तुम तो लौह पुरुष हो…

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आज सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन दिवस है। सरदार को मुख्यतः देसी रियासतों के विलीनीकरण का श्रेय देते जनमानस ने लौह पुरुष का खिताब सौंप दिया। दूसरे सबसे बड़े सरकारी पद पर बैठकर निर्णयों को लागू कराना छोटा काम नहीं था। वह वल्लभभाई पटेल होने का यही समूचा अर्थ नहीं है। उन्होंने अंगरेजों की खिलाफत …

आज सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन दिवस है। सरदार को मुख्यतः देसी रियासतों के विलीनीकरण का श्रेय देते जनमानस ने लौह पुरुष का खिताब सौंप दिया। दूसरे सबसे बड़े सरकारी पद पर बैठकर निर्णयों को लागू कराना छोटा काम नहीं था। वह वल्लभभाई पटेल होने का यही समूचा अर्थ नहीं है। उन्होंने अंगरेजों की खिलाफत में बारदोली किसान सत्याग्रह के जरिए अनोखी अलख जगाई थी। किसान को राजनीति के केन्द्र में रखने के गुर गांधी के अतिरिक्त सरदार में थे। वल्लभभाई ने वक्तन बावक्तन जवाहरलाल नेहरू की कई नीतियों और फैसलों को प्रभावित और नियंत्रित किया। नेहरू की भावुकता और पटेल का विवेक मिलकर भारतीय राजनीति के सर्वोच्च नेतृत्व की गरिमा थे।

कम लोग जानते होंगे कि भारत विभाजन के अंतिम निर्णय में सरदार पटेल ने निर्णायक भूमिका निभाई। विभाजन को लेकर लिखी किताबों में डा. राममोहर लोहिया द्वारा लिखा गया वृत्तांत प्रामाणिक होने के कारण प्रश्नांकित नहीं हो सका। बकौल लोहिया सरदार ने बंद कमरे में बैठकर लगभग दो घंटे तक गांधी पर विभाजन को मान लेने का निर्णायक दबाव डाला।

मनोवैज्ञानिक युद्ध में पराजित गांधी बंगाल की ओर मुखातिब हुए। देश नेहरू-पटेल युति के फैसले के कारण विभाजित हो गया। गांधी की हत्या के बाद नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कड़े प्रतिबंध लगाने चाहे। पटेल ने भी हिंसा और सांप्रदायिकता का समर्थन नहीं किया। संघ से माफीनामे लिखवाए गए। फिर भी सरदार ने कूटनीतिक बुद्धि का परिचय देते हुए संघ नेतृत्व और स्वयंसेवकों को दिशाहारा देशभक्त करार दिया। इसी निर्णय के कारण संघ को अपने काम और विचार का विस्तार करने का सुयश मिला।

कांग्रेस कार्यसमिति के कई प्रस्तावों में पटेल के दृढ़निश्चय की झलक है। अंगरेजों द्वारा स्थापित वरिष्ठ भारतीय नौकरशाही के ढांचे और विश्वसनीयता को बनाए रखने में सरदार का योगदान सबसे असरदार है। वे मौलिक चिंतक नहीं थे लेकिन अपनी समझ के प्रति ईमानदार थे। संविधान सभा ने सरदार पटेल को नागरिकों के लिए मूल अधिकारों का ब्यौरा तय करने का काम सौंपा था। साथ साथ आदिवासियों के अधिकारों को लेकर भी कई प्रारूप पाठ तैयार करने थे। संविधान में मूल अधिकार नकारात्मक भाषा में लिखे गए हैं। अर्थात यदि वे अधिकार सरकार या अन्य प्रतिष्ठान द्वारा छीने जाएं तो न्यायपालिका हस्तक्षेप करेगी।

सरदार को आदिवासी अधिकारों के लिए संवैधानिक ढ़ांचा रचने का समय ही नहीं मिला। संविधान सभा ने प्रारूप में पाचवां और छठवां अनुच्छेद जोड़कर उनमें आदिवासी अधिकारों को रेखांकित करने की कोशिश की। निपट ग्रामीण सादगी के सरदार पटेल की 184 फीट ऊंची मूर्ति देश से लोहा एकत्र कर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चीन से बनवाई गई है। सरदार भारतीय उद्योगों के समर्थक थे। सरदार की भारतीयता के आर्थिक सोच में उत्तराधिकारियों ने विदेशी दीमकें क्यों उगा दीं।