कैंपस का पहला दिन : अंग्रेजी ने बढ़ाई दुविधा, लेकिन हिम्मत ने कराई बीएससी

Amrit Vichar Network
Published By Monis Khan
On

मैंने जुलाई 1982 में अपने गांव बनकोट, पिथौरागढ़ से करीब 12 मील पैदल चलकर नैनीताल के लिए बस पकड़ी। शाम करीब 4 बजे के आसपास जब सरोवर नगरी नैनीताल पहुंचा तो तब चारों ओर कोहरा ही कोहरा नजर आया। नैनी झील से चलती शीत लहर, घर से निकलने की उदासी को और बढ़ा देती थी।

अगले दिन सुबह 10 बजे डीएसबी कैंपस पहुंचा, जहां बीएससी में प्रवेश लेना था। वहां लगभग सभी छात्र-छात्राएं आपस में अंग्रेजी में बात कर रहे थे। ऐसे में, मन में यह दुविधा व आशंका घर करने लगी कि बीएससी कर भी पाऊंगा या नहीं। पिताजी की जिद थी कि मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करूं। इधर, मैं सोच रहा था कि इंटरमीडिएट के बाद सेना में भर्ती होने का प्रयास करूं। किसी कारणवश इसमें सफलता नहीं मिलने पर दिल्ली आदि महानगरों का रूख करूं। 

आखिरकार बीएससी में प्रवेश ले लिया लेकिन, पहली कक्षा में ही अंग्रेजी में व्याख्यान ने फिर से मन को उदास कर दिया। हालांकि हिम्मत की और लगा रहा। अन्य सहपाठियों के साथ वुकहिल छात्रावास में निवास किया। इस बीच बड़े भाईयों का मार्गदर्शन लगातार मिलता रहा और ईष्ट देव की कृपा से अच्छे अंकों से बीएससी उत्तीर्ण कर ली और बाद में पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त की। हर किसी की जिंदगी में ऐसे पल आते ही हैं, भले ही वह उच्च शिक्षा की उपाधि प्राप्त करे या किसी अन्य ट्रेनिंग प्रोग्राम में प्रवेश करे।

मुझे आज भी नैनीताल का वह पहला दिन याद आता है। वहां का मौसम, घर से दूर रहने की उदासी, अंग्रेजी भाषा में पाठ्यक्रम पढ़ना, कुछ महीने तक मन को बैचेन करता रहा। प्रतिदिन मां नैना देवी का आशीर्वाद लेने मंदिर जाता था। छात्रावास में आकर मेस का खाना और बड़े भाईयों से कुछ न कुछ सीखते रहना। किसी तरह नैनीताल के माहौल, कैंपस के वातावरण में अपने को ढाला, शिक्षा प्राप्त की और एनसीसी की ओर रुझान किया। इस दौरान अक्सर, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों की छुट्टियों का इंतजार रहता था ताकि हम अपने घर जा सकें। माता-पिता के आशीर्वाद, ईष्टदेव की कृपा, स्वयं की मेहनत और लगन ने जीवन में आज इस मुकाम पर पहुंचाया।

डॉ. एनएस बनकोटी, प्राचार्य, एमबीपीजी कॉलेज, हल्द्वानी

संबंधित समाचार