इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं, जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं… ओम प्रकाश आदित्य

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ओम प्रकाश आदित्य कवि सम्मेलनों में हास्य रस की प्रतिष्ठापना करने वाले अग्रणी कवि हैं। दूरदर्शन के समय में यानी 1970-80 के दशक में ओम प्रकाश आदित्य टेलीविजन पर हास्य कवि सम्मेलनों के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने दिल्ली में एक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी। प्रस्तुत हैं उनकी एक हास्य रचना- इधर भी …

ओम प्रकाश आदित्य कवि सम्मेलनों में हास्य रस की प्रतिष्ठापना करने वाले अग्रणी कवि हैं। दूरदर्शन के समय में यानी 1970-80 के दशक में ओम प्रकाश आदित्य टेलीविजन पर हास्य कवि सम्मेलनों के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने दिल्ली में एक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी। प्रस्तुत हैं उनकी एक हास्य रचना-

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं

गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है

जवानी का आलम गधों के लिए है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिए है

ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिए है
ये संसार सालम गधों के लिए है

पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के
तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके

मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं
गधों की तरह झूमना चाहता हूं

घोडों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो

यहां आदमी की कहां कब बनी है
ये दुनियां गधों के लिए ही बनी है

जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं

मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था।।

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