कौन हैं जस्टिस यू.यू. ललित, जो बन सकते हैं देश के अगले मुख्य न्यायाधीश?

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नई दिल्ली। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एन.वी. रमणा ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस यू.यू. ललित के नाम की सिफारिश की है। 1957 में जन्मे जस्टिस ललित ने 1983-85 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की और फिर वह दिल्ली आकर वकालत करने लगे। 2014 में उच्चतम न्यायालय के जज बने जस्टिस ललित तीन …

नई दिल्ली। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एन.वी. रमणा ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस यू.यू. ललित के नाम की सिफारिश की है। 1957 में जन्मे जस्टिस ललित ने 1983-85 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की और फिर वह दिल्ली आकर वकालत करने लगे। 2014 में उच्चतम न्यायालय के जज बने जस्टिस ललित तीन तलाक को अवैध ठहराने समेत कई ‘ऐतिहासिक’ फैसलों का हिस्सा रहे।

उदय उमेश ललित भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा अगले महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं और इसके बाद न्यायमूर्ति यूयू ललित मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। जानकारी यह भी आ रही है कि यूयू ललित मात्र 3 महीनें ही मुख्य न्यायाधीश के रूप में रहेंगे।

कौन हैं न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित?
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित क्रिमिनल लॉ के स्पेशलिस्ट हैं। साल 1983 से उन्होंने अपना वकालतनामा शुरू किया था और 1985 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की थी। इसके बाद वे 1986 से साल 1992 तक पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ भी काम कर चुके हैं। उनके काम को देखते हुए साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया था।

2G मामले में CBI के पब्लिक प्रोसिक्यूटर के रूप में ट्रायल्स में लिया हिस्सा
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित देश के चर्चित 2G मामले में CBI के पब्लिक प्रोसिक्यूटर के रूप में ट्रायल्स में हिस्सा ले चुके हैं । इसके अलावा उन्होंने दो कार्यकालों के लिए सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ दी हैं। इसके बाद उनको अगस्त 2014 को सीधे बार से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था । फिर मई 2021 में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।

खूब चर्चाओ में भी रहे न्यायमूर्ति उदय उमेश
अपने पूरे  कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने कई चर्चित मामलों में खुद को अलग कर लिया था। तब उनकी काफी चर्चा हुई थी।

-साल 2014 में याकूब मेनन की मौत की सज़ा को बरक़रार रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा की मांग की याचिका डाली गई थी। तब उन्होंने इस सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
-जब 2008 के मालेगांव विस्फोटों में निष्पक्ष सुनवाई की मांग करने वाली साल 2015 में जब याचिका पड़ी तो उन्होंने खुद को इस सुनवाई से अलग कर लिया था क्योंकि इससे पहले उन्होंने एक आरोपी का बचाव किया था।
-जेल में बंद आसाराम बापू के मुकदमें में अभियोजन पक्ष के एक प्रमुख गवाह के लापता होने की जांच की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई से उन्होंने खुद को अलग कर लिया था।

सोली सोराबजी के रहे हैं सहयोगी
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित सात साल तक वरिष्ठ वकील, पूर्व अटॉर्नी जनरल और पद्म विभूषण से सम्मानित सोली सोराबजी के सहयोगी रहे थे। पिछले साल अप्रैल के महीने में कोरोना से उनका निधन हो गया था। सोली सोराबजी की पहचान देश के बड़े मानवाधिकार वकील में होती थी। साल 1997 में यूनाइटेड नेशन ने उन्हें नाइजरिया में विशेष दूत बनाकर भेजा था, ताकि वहां के मानवाधिकार के हालातों का पता चल सके। सोली सोराबजी सबसे पहले 1989 से 1990 तक और इसके बाद साल 1998 से 2004 तक अटॉर्नी जनरल की जिम्मेदारी निभाई थी।

 

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