Christmas 2024: लखनऊ में इटली से चलकर नेपाल के रास्ते भारत आया ईसाई धर्म

Amrit Vichar Network
Published By Muskan Dixit
On

बहू बेगम के इलाज की फीस में नवाब शुजाउद्दौला ने दी थी जमीन

शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ, अमृत विचार। लखनऊ में मसीह धर्म इटली से चलकर तिब्बत और नेपाल के रास्ते आया। शैवेलियर आस्टिल मैलकम लोबो ने अपनी पुस्तक ग्रोथ एंड डेवलपेंट आफ दि कैथलिक डायसिस आफ लखनऊ में ईसाई धर्म की शुरुआत का विस्तार से वर्णन किया है।

ईसाई धर्म लखनऊ कैसे पहुंचा यह समझने के लिए पहले हमें यह समझना होगा कि ईसाई भारत कैसे आये। लोबो की किताब बताती है कि सन 1703 में फादर फ्रांसिस ओरजियो ईसाई धर्म के प्रचार के लिए इटली से तिब्बत आये थे। तिब्बत में मिशन स्टेशन स्थापित कर ईसाई धर्म का प्रचार शुरू हो गया। तिब्बतियों का धर्म परिवर्तन कर उन्हें ईसाई बनाया जाने लगा। इसकी भनक लामाओं तक पहुंची तो उन्होंने इस मिशन स्टेशन के खिलाफ ऐसा मजबूत मोर्चा खोला कि कैथलिक मिशनरियों को 1745 में तिब्बत छोड़कर भागना पड़ा। तिब्बत से निकलकर यह मिशन नेपाल पहुंच गया और फिर काठमांडू में उनका मुख्यालय स्थापित हो गया। नेपाल में भी धर्म परिवर्तन की लहर चली तो नेपाल ने 1769 में नेपाल से भी खदेड़ दिया गया। मिशन ने तिब्बत में 78 और नेपाल में 150 ईसाई तैयार किये।

Untitled design - 2024-12-24T113411.771

बिहार में स्थापित हुआ पहला मिशन स्टेशन
नेपाल से निकाले जाने के बाद कैथलिक मिशनरी बिहार पहुंच गए और बेतिया शहर में मिशन स्टेशन स्थापित किया। यहां मसीही धर्म का प्रचार शुरू हुआ तो काफी तेजी से सफलता मिली। वहां से वह पटना और फिर इलाहाबाद (प्रयागराज) पहुंचे। इलाहाबाद के बाद फैजाबाद का रुख किया। इस मिशन ने तिब्बत और नेपाल में मुंह की खाई थी, लेकिन भारत में उनके लिए सब कुछ बहुत आसान था।

नवाब से मिली जमीन पर बसाया था पादरी टोला
ईसाई मिशनरियों के लखनऊ पहुंचने के इतिहास पर बात की जाए तो अवध के नवाब शुजाउद्दौला की बेगम उम्मद-उल-जोहरा बहुत बीमार थीं। उन्हें बहू बेगम के नाम से जाना जाता था। उन्हें कारवंकल नाम की बीमारी हो गई। कोई भी डॉक्टर, हकीम और वैद्य उन्हें ठीक नहीं कर पाया। किसी ने नवाब को फादर जोजफ का नाम सुझाया। बादशाह परेशान थे ही, फ़ौरन फादर जोजफ को बुला लिया। उनके इलाज से बहू बेगम पूरी तरह से ठीक हो गईं। नवाब ने फादर जोजफ को इनाम देने की घोषणा की। जोजफ ने इनाम में लखनऊ में 20 बीघा जमीन मांगी। उन्हें गोलागंज में 20 बीघा जमीन मिल गई। फादर जोजफ ने यहां पादरी टोला बसाकर अपने धर्म के अन्य लोगों को बुला लिया। इस तरह से लखनऊ में अपना मिशन स्टेशन स्थापित किया। जो काम तिब्बत, काठमांडू, बेतिया, पटना, इलाहाबाद और फैजाबाद में चल रहा था, उसकी नींव लखनऊ में भी पड़ गई। ईसाई मिशनरियों ने भारत में खुद को स्थापित करने के लिए जो रास्ते चुने इस पर डॉ. नरेश सिंह ने भी बड़ी बारीकी से शोध किया है।

ब्रिटिश हुकूमत आने से पहले जम गई थीं ईसाईयत की जड़ें
ब्रिटिश हुकूमत हिन्दुस्तान में कब्जा जमाने आई तब तक यह मिशन स्टेशन भारत में ईसाई धर्म का काफी प्रसार कर चुके थे। उन्होंने कुछ चर्च भी स्थापित कर लिए थे। लखनऊ में मडियांव छावनी और रेजीडेंसी में बड़े चर्च थे। 1857 की क्रांति में यह चर्च खत्म हो गये लेकिन ब्रिटिश हुकूमत बनने के बाद चर्चों का पूरा जाल तैयार हो गया। लखनऊ में कई ऐसे चर्च हैं जिनके संचालन के लिए आजादी के 50 साल के बाद तक ब्रिटेन से पैसा आता रहा। अब वहां से पैसा आना बंद हो गया है लेकिन पैसा कैसे आये यह भी वहीं से बताया गया और गाइडलाइन अभी भी ब्रिटेन से ही तय होती है।

यह भी पढ़ेः भ्रष्टाचार को लेकर सत्ता पक्ष के विधायक, मंत्रियों पर हमलावर

संबंधित समाचार