बाबर के युद्ध

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

बाबर ने तुज़ुक-ए-बाबरी में अपने हालात लिखते हुए भाषा की उस कठिनाई के बारे में लिखा है, जिससे हिंदुस्तान जैसे नए देश में दो-चार होना पड़ा. वह लिखते हैं न हम यहां की बोली बोल सकते हैं और न यहां वाले हमारी भाषा जानते हैं. इसी तरह एक अन्य जगह उन्होंने लिखा है, ‘हमारे आदमियों …

बाबर ने तुज़ुक-ए-बाबरी में अपने हालात लिखते हुए भाषा की उस कठिनाई के बारे में लिखा है, जिससे हिंदुस्तान जैसे नए देश में दो-चार होना पड़ा. वह लिखते हैं न हम यहां की बोली बोल सकते हैं और न यहां वाले हमारी भाषा जानते हैं. इसी तरह एक अन्य जगह उन्होंने लिखा है, ‘हमारे आदमियों के लिए यहां की भाषा नई है और वे इससे भड़क रहे हैं. बहरहाल, बाबर ने हिंदुस्तानी जीवन के साथ जुड़ाव पैदा करने के लिए जो तरीके अपनाए उनमें भाषा की कठिनाई पर नियंत्रण करना भी शामिल था. यहां तक कि एक समय वह आया कि उनके एक तुर्की शेर का पहला मिसरा स्थानीय भाषा के अंदाज़ में डूबा हुआ नज़र आता है ..

“भुज का न हुआ कुच हवसे मांक ओ मोती’
बाबर का शासन हिंदुस्तान पर सिर्फ 4 वर्ष रहा और 1530 में उनकी मृत्यु हो गई. हुमायूं का शेरशाह के साथ मुकाबला और उनकी असमय मृत्यु ने उन्हें इतना समय नहीं दिया कि वह इस परंपरा को बढ़ाने के सामान उपलब्ध करा पाते. मगर उनके उत्तराधिकारी को जमाने ने यह अवसर अच्छी तरह उपलब्ध करा दिए. अकबर ने लंबे समय तक शासन किया. ख़ास बात यह थी कि अकबर के स्वभाव में प्रकृति ने स्थानीय परंपराओं से लगाव होने की अजीब विशेषता, योग्यता दी थी. उन्होंने अनुवाद का विभाग बनाया और संस्कृत की अहम किताबों का फ़ारसी में अनुवाद कराया. वह हिंदुस्तानी संगीत के भी रसिया थे.

तानसेन उनके समय के बाकमाल और बेमिसाल गायक थे. उन्होंने स्थानीय भाषा के बहुत से शायरों को प्रश्रय दिया. यही नहीं अकबर के समय में राजपूत संस्कृति शाही महल में प्रवेश कर चुकी थी. अकबर के पुत्र जहांगीर की माँ एक राजपूत राजा की पुत्री थीं. अकबर के आदेश से जहांगीर को स्थानीय भाषा की शिक्षा दी गई. जहांगीर अपने वस्त्रों और रूप की वजह से भी राजपूत लगते थे. जहांगीर ने भी नूरजहां से पहले राजपूत खानदान में विवाह किया था और जहांगीर के उत्तराधिकारी शाहजहां का जन्म भी राजपूत रानी के गर्भ से हुआ था. कहा जाता है कि जहांगीर शराब को रामरंगी कहा करते थे और यह फ़ारसी या तुर्की शब्द नहीं.

अकबर के समय में दफ्तर की भाषा फारसी थी, लेकिन देसी भाषाओं के साथ मेलजोल भी बढ़ गया था. आगरा में अधिकतर ब्रज भाषा की साहित्यिक परंपरा को बढ़ावा मिला था. इसलिए अकबर के प्रश्रय में जिस स्थानीय भाषा को प्रसिद्धि मिली वह ब्रज भाषा थी. ब्रज भाषा की कई साहित्यिक परंपराओं का प्रभाव उर्दू शायरी में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. वजह से कुछ लोगों में यह भ्रम भी पैदा हो गया कि उर्दू ब्रज भाषा से निकली है. शाहजहां के समय में मुगलों की राजधानी आगरा से दिल्ली हो गई.

आगरा की तुलना में दिल्ली खड़ी बोली का क्षेत्र थी, इसलिए यहां की आम बोल-चाल का ठाठ ब्रज भाषा से अलग था. ऐसे में फ़ारसी के बाद जिसे सरकारी भाषा की अहमियत हासिल थी, दिल्ली में लगभग ब्रज भाषा की साहित्यिक परंपरा प्रसिद्ध थी. औरंगज़ेब के बारे में कहा जाता है कि वह कट्टर मुसलमान थे, लेकिन सांस्कृतिक मेलजोल के व्यवहार पर उनको भी नियंत्रण नहीं था.

औरंगज़ेब को देसी भाषा पर महारत प्राप्तह थी. एक बार राजकुमार मुहम्मद आजम ने औरंगजेब को ख़ास प्रकार के आम उपहार में भेजे और यह फरमाइश की कि उन आमों के नाम बताएं. औरंगजेब ने उन आमों के नाम सुधा रस और रसना बिलास सुझाए. दारा शिकोह के बारे में कौन नहीं जानता कि वह भक्ति-दर्शन में रुचि रखते थे. उन्होंने उपनिषद का अनुवाद फारसी में खुद किया था.

ये भी पढ़ें-

सिंधु घाटी की सभ्यता का सबसे बड़ा नगर मोहन-जोदड़ो