Putin India Visit: PM मोदी का पुतिन को स्पेशल गिफ्ट, 2011 में रूस में होने वाली थी बैन, मगर क्यों?

Amrit Vichar Network
Published By Muskan Dixit
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दो दिवसीय भारत दौरा न सिर्फ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का मंच बना, बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश के रूप में भी चमका। 4 दिसंबर 2025 की शाम, जब पुतिन दिल्ली के पलम एयरपोर्ट पर उतरे, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनकी अगवानी की – एक दुर्लभ प्रोटोकॉल ब्रेक, जो दोनों देशों की गहरी दोस्ती का प्रतीक था। हवाई अड्डे पर गर्मजोशी भरी मुलाकात के बाद दोनों नेता एक ही गाड़ी में सवार होकर 7, लोक कल्याण मार्ग पहुंचे। यहां पीएम मोदी ने पुतिन के सम्मान में निजी डिनर का आयोजन किया, जहां लगभग ढाई घंटे की बंद कमरे की बैठक में द्विपक्षीय मुद्दों पर गहन चर्चा हुई।

गीता का जादू: विवाद से विजय तक का सफर

इस बैठक का सबसे यादगार पल तब आया, जब पीएम मोदी ने पुतिन को रूसी भाषा में अनुवादित भगवद्गीता की एक प्रति भेंट की। यह महज एक किताब नहीं, बल्कि लाखों लोगों को प्रेरित करने वाले शाश्वत संदेश का प्रतीक था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पीएम ने लिखा, "राष्ट्रपति पुतिन को रूसी में गीता की प्रति भेंट की। गीता की शिक्षाएं दुनिया भर के करोड़ों लोगों को प्रेरणा देती हैं।" यह उपहार भारत-रूस संबंधों की मजबूती को रेखांकित करता है, जहां आध्यात्मिक मूल्य रणनीतिक हितों के साथ कदम मिलाते हैं।

लेकिन इस तोहफे की पृष्ठभूमि में एक चौंकाने वाली कहानी छिपी है। करीब 14 साल पहले, 2011 में, साइबेरिया के टॉम्स्क शहर में भगवद्गीता का रूसी संस्करण ही विवादों के घेरे में आ गया था। इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) द्वारा प्रकाशित "भगवद्गीता ऐज इट इज" – जो ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की टीका के साथ है – को स्थानीय अभियोजकों ने "उग्रवादी साहित्य" करार देने की कोशिश की। टॉम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी के विद्वानों की एक रिपोर्ट ने दावा किया कि प्रभुपाद की व्याख्याएं धार्मिक, सामाजिक और नस्लीय असहिष्णुता को बढ़ावा देती हैं। रूसी फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (एफएसबी) की शिकायत पर अदालत में मुकदमा चला, जिसमें किताब को "एक्सट्रीमिस्ट मटेरियल" लिस्ट में डालने की मांग की गई – एक ऐसी सूची जिसमें हिटलर की "माईं काम्फ" जैसी किताबें शामिल हैं।

यह विवाद रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च की इस्कॉन गतिविधियों को सीमित करने की कोशिशों से जुड़ा था, जो हरे कृष्णा आंदोलन को "कुलीनवादी संप्रदाय" मानते थे। टॉम्स्क में इस्कॉन के एक गांव निर्माण को भी इसी साल प्रतिबंधित कर दिया गया था। भारत में इस मुद्दे ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया – विपक्ष ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की, जबकि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस्कॉन को गीता के संदेश फैलाने के लिए सराहा। रूस के मानवाधिकार आयुक्त व्लादिमीर लुकिन ने इसे "धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला" बताया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 28 दिसंबर 2011 को टॉम्स्क की जज गैलिना बुटेंको ने याचिका खारिज कर दी, किताब को "हिंदू शास्त्र की एक व्याख्या" करार देते हुए।

पुराने घावों पर मरहम

आज, जब पीएम मोदी ने वही विवादित रूसी गीता पुतिन को सौंपी, तो यह इतिहास का एक करिश्माई मोड़ था। अतीत के विवादों को पीछे छोड़ते हुए, यह उपहार बताता है कि भारत-रूस ने न सिर्फ मतभेद सुलझाए, बल्कि उन्हें मजबूत साझेदारी का आधार बना लिया। पीएम ने एक्स पर आगे कहा, "अपने मित्र राष्ट्रपति पुतिन का 7, लोक कल्याण मार्ग पर स्वागत किया। भारत-रूस की दोस्ती समय की परीक्षा में खरी उतरी है, जिससे दोनों देशों के लोगों को अपार लाभ हुआ।" शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत, राजघाट पर श्रद्धांजलि और हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय बैठक के साथ दौरा जारी रहेगा।

यह भेंट न सिर्फ सांस्कृतिक पुल का प्रतीक है, बल्कि दर्शाती है कि कैसे आध्यात्मिक ग्रंथ वैश्विक कूटनीति के हथियार बन सकते हैं। क्या यह गीता का संदेश ही है – कर्म, ज्ञान और भक्ति का संतुलन? समय ही बताएगा, लेकिन भारत-रूस की यह मित्रता निश्चित रूप से प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी!

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