 जून 2023 को राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा पत्र भेजकर दोनों दरवाजों को राज्य पुरातत्व विभाग परामर्शदात्री समिति की बैठक में राजकीय संरक्षण में लिए जाने के प्रस्ताव की जानकारी दी गई।

दिसंबर 2023 में राज्य पुरातत्व विभाग परामर्शदात्री समिति की बैठक में दोनों दरवाजों को संरक्षण में लेने की संस्तुति की गई थी। सारी कार्रवाई पूरी होने के बाद अब पुरातत्व विभाग ने ऐतिहासिक बरेली और कोतवाली दरवाजे को संरक्षण में लेने की कवायद शुरू कर दी है। उम्मीद है कि अब दोनों प्राचीन धरोहरें एक बार फिर अपने पुराने अस्तित्व में लौट सकेगीं।

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