आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली है उत्तराखंड का जोशीमठ

आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली है उत्तराखंड का जोशीमठ

जोशीमठ, अमृत विचार। गढ़वाल मंडल के चमोली जिले के पेनखंडा परगने में स्थित है खूबसूरत कस्बा जोशीमठ। जिसका पौराणिक नाम ज्योतिर्मठ बताया जाता है। जोशीमठ कर्णप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर बद्रीनाथ से 30 किमी पहले और कर्णप्रयाग से 72 किमी की दूरी पर मौजूद है। यहां से बदरीनाथ, विष्णुप्रयाग, नीति-माणा, हेमकुण्ड साहिब और फूलों की घाटी, …

जोशीमठ, अमृत विचार। गढ़वाल मंडल के चमोली जिले के पेनखंडा परगने में स्थित है खूबसूरत कस्बा जोशीमठ। जिसका पौराणिक नाम ज्योतिर्मठ बताया जाता है। जोशीमठ कर्णप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर बद्रीनाथ से 30 किमी पहले और कर्णप्रयाग से 72 किमी की दूरी पर मौजूद है। यहां से बदरीनाथ, विष्णुप्रयाग, नीति-माणा, हेमकुण्ड साहिब और फूलों की घाटी, औली के अलावा कई अन्य धार्मिक व पर्यटन स्थलों की ओर रास्ता जाता है।

ऐसी मान्यता है कि जोशीमठ आदि शंकराचार्य की तपस्थली रही है। अनुमान है कि 815 ई. में यहीं पर आदि शंकराचार्य ने एक शहतूत के पेड़ के नीचे साधना कर ज्ञान प्राप्ति की थी और इसीलिए इस जगह का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा जो बाद में धीरे-धीरे आम बोलचाल की भाषा में जोशीमठ हो गया। बद्रीनाथ धाम और भारत के तीन छोरों पर मठों की स्थापना करने से पहले शंकराचार्य ने जोशीमठ में ही पहला मठ स्थापित किया था। यहीं पर शंकराचार्य ने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ शंकर भाष्य की रचना भी की थी।

यहां आज भी 36 मीटर की गोलाई वाला 2400 साल पुराना वह शहतूत का पेड़ है जिसके नीचे शंकराचार्य ने साधना की थी, इसी पेड़ के पास शंकराचार्य की वह गुफा भी मौजूद है जहां उन्होंने तप किया था। इस गुफा को ज्योतिरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

 

जोशीमठ में विष्णु भगवान को समर्पित एक लोकप्रिय मंदिर है। इसके अतिरिक्त नरसिंह, वासुदेव, नवदुर्गा आदि के मंदिर भी यहां पर मौजूद हैं। मान्यता है कि जोशीमठ के नरसिंह मंदिर की पूजा-अर्चना किये बगैर बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी ही रह जाती है। इस मंदिर में भगवन नरसिंह की काले पत्थर से बनी मूर्ति भी है।

ऐसी मान्यता भी प्रचलित है कि इस मूर्ति का बांया हाथ कोहने के पास से लगतार क्षीण होता जाता है, जब यह गिर जायेगा तो नर और नारायण पर्वतों के आपस में मिल जाने से बद्रीनाथ का रास्ता बंद हो जायेगा। तब भगवान बद्रीनाथ की पूजा भविष्यबद्री में हुआ करेगी। शीतकाल में भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति इसी मंदिर में प्रतिष्ठित कर दी जाती है। जोशीमठ कभी कत्यूरी शासकों की राजधानी रह चुकी है, तब इसे कीर्तिपुर के नाम से जाना जाता था. कत्यूरी शासक ललितशूर के ताम्रपत्र में इसे इसी नाम से लिखा गया है।