बिस्मिल्लाह खां ने बजाई थी आजाद भारत में पहली शहनाई, ‘भारत रत्न’ से हैं सम्मानित

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नई दिल्ली: आज का इतिहास के पन्नों में 21 अगस्त के दिन भारत और विश्व में घटी बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र है। आज के ही दिन प्रसिद्व शहनाई वादक बिस्मिल्लाह ख़ान का निधन हुआ था। इनके निधन से संगीत जगत में मातम छा गया था। बिस्मिल्लाह खान ने गंगा के घाट से लेकर …

नई दिल्ली: आज का इतिहास के पन्नों में 21 अगस्त के दिन भारत और विश्व में घटी बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र है। आज के ही दिन प्रसिद्व शहनाई वादक बिस्मिल्लाह ख़ान का निधन हुआ था। इनके निधन से संगीत जगत में मातम छा गया था। बिस्मिल्लाह खान ने गंगा के घाट से लेकर अमेरिका तक शहनाई की गूंज को स्थापित किया। उन्हें दुनिया के प्रख्यात शहनाई वादकों में शुमार किया जाता है।

दुनिया में ऐसे बहुत से फनकार हुए हैं, जो किसी एक देश की सरहदों तक सीमित नहीं रहे। ऐसे भी लोग हुए जिन्होंने किसी एक साज के साथ खुद को ऐसा जोड़ लिया कि दोनो एक दूसरे का पर्याय बन गए। बांसुरी के साथ हरि प्रसाद चौरसिया, तबले के साथ उस्ताद अल्लाह रक्खा खां और उनके पुत्र उस्ताद जाकिर हुसैन, सितार के साथ पंडित रवि शंकर और शहनाई के साथ उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का नाम बड़े अदब और एहतमाद से लिया जाता है।

‘भारत रत्न’ से हैं सम्मानित
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की बात करें कि वह अपने फन के इस कदर माहिर थे कि उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। 21 अगस्त का दिन इतिहास में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के निधन के दिन के तौर पर दर्ज है। बिस्मिल्लाह खां के पिता भी एक अच्छे और बेहतरीन शहनाई वादक वे। भोजपुर रियासत में अपनी कला का प्रदर्शन भी करते थे। यही कारण रहा कि बिस्मिल्लाह खान भी अपने पिता के रास्ते पर चलते गए। उनके चाचा भी अच्छे शहनाई वादक थे।

बिस्मिल्लाह खां का जन्म
बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमराव में हुआ था। उनके पिता का नाम पैगंबर खां और माता का नाम मिट्ठन बाई था। वे अपने माता-पिता के दूसरे संतान थे। उन्हें उनके दादाजी से बिस्मिल्लाह नाम मिला था। बिस्मिल्लाह खान का बचपन बेहद गरीबी में बीता था। हालांकि, परिवार में संगीत का माहौल था। यही कारण रहा कि उनका भी संगीत की तरफ रुझान बढ़ता गया।

बनारस के घाट से था गहरा लगाव
बिस्मिल्लाह खान को बनारस के घाट और भारतीय संस्कृति से बहुत प्यार था। वह बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में भी जाकर शहनाई बजाते थे। घंटो गंगा किनारे बैठना उन्हें बेहद पसंद था। आजादी के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से 15 अगस्त 1947 को शहनाई बजाने का आग्रह किया था जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया।

शहनाई की मधुर गूंज आज भी
वर्षों से जो दूरदर्शन और आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून हमें सुनाई देती है, उसका भी धुन अपनी शहनाई के जरिए बिस्मिल्लाह खां ने भी तैयार किया था। 1956 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार दिया गया। 1961 में बिस्मिल्लाह खां को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1968 में पद्म विभूषणस 1980 में पद्म विभूषण तो वहीं 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया। 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। भले ही बिस्मिल्लाह खां हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी शहनाई की मधुर गूंज आज भी हमें उनकी याद दिलाती है।

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