काश्तकारों के नाम कैसे दर्ज है सरकारी जमीन! हाईकोर्ट ने बिठाई जांच-प्रमुख सचिव से मांगी रिपोर्ट
बहराइच में राजस्व विभाग के तत्कालीन कर्मचारी-अधिकारियों का हैरान करने वाला कारनामा
लखनऊ, अमृत विचार। जमीनों के मुकदमें लड़ते-लड़ते काश्तकारों की एड़ियां ऐसे ही नहीं घिस जातीं! राजस्व विभाग की कारस्तानी और सही सलाह के साथ ठोस पैरवी का अभाव, उन्हें ताउम्र इस जंजाल में फंसाए रखता है। बहराइच का एक ऐसा ही मामला हाईकोर्ट पहुंचा। जो केस सीलिंग से जुड़ा है। करीब 40 बीघा सरकारी जमीन काश्तकारों के नाम दर्ज है।
हाईकोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए जांच बिठा दी है। कोर्ट ने राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देशित किया कि इस हालात के कौन-कौन जिम्मेदार है? दो महीनों के भीतर इसकी जांच रिपोर्ट कोर्ट में सौंपी जाए। अब केस को थोड़ा डिटेल से समझिए। मामला बहराइच की कैसरगंज तहसील का है।
अल्लापुरवा गांव के विजयभान सिंह ने 1967 में पुरवा हिसामपुर गांव के हीरालाल से 6.25 एकड़ जमीन खरीदी थी। जमीन का गाटा संख्या 295 है। अगले साल 1968 में भूमि का दाखिल खारिज हो गया और विजयभान एवं अन्य इसके मालिक बन गए। 1972 में इस क्षेत्र में सीलिंग एक्ट प्रभावी हुआ। जिन किसानों के पास अधिक जमीनें थीं-वो सीलिंग में निकल गईं।
इसमें हीरालाल की 5.53 एकड़ जमीन भी सीलिंग में निकल गई। लेकिन राजस्व विभाग ने हीरालाल की वो जमीन (गाटा संख्या 295) सीलिंग में निकाली, जिसे वह पांच साल पहले विजयभान सिंह एवं अन्य के हाथों बेच चुके थे-उसका बैनामा करा चुके थे। इस तरह वर्ष 1976 में हीरालाल की दर्शाकर, विजयभान सिंह की गाटा संख्या 295 की 5.53 एकड़ भूमि सीलिंग में निकाल दी गई।
मतलब, सीलिंग में जमीन हीरालाल की निकलनी थी। निकाली भी उनके ही नाम से गई, लेकिन उस जमीन को-जिसे वह पहले ही विजयभान सिंह को बेच चुके थे। तकनीकी रूप से जो जमीन हीरालाल की थी ही नहीं-राजस्व विभाग ने उसे हीरालाल के नाम से सीलिंग में निकाल दिया। खरीदी गई जमीन सीलिंग में निकलने की खबर से विजयभान सिंह के पैरों तले की जमीन खिसक गई। वर्ष 1980 में वह राजस्व विभाग पहुंचे। चकबंदी में केस लड़ने लगा।
वर्ष 2021 में उनका केस खारिज हो गया। चकबंदी न्यायालय ने कहा कि उन्हें सीलिंग अथॉरिटी के पास जाना चाहिए था। मतलब, विजयभान सिंह को सीलिंग के तहत केस आगे बढ़ाना था, लेकिन वह चकबंदी में पैरवी करते रहे। वर्ष 2021 में चकबंदी से केस खारिज होने के बाद अब विजयभान सिंह राहत मांगने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच पहुंचे और एडवोकेट आशीष सिंह कुमार सिंह के जरिये कोर्ट में याचिका दाखिल की।
जस्टिस आलोक माथुर की एकल बेंच ने इस प्रकरण की सुनवाई की। सरकारी वकील, एडवोकेट डॉ. कृष्ण सिंह ने राज्य सरकार का पक्ष रखा। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए इस पूरे प्रकरण की जांच के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि, राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव दो महीने के भीतर इस मामले की जांच करें। सरकारी जमीन, निजी लोगों के नाम कैसे दर्ज है? इसका जिम्मेदार कौन है?
एडवोकेट आशीष कुमार सिंह के मुताबिक, माननीय कोर्ट ने बहुत महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। सरकार की जमीन अगर किन्हीं व्यक्ति विशेष के नाम पर दर्ज है-तो इससे धोखाधड़ी की आशंका बनी रह सकती है। अपने नाम दर्ज दिखाकर वो व्यक्ति ऐसी सरकारी जमीन की बिक्री कर सकता है, जबकि खरीददार को पता ही नहीं होगा कि उक्त भूमि सीलिंग की है।
