हल्द्वानी: सियाचिन की बर्फ में कहीं दफन है शहीद हयात और दया के शव
हल्द्वानी, अमृत विचार। वर्ष 1984 में ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत हुई। शहीद लांस नायक चंद्र शेखर के साथ सिपाही हयात सिंह और लांस नायक दया किशन भी इस ऑपरेशन का हिस्सा थे। इन दोनों शहीदों के शव भी सियाचिन की बर्फ में कहीं दफन हैं। मंगलवार को जब सीएम के आने की खबर मिली तो …
हल्द्वानी, अमृत विचार। वर्ष 1984 में ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत हुई। शहीद लांस नायक चंद्र शेखर के साथ सिपाही हयात सिंह और लांस नायक दया किशन भी इस ऑपरेशन का हिस्सा थे। इन दोनों शहीदों के शव भी सियाचिन की बर्फ में कहीं दफन हैं। मंगलवार को जब सीएम के आने की खबर मिली तो दोनों शहीदों की वीर नारियां सीएम से गुहार लगाने शहीद लांस नायक चंद्र शेखर हर्बोला के घर पहुंच गईं, लेकिन सीएम नहीं आए।
मूलरूप से ग्राम मछयाण पोस्ट चौड़ा मेहता चम्पावत निवासी जोध सिंह व श्रीमती तारी देवी के चार पुत्र और एक पुत्री में हयात सबसे बड़े पुत्र थे। 10 मार्च 1978 को वे बनबसा में सेना की भर्ती में शामिल हुए और भर्ती हो गए। इनकी वीर नारी बची देवी ने बताया कि 1976 में उनकी शादी हुई और शादी होने के 2 वर्ष बाद पति हाईस्कूल पास कर सेना में भर्ती हो गए।
1981 में पुत्र पैदा हुआ। फरवरी 1984 में सिपाही हयात सिंह दो महीने के अवकाश पर आए। छुट्टी का एक महीना गुजरते ही ऑपरेशन मेघदूत के लिए टेलीग्राम आ गया। वहां जाते ही शहीद हो गए। पति के शहादत के समय बची देवी 21 वर्ष थी। डेढ़ साल का पुत्र और पुत्री गर्भ में थी।
वहीं ऑपरेशन मेघदूत के दौरान दूसरे शहीद लांस नायक दया किशन मधनपुर, किशनपुर हल्द्वानी के रहने वाले केशव दत और इन्द्रा जोशी के दूसरे नम्बर के पुत्र थे। वे 4 दिसम्बर 1978 को कुमांऊ रेजिमेंट में भर्ती हुए और 29 मई 1984 को ऑपरेशन मेघदूत में भारत मां का यह वीर सपूत भी शहीद हो गया। इनके दो पुत्र संजय और भाष्कर हैं।
बड़े पुत्र संजय शहीद पिता के पद चिह्नों पर चलते हुए भारतीय सेना में भर्ती हुए। इनकी वीर नारी बिमला देवी आवास-विकास में रहती हैं। वे कहती है कि पति की शहादत के बाद चाहती थी कि दोनों बेटो सेना में ही जाए, लेकिन ऐसा नही हो पाया और एक ही बेटा मातृ भूमि की रक्षा करने में तैनात है। दोनों वीर नारियों का कहना है कि वह खास सीएम पुष्कर सिंह धामी से मिलने आईं थीं। उन्हें कहना था कि उनके शहीद पतियों की खोजा जाए।
