बरेली कॉलेज के 23 लाख रुपये से हुई थी काजी कलीमुद्दीन की जमानत

बरेली कॉलेज के 23 लाख रुपये से हुई थी काजी कलीमुद्दीन की जमानत

बरेली, अमृत विचार। बरेली कॉलेज में हुए घोटाले की आंच आखिरकार कॉलेज के प्रबंधन तक पहुंच ही गई। इसका ही नतीजा है कि अब कॉलेज की जिम्मेदारी जिलाधिकारी को मिल गई है। लखनऊ में हुई हलचल से शिवाकांत द्विवेदी को प्रशासक बना दिया है। कॉलेज में हुए घोटालों की बानगी बहुत ही बड़ी है। जितने भी घोटाले हुए उससे बचने के लिए निर्वतमान सचिव देवमूर्ति और तत्कालीन प्राचार्या ने बरेली कॉलेज के फंड का गलत इस्तेमाल किया।

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यहां तक की भ्रष्टाचार के मामले में क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़े गए बरेली कॉलेज मैनेजमेंट कमेटी के निवर्तमान उपाध्यक्ष काजी कलीमुद्दीन की जमानत के लिए भी कॉलेज के फंड से 23 लाख रुपये निकाले गए थे। यहां तक की अन्य आरोपियों की जमानत भी कॉलेज फंड से की गई। अब यह बात धीरे-धीरे प्राचार्य डॉक्टर ओपी राय के सामने आई है। जैसे-जैसे समय गुजर रहा है। कॉलेज में घोटाले की एक नई बानगी सामने आ रही है।

जिलाधिकारी शिवाकांत द्विवेदी और प्राचार्य डॉक्टर ओपी राय के सामने एक नई चुनौती है। प्रशासक बने डीएम के सामने पहली चुनौती ऐतिहासिक बरेली कॉलेज में बोर्ड ऑफ कंट्रोल और प्रबंध समिति की दोहरी व्यवस्था से पार पाना है। यह दोहरी व्यवस्था ही कॉलेज में अनियमित्ताओं की जनक है। 1837 में स्थापित बरेली कॉलेज सही मायने में बरेली की पहचान है। कमिश्नर और डीएम के नाम पर बरेली कॉलेज में घोटाले हो रहे हैं। 

प्रबंधन घोटाले दर घोटाले करता रहा है और कॉलेज से जुड़े आला प्रशासनिक अफसर रहस्यमय चुप्पी साधे रहे। कॉलेज पिछले कुछ दिनों से घोटाले का पर्याय बन गया है। कभी यहां 32 एसी गायब हो जाते हैं तो कभी निर्धन स्टूडेंट्स को बांटने के लिए खरीदे जाने वाले स्वेटर में घोटाला होता है तो कभी स्कॉलरशिप में। कालेज में कभी संविदा कर्मी हटाने पर विवाद होता है तो कभी शिक्षकों की वरिष्ठता सूची पर। यह सब कुछ तब हो रहा है जब बरेली कॉलेज बोर्ड आफ कंट्रोल के अध्यक्ष कमिश्नर हैं और वरिष्ठ उपाध्यक्ष डीएम। 

बरेली कॉलेज प्रबंध समिति के अध्यक्ष भी डीएम ही हैं। मतलब साफ है कि कॉलेज के हर बड़े फैसले कमिश्नर और डीएम के संज्ञान के बिना हो ही नहीं सकते बल्कि  कहना चाहिए कि किसी भी बड़े फैसले से पहले इन आला अफसरों की प्रबंध अनुमति जरूरी है। समिति का आखिरी चुनाव 2015 में हुआ था। दस फरवरी, 2018 को तीन साल पूरे होने पर कार्यकाल समाप्त हो गया।

कार्यकाल पूरा होने के बाद प्रबंध समिति के सभी फैसले नियमानुसार अवैध माने जाने चाहिए। दरअसल बरेली कॉलेज दोहरी व्यवस्था से संचालित होता है। यहां सबसे ऊपर बोर्ड आफ कंट्रोल है और उसके बाद प्रबंध समिति। बोर्ड आफ कंट्रोल में कमिश्नर पदेन अध्यक्ष और डीएम बरेली पदेन वरिष्ठ उपाध्यक्ष है। लेकिन 2018 के बाद भी कॉलेज निवर्तमान सचिव के इशारे पर चलता रहा और इसमें घोटाले पर घोटाले होते रहे। 

कई सालों से कुछ सदस्यों के जरीए मनमाने तरीके से चलाया निवर्तमान सचिव ने कॉलेज 
बरेली कॉलेज को कुछ सालों से यहां के सचिव रहे देवमूर्ति ने अपने मनमाने तरीके से चलाया। जानकारों की माने तो कई सदस्यों को अपनी संस्था में लगाने के बाद उनको अपनी मर्जी के हिसाब से बैठक में रखा जाता था। जिस कारण देवमूर्ति का गलत निर्णय भी सही माना जाता था। कॉलेज में कहने को इतनी जगह होने के बाद भी आज तक नए कोर्स नहीं आए। इसका दुर्भाग्य ही रहा जो यहां पर आज तक बीसीए, बीबीए आदि के बाद एमसीएम, एमबीएम आदि बड़े कोर्स को शुरू कराने में किसी ने जहमत नहीं उठाई। यहां तक की कई पुराने कोर्स को भी खत्म करा दिया गया। जिसको करने के लिए कॉलेज के छात्रों को प्राइवेट सस्थानों में मोटी रकम देकर एडमिशन लेना पड़ता है।

आज तक नहीं लगा कोई सुराग पुराने जनरेटर और बस का 
बरेली कॉलेज में नए जनरेटर लगाए जाने के बाद पुराने जनरेटर का क्या किया गया इसका आज तक सुराग नहीं लगा। सही सलामत जनरेटर आखिर कहां चले गए इसका किसी को भी पता नहीं चला। आखिर इतने सारे जनरेटर कहां चले गए। वहीं कालेज की एक अपनी बस चलती थी। उसका भी कोई सुराग नहीं है। आखिर कॉलेज की बस कहां लापता हो गई। इस बस को भी गायब हुए काफी समय हो गया।

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