बरेली: सवाल सेहत का? सियासत तक सिमट कर रह गया स्वास्थ्य का मुद्दा
बरेली, अमृत विचार। अमेरिकी लेखक जोश बिलिंग्स ने कहा है कि हमारा स्वास्थ्य हमारी सबसे बड़ी दौलत है, इसका अहसास हमे तब होता है जब हम इसको खो देते हैं। इसकी वजह है कि मंचों तक राजनीति दलों की तकरीरें रहती हैं और बाद में सरकार बनते ही इस पर से ध्यान हट जाता है। …
बरेली, अमृत विचार। अमेरिकी लेखक जोश बिलिंग्स ने कहा है कि हमारा स्वास्थ्य हमारी सबसे बड़ी दौलत है, इसका अहसास हमे तब होता है जब हम इसको खो देते हैं। इसकी वजह है कि मंचों तक राजनीति दलों की तकरीरें रहती हैं और बाद में सरकार बनते ही इस पर से ध्यान हट जाता है। इसकी वजह कोई और नहीं बल्कि अधिकांश मतदाता भी हैं। वह लुभावने वादों में फंसकर बुनियादी जरूरतों को दरकिनार कर देते हैं। स्वास्थ्य के रहते हम अपने नेताओं से सवाल कर सकते हैं, लेकिन डर और संकोंच के कारण उनसे सवाल जबाव नहीं कर पाते हैं और स्वास्थ्य को दोयम दर्जे का मान लेते हैं।
राजनीतिक दलों के एजेंडे की बात करें तो यह सिर्फ घोषणा पत्रों तक ही सीमित रहते हैं। बरेली मंडल के बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत और बदायूं जिलों में बेहतर स्वास्थ्य के संबंध में एम्स बनवाने की मांग उठती रही है, लेकिन यह मांग अब तक अधूरी है। रूहेलखंड के लोगों का सेहत को लेकर क्या विचार है। वह सरकार से क्या चाहते हैं। पेश है ओमेन्द्र सिंह की रिपोर्ट-
कहां कितने पद रिक्त हैं
बरेली के आंकड़े
बरेली में महाराणा प्रताप जिला अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 13 पद रिक्त हैं। अस्पताल में दांतों का कोई डॉक्टर नहीं है। इसी तरह चीफ फार्मासिस्ट के तीन, फिजियोथेरेपिस्ट का एक, फार्मेसी अधिकारी का एक, फार्मासिस्ट रक्तकोष का एक, आम्युपेशनलथेरेपिस्ट का एक, वरिष्ठ लैब टेक्नीशियन का एक, लैब टेक्नीशियन रक्तकोष तीन, एमएसडब्ल्यू एक सहित कुल 20 पद खाली हैं। इसी तरह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के यहां 95 पद हैं, लेकिन इनमें से 37 पद रिक्त हैं।
इसके अलावा जिले में 16 सीएचसी, 15 पीएचसी और 21 यूपीएचसी हैं। इन सभी पर 237 डॉक्टरों के पद हैं। लेकिन अभी 160 डॉक्टर ही तैनात हैं। जबकि 77 डॉक्टरों के रिक्त पद हैं। इसी तरह शाहजहांपुर में राजकीय मेडिकल कॉलेज में मेडिकल टीचर के 57 पद हैं। इनमें से 45 पदों पर तैनाती है। यहां स्टॉफ नर्स के भी कई पद खाली है।
इसके अलावा शाहजहांपुर में 15 सीएचसी और एक पीएचसी है। सीएचसी और पीएचसी पर 235 डॉक्टरों के सापेक्ष मात्र 123 की तैनाती है। वहीं स्टाफ के पद 54 हैं, लेकिन तैनाती सिर्फ 22 पर है। इसी तरह यहां एएनएम के 657 पदों के सापेक्ष 431 की तैनाती है। वहीं टेक्नीशियन 33 की जगह 16 ही तैनात हैं। फार्मासिस्ट 82 के सापेक्ष 65 हैं। लखीमपुर खीरी में सीएचसी 16 हैं, पीएचसी 69 हैं उपकेंद्र 386 हैं। इनके अलावा प्रसोत्तर केंद्र 3 हैं।
जिला अस्पताल में मात्र तीन सर्जन और तीन फिजिशियन तैनात हैं। जिला अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ न होने से रोगियों को काफी दिक्कत होती है। किसी सीएचसी और पीएचसी पर विशेषज्ञ डॉक्टर भी तैनात नहीं हैं। इसी तरह पीलीभीत और बदायूं में डॉक्टरों की बड़ी संख्या में कमी है। जिस वजह से लोगों को निजी अस्पतालों में शरण लेनी पड़ रही है।
स्टॉफ की कमी सबसे बड़ी समस्या
रूहेलखंड मंडल के सभी जिलों में डॉक्टरों की बड़ी कमी है। विशेषज्ञ डॉक्टर न होने से रोगियों को खासी दिक्कत होती है। आंकड़ों पर गौर करें तो पूरे प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में शासन से स्वीकृत पदों की संख्या 18 हजार के करीब है। जबकि कार्यरत डॉक्टर 12 हजार है। हालांकि पदों को बढ़ाने की मांग की जा रही है।
प्रदेश में विशेषज्ञों चिकित्सकों के 33 हजार और एमबीबीएस के 14 हजार पदों की मांग की गई है। वहीं एक आंकड़े के अनुसार प्रदेश में 1469 नर्सों के सापेक्ष इस वक्त मात्र 910 नर्से कार्यरत हैं। वहीं स्टॉफ नर्स की बात की जाए तो प्रदेश में स्टॉफ नर्स के 3359 पद रिक्त हैं। जबकि 4500 पदों पर स्टॉफ नर्स कार्यरत हैं। इसके अलावा सहायक नर्सिंग अध्यक्ष के 17 पद खाली हैं। वहीं फार्मासिस्ट के 7500 पदों पर भर्ती होनी है।
सियासी लोग ध्यान दे तब बने बात
रूहेलखंड मंडल के बदायूं और शाहजहांपुर में मेडिकल कॉलेज का निर्माण हो गया है, लेकिन इन अस्पतालों में अब तक बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यही वजह है कि गंभीर रोगियों को बरेली में आकर प्राइवेट अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। अति गंभीर रोगियों को दिल्ली और लखनऊ तक के चक्कर काटने पड़ते हैं। रूहेलखंड में कई सालों से एम्स अस्पताल बनवाने की आवाज उठती रही है।
सियासी मंचों से अस्पताल बनवाने के दावे भी हुए, लेकिन यह दावे मंच से उतरने के बाद हवा हवाई साबित हुए। दावों की बात की जाए तो मंडल के अस्पतालों में अब तक डायलिसिस, सीटी स्कैन की सुविधा न के बराबर है। अस्पतालों में बेहतर सुविधाएं न मिलने के कारण रोगी भर्ती होने में भी संकोच करते हैं। हां एक तबका है जो मजबूरी में इन्हीं अस्पतालों पर निर्भर है।
ट्रामा सेंटर न होने से परेशानी
बरेली, बदायूं, पीलीभीत और लखीमपुर में सरकारी अस्पताल में ट्रामा सेंटर नहीं है। वहीं शाहजहांपुर में है, लेकिन विशेषज्ञों की कमी के कारण यह रेफर सेंटर बनकर रह गया है। मशीनों और विशेषज्ञों के अभाव में डॉक्टर रोगियों को दिल्ली और बरेली के लिए रेफर कर देते हैं। ऐसे में रोगियों और तीमारदारों को खासी दिक्कत होती है। लोगों का कहना है कि दिल्ली के एम्स में रोगियों को भर्ती कराना मुश्किल भरा काम है। ऐसा ही कुछ आलम पीजीआई लखनऊ का है। ऐसे में रोगियों के तीमारदारों को काफी दिक्कत उठानी पड़ती है। शिवपुरी रधोली निवासी धर्मेन्द्र सिंह ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार को लखनऊ भर्ती कराना पड़ा तो काफी दिक्कत हुई थी। धर्मेन्द्र का कहना है कि बरेली में भी एम्स बनाया जाए।
डॉक्टरों की कमी पर नहीं दिया ध्यान
बरेली, बदायूं, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत और शाहजहांपुर में डॉक्टरों की कमी वर्षों से चल रही है। इस ओर न तो जनप्रतिनिधियों ध्यान दिया और न ही सरकार ने। ऐसे में रोगियों को काफी दिक्कत होती है। जब तक विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होंगे। तब तक इलाज की व्यवस्था को मुकम्मल नहीं बनाया जा सकता है। सीएचसी सरकार ने आपरेशन थियेटर तो बना दिए हैं, लेकिन इन पर सर्जन न होने से रोगियों को निजी अस्पतालों की दौड़ लगानी पड़ती है। कहीं कहीं एनेस्थीसिया के डॉक्टर भी मौजूद नहीं है। अस्पतालों में एक्सरे और अल्ट्रासाउंड मशीने तो लगी हैं, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट नहीं है। ऐसे में राम भरोसे काम चल रहा है। इस ओर भी जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना होगा।
बोले लोग
शाहजहांपुर में कहने को मेडिकल कॉलेज है, लेकिन गंभीर रोगियों का यहां इलाज होना मुश्किल हो रहा है। ट्रामा सेंटर भी नहीं है। सरकार और जनप्रतिनिधियों को इस ओर ध्यान देना होगा। लोगों को केवल वोट समझने से काम नहीं चलेगा। क्योंकि जब इंसान स्वस्थ होगा तभी वह वोट दे सकेगा। सरकार और जनप्रतिनिधियों को डॉक्टरों की तैनाती करानी चाहिए। चिकित्सीय सेवाएं और अधिक बेहतर हो सकें। इसके लिए भी जरूरी कदम उठाएं जाएं तो सही रहेगा। -अनामिका मिश्रा- शिक्षिका शाहजहांपुर
बरेली में जिला अस्पताल और कोविड अस्पताल है। मेडिकल कॉलेज नहीं है। ऐसे में गंभीर रोगियों को निजी अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। जिससे गरीब रोगियों पर इलाज का बोझ अधिक पड़ने से उनकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो जाती है। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करे। स्थानीय नेताओं को जनता की समस्याओं की ओर ध्यान देना चाहिए। बरेली से दिल्ली और लखनऊ तक की लगभग समान दूरी है। यहां भी एम्स की तरह अस्पताल होना चाहिए, जिससे लोगों को दिल्ली और लखनऊ की दौड़ न लगानी पड़े। -अजय चौहान- एडवोकेट पूर्व छात्र नेता
बरेली में सरकारी मेडिकल कॉलेज न होने से लोगों को काफी समस्या होती है। सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के साथ साथ डॉक्टरों का भी अभाव है। स्टॉफ भी कम है। अधिकांश लोगों को निजी अस्पतालों पर आश्रित रहना होता है। इससे सबसे अधिक समस्या इलाज कराने में मध्यम वर्गीय और निचले तबके के लोगों को होती है। इस ओर स्थानीय विधायकों और जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना होगा। बरेली में एम्स का निर्माण होना अति आवश्यक है। लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। -सुरेशपाल सिंह- गणेशनगर बरेली
शाहजहांपुर के मेडिकल कॉलेज की सौगात मिली। इससे लोगों को दूसरे जिलों में जाने के बजाय यहीं इलाज मिलने लगा, लेकिन जिला अस्पताल अलग नहीं किया गया। व्यापार मंडल की ओर से मांगे उठाई थी कि सीएमओ कार्यालय भवन में ही जिला अस्पताल बनाया जाए। शहर में अस्पताल की जरूरत है, लेकिन यह मांग पूरी नहीं हो पाई। नये साल में शहर में ही जिला अस्पताल मिल जाए तो बहुत अच्छा होगा। मेडिकल कॉलेज में भी सुविधाएं और अधिक बढ़ाई जाएं, जिससे लोगों को बेहतर इलाज मिल सके। बरेली में यदि एम्स बन जाए तो मंडल को फायदा होगा। -सचिन बाथम, महानगर अध्यक्ष-उप्र उद्योग व्यापार प्रतिनिध मंडल।
