हारे का सहारा कहे जाने वाले बाबा खाटू श्याम का जन्मोत्सव आज, मिला था कलयुग में पूजे जाने का वरदान
जयपुर। हारे का सहारा कहे जाने वाले श्याम बाबा का जन्मोत्सव हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार इस बार यह तिथि 4 नवंबर 2022 को है। राजस्थान के सीकर जिले के खाटू कस्बे में स्थित खाटू मंदिर समिति में देश ही …
जयपुर। हारे का सहारा कहे जाने वाले श्याम बाबा का जन्मोत्सव हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार इस बार यह तिथि 4 नवंबर 2022 को है। राजस्थान के सीकर जिले के खाटू कस्बे में स्थित खाटू मंदिर समिति में देश ही नहीं विदेश के हर कोने-कोने से भक्त आते हैं। राजस्थान ही नहीं श्रीश्याम बाबा खाटू श्याम के जन्मोत्सव पर वृंदावन में भी चार नवंबर को भव्य निशान यात्रा निकाली जाएगी। इस यात्रा को निकालने के लिए तैयारियां बड़े स्तर पर चल रही हैं।
गोपेश्वर महादेव मंदिर रोड स्थित श्याम बाबा मंदिर के सेवायत राजेश पारीक ने बताया कि इस यात्रा की आयोजक महारानी सखी हैं। उन्होंने बताया कि चार नवंबर को सुबह नौ बजे गोपेश्वर रोड श्याम बाबा मंदिर से निशान यात्रा शुरु होगी। यात्रा लाला बाबू मंदिर, गोपीनाथ बाजार, पत्थरपुरा, चुंगी चौराहा, अनाज मंडी, बनखंडी महादेव मंदिर तिराहा, लोई बाजार, तांगा स्टेंड तथा पत्थरपुरा होते हुए फिर श्याम बाबा मंदिर पहुंचेगी। उन्होंने बताया कि नगर में पहली बार खाटू श्याम बाबा की निशान यात्रा निकलेगी। यात्रा में शामिल होने के लिए मथुरा के साथ आगरा, अलीगढ़, हाथरस, राजस्थान और दिल्ली सहित कई और शहरों के भक्त आ रहे हैं। मंदिर में 4 नवंबर को शाम सात बजे से रात्रि 12 बजे तक भजन संध्या भी होगी। वहीं विख्यात भजन गायक नंदू भैया की भजन संध्या 6 नवंबर को श्याम बाबा मंदिर में होगी।
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। कहा जाता है खाटु श्याम पांडव पुत्र भीम के पौत्र थे। पौराणिक कथा के अनुसार, खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित और खाटू श्याम (बर्बरीक) के शीश के दान से खुश होकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि तुम कलियुग में बाबा श्याम के नाम से पूजे और जाने जाओगे। वरदान देने के बाद उनका शीश खाटू नगर राजस्थान राज्य के सीकर जिला में रखा हया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है।
वनवास के दौरान जब पांडव अपनी जान बचाते हुएजगंल में अधर-उधर घूम रहे थे, तो भीम हिडिम्बा से मिले और हिडिम्बा से उन्होंने शादी कर ली, जिससे उनके एक पुत्र हुआ घटोत, घटोत से बर्बरीक हुआ। दोनों ही पिचा और पुत्र भीम की तरह अपनी ताकत और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना था, तब बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णय लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने जब उनसे पूछा वो युद्ध में किसकी तरफ हैं, तो उन्होंने कहा था कि वो पक्ष हारेगा वो उसकी ओर से लड़ेंगे। इसलिए उन्हों आज भी हारे का सहारा कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे और उन्हें डर था कि कहीं पांडवों के लिए उल्टा न पड़ जाए। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए दान की मांग की। दान में उन्होंने उनसे शीश मांग लिया। दान में बर्बरीक ने उनको शीश दे दिया, लेकिन आखिर तक उन्होंने युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की।
श्रीकृष्ण ने इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी पर रख दिया। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि युद्ध की जीत का श्रेय किसे जाता है। तब बर्बरीक ने कहा कि उन्हें जीत भगवान श्रीकृष्ण की वजह से मिली है। भगवान श्रीकृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न हुए और कलियुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया।
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