टाइम ट्रैवल : विज्ञान, अंतरिक्ष और समय का संगम

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Published By Anjali Singh
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समय मानव जीवन की सबसे रहस्यमय अवधारणा है। यह वह आयाम है, जो हर क्षण हमारे अस्तित्व को आगे बढ़ाता है, परंतु जिसे हम रोक नहीं सकते। सभ्यता की शुरुआत से ही मनुष्य यह समझने की कोशिश करता आया है कि क्या समय की गति को नियंत्रित किया जा सकता है, क्या अतीत या भविष्य में यात्रा संभव है? समय यात्रा या टाइम ट्रैवल का विचार इसी जिज्ञासा से जन्मा और आज यह कल्पना से निकलकर वैज्ञानिक शोध का गंभीर विषय बन चुका है। हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने समय और अंतरिक्ष को समझने के लिए कई नई खोजें की हैं। ऑस्ट्रिया की एकेडमी ऑफ साइंसेज और वियना विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने क्वांटम स्विच प्रयोग में एक फोटॉन को उसकी प्रारंभिक अवस्था में लौटाने में सफलता पाई। यह मानवीय स्तर की समय यात्रा तो नहीं है, लेकिन यह दर्शाता है कि सूक्ष्म कणों की दुनिया में समय की दिशा बदली जा सकती है। इसी तरह, एटम इंटरफेरोमीटर का उपयोग करते हुए वैज्ञानिक गुरुत्वाकर्षण के कारण होने वाले सूक्ष्म समय विस्तार को मापने की नई विधि विकसित कर रहे हैं। यह प्रयोग भविष्य में ऐसी घड़ियां बनाने का आधार बन सकता है, जो ब्रह्मांडीय स्तर पर भी समय की सटीकता को माप सकें।-राजेश श्रीनेत

कारण और परिणाम का संतुलन        

इसी साल 2025 में एक नए सिद्धांत में कोनिकल सिंगुलैरिटी वाले ब्रह्मांड की परिकल्पना की गई है, जिसमें समय एक चक्र के रूप में घूम सकता है। इस मॉडल के अनुसार यदि ब्रह्मांड की संरचना किसी स्थान पर कोन के आकार में मुड़ी हुई हो, तो वहां समय अपने आप पर लौट सकता है यानी अतीत और भविष्य आपस में जुड़ सकते हैं। एक अन्य अध्ययन ने ग्रैंडफादर पैराडॉक्स जैसी दार्शनिक उलझनों का वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि कोई प्रणाली समय चक्र से गुजरे, तो उसकी ऊर्जा और स्मृति स्वतः रीसेट हो जाती है। इस प्रकार, कारण और परिणाम का संतुलन बना रहता है और कोई विरोधाभास उत्पन्न नहीं होता। यह विचार क्वांटम संगति सिद्धांत से जुड़ा हुआ है। इसी बीच कॉस्मिक स्ट्रिंग की संरचनाओं पर भी अध्ययन चल रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि ऐसी अत्यंत घनी और पतली स्ट्रिंग्स ब्रह्मांड में मौजूद हों, तो वे अंतरिक्ष-काल को इस प्रकार मोड़ सकती हैं कि बंद काल वक्र बन जाए। इससे समय एक लूप में बदल सकता है, जिससे समय यात्रा सैद्धांतिक रूप से संभव हो जाती है।

अतीत में लौटना अभी भी रहस्य  

बीसवीं सदी की शुरुआत में अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत ने समय और अंतरिक्ष की हमारी समझ को पूरी तरह बदल दिया था। इससे पहले इन्हें दो अलग-अलग इकाइयां माना जाता था, परंतु आइंस्टीन ने बताया कि ये दोनों मिलकर अंतरिक्ष-काल (स्पेस-टाइम) नामक एक चार आयामी संरचना बनाते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, जब कोई वस्तु बहुत तेज गति से चलती है, तो उसके लिए समय धीमा हो जाता है। यही समय विस्तार (टाइम डाइलेशन) है, जो समय यात्रा की वैज्ञानिक नींव रखता है। यह विचार केवल सैद्धांतिक नहीं है। प्रयोगों में पाया गया है कि पृथ्वी के चारों ओर उपग्रहों में लगे परमाणु घड़ियों का समय जमीन की घड़ियों से थोड़ा धीमा चलता है। यह अंतर बहुत सूक्ष्म होता है, पर सटीक गणनाओं से इसकी पुष्टि हुई है। इसका अर्थ यह है कि जो वस्तु तेजी से चल रही है, उसके लिए समय की गति सचमुच बदल जाती है। ब्लैक होल के पास यह प्रभाव और अधिक स्पष्ट होता है। वहां गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि समय लगभग थम जाता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति ब्लैक होल के निकट कुछ मिनट बिताए और फिर पृथ्वी पर लौटे, तो यहां सैकड़ों वर्ष बीत चुके होंगे। इस प्रकार भविष्य की यात्रा सैद्धांतिक रूप से संभव है। परंतु अतीत में लौटना अब भी रहस्य है, क्योंकि भौतिकी के अधिकांश नियम समय की दिशा को उलटने की अनुमति नहीं देते। सापेक्षता सिद्धांत से ही वर्महोल की कल्पना उत्पन्न हुई, एक काल्पनिक सुरंग जो ब्रह्मांड के दो दूरस्थ बिंदुओं को जोड़ सकती है। यदि वर्महोल के दोनों सिरों पर समय की गति अलग-अलग हो, तो यह सैद्धांतिक रूप से समय में आगे पीछे जाने का मार्ग बन सकता है। हालांकि अब तक इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है, पर वैज्ञानिक इसे गणितीय समीकरणों के माध्यम से संभव मानते हैं।

मानव पर गहरा प्रभाव 

खगोलशास्त्रियों ने दूरस्थ क्वासरों के अध्ययन से यह भी पाया है कि अत्यधिक दूर स्थित ब्रह्मांडीय पिंडों की गतिविधियों में समय का प्रवाह अपेक्षा से धीमा दिखाई देता है। यह कॉस्मिक टाइम डाइलेशन का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यानी जैसे-जैसे ब्रह्मांड फैल रहा है, समय स्वयं भी फैल रहा है। क्वांटम स्तर पर भी समय को लेकर नई समझ विकसित हो रही है। वैज्ञानिकों का मत है कि समय और स्थान संभवतः ब्रह्मांड के मूल तत्व नहीं, बल्कि किसी गहरे क्वांटम ढांचे से उत्पन्न गुण हैं। यदि यह सत्य है, तो समय की दिशा और प्रवाह केवल हमारी चेतना का अनुभव हो सकता है, वास्तविक नहीं। समय यात्रा का विषय दार्शनिक दृष्टि से भी उतना ही रोचक है। यदि कोई व्यक्ति अतीत में जाकर कुछ बदल दे, तो क्या वर्तमान बदल जाएगा? यह प्रश्न मानव स्वतंत्र इच्छा और नियति दोनों पर गहरा प्रभाव डालता है। स्थिर ब्रह्मांड सिद्धांत के अनुसार अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों समान रूप से अस्तित्व में हैं, हम केवल एक बिंदु से दूसरे की ओर बढ़ते हैं। इस दृष्टिकोण में समय यात्रा केवल धारणा का विस्तार है, वास्तविक गमन नहीं। विज्ञान कथाओं में यह विषय हमेशा से लोकप्रिय रहा है। एचजी वेल्स की द टाइम मशीन से लेकर इंटरस्टेलर और टेनेट जैसी फिल्मों तक, समय यात्रा ने लोगों को न केवल मनोरंजन दिया है, बल्कि विज्ञान के प्रति जिज्ञासा भी जगाई है। इंटरस्टेलर में दिखाया गया ब्लैक होल का समय विस्तार वास्तविक आइंस्टीनियन गणनाओं पर आधारित था और वैज्ञानिक रूप से सही भी माना गया। इन सभी प्रयोगों और सिद्धांतों से यह स्पष्ट है कि समय केवल एक बहती हुई नदी नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की संरचना का सक्रिय तत्व है। हम अभी उसकी सतह को ही समझ पाए हैं, पर जैसे-जैसे तकनीक और सिद्धांत आगे बढ़ रहे हैं, भविष्य में समय को समझने और नियंत्रित करने की संभावना वास्तविक होती जा रही है। कुल मिलाकर समय यात्रा अब केवल कल्पना की सीमा में सीमित नहीं रही, बल्कि आधुनिक भौतिकी की गंभीर खोज बन चुकी है। चाहे यह कभी व्यावहारिक रूप ले या नहीं, यह मानवता को यह विश्वास अवश्य दिलाती है कि ब्रह्मांड में असंभव कुछ नहीं है।