देहरादून: उत्तराखंड सरकार का बड़ा कदम, मदरसों में संस्कृत अनिवार्य
देहरादून, अमृत विचार। उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने मदरसों में संस्कृत को अनिवार्य करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस फैसले के तहत, अब मदरसों में बच्चे संस्कृत की पढ़ाई करते हुए नजर आएंगे, जिसके लिए शिक्षकों की भूमिका पंडित निभाएंगे। सरकार के इस कदम पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
सहारनपुर के मदरसा संचालकों ने इस पहल का स्वागत किया है। मौलाना मोहम्मद याकूब ने कहा कि इसमें कोई हर्ज नहीं है। उनका मानना है कि विभिन्न भाषाओं का ज्ञान व्यक्ति की क्षमताओं को निखारता है। यदि सरकार इस्लामिक शिक्षा के साथ-साथ अन्य भाषाओं का भी प्रचार कर रही है, तो यह सकारात्मक कदम है।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में 1500 मदरसे हैं, जिनमें से 500 सरकारी अधीनता में हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार सिलेबस में कुछ नया जोड़ना चाहती है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इससे छात्रों को लाभ होगा, विशेषकर जब सरकार उन्हें नौकरी के अवसर प्रदान करेगी।
वहीं, आम आदमी पार्टी के विधायक हाजी यूनुस ने कहा कि संस्कृत या कोई अन्य भाषा जानना सभी का मौलिक अधिकार है। उन्होंने उत्तराखंड सरकार से अनुरोध किया कि मदरसों के साथ-साथ माइनॉरिटी स्कूलों में भी उर्दू को अनिवार्य किया जाए। उनका मानना है कि इतिहास में गुरुकुलों में संस्कृत और उर्दू दोनों की पढ़ाई होती थी, और यह आज भी आवश्यक है।
हाजी यूनुस ने नफरत फैलाने वाली मानसिकता की निंदा करते हुए कहा कि सभी भाषाओं को पढ़ने की आजादी होनी चाहिए। उनका कहना है कि दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में जो सकारात्मक कदम उठाए हैं, उन्हें अनुकरणीय बनाना चाहिए।
इस प्रकार, उत्तराखंड सरकार का यह निर्णय सामाजिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। सभी वर्गों के लिए शिक्षा का समान अवसर सुनिश्चित करना आज की आवश्यकता है, और इसके संभावित प्रभावों पर चर्चा जारी है।
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