मुंशी प्रेमचंद ने जब काट दिया था लड़के का कान…
हिंदी के उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के खजाने को लगभग एक दर्जन उपन्यास और करीब 250 लघु-कथाओं से भरा है। पहला उपन्यास उर्दू में लिखा था। यह बातें तो हम जानते हैं लेकिन उनके निजी …
हिंदी के उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य के खजाने को लगभग एक दर्जन उपन्यास और करीब 250 लघु-कथाओं से भरा है। पहला उपन्यास उर्दू में लिखा था। यह बातें तो हम जानते हैं लेकिन उनके निजी जीवन के कुछ किस्से अनसुने हैं। उनके जीवन के अनछुए पहलू को उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने अपनी किताब ‘प्रेमचंद: घर में’ उजागर किया है।
खेल-खेल में लड़के के काट दिए कान
एक बार बचपन में वह मोहल्ले के लड़कों के साथ नाई का खेल खेल रहे थे। मुंशी प्रेमचंद नाई बने हुए थे और एक लड़के का बाल बना रहे थे। हजामत बनाते हुए उन्होंने बांस की कमानी से गलती से लड़के रामू का कान ही काट डाला। लड़के के कान से खून बहने लगा। रामू रोते हुए मां के पास पहुंचा। वह अपने बेटे को लेकर नवाब की मां के पास गई। मां ने चार थप्पड़ लगाकर पूछा कान क्यों काटा तो नवाब बोले- वो मैं शेव कर रहा था।
नहीं किया सलाम
मुंशी प्रेमचंद शिक्षा विभाग के डेप्युटी इंस्पेक्टर थे। एक दिन इंस्पेक्टर स्कूल का निरीक्षण करने आया। प्रेमचंद ने इंस्पेक्टर को स्कूल दिखा दिया। दूसरे दिन वह स्कूल नहीं गए और कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे तो सामने से इंस्पेक्टर की गाड़ी निकली। इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद कुर्सी से उठकर उसको सलाम करेंगे। लेकिन प्रेमचंद कुर्सी से हिले तक नहीं।
यह बात इंस्पेक्टर को नागवार गुजरी। उसने अपने अर्दली को मुंशी प्रेमचंद को बुलाने भेजा। जब मुंशी प्रेमचंद गए तो इंस्पेक्टर ने शिकायत की कि तुम्हारे दरवाजे से तुम्हारा अफसर निकल जाता है तो तुम सलाम तक नहीं करते हो। यह बात दिखाती है कि तुम बहुत घमंडी हो। इस पर मुंशी प्रेमचंद ने जवाब दिया, ‘जब मैं स्कूल में रहता हूं, तब तक ही नौकर रहता हूं। बाद में मैं अभी अपने घर का बादशाह बन जाता हूं।’
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