जयंती विशेष : प्रयोगधर्मी चित्रकार अमृता शेरगिल
नई दिल्ली। 30 जनवरी को साल 1913 में भारत की पहली महिला चित्रकार अमृता शेरगिल का जन्म हुआ। अमृता शेरगिल की कला को बंगाल पुनर्जागरण के दौरान हुई उपलब्धियों के समकक्ष रख कर देखा जाता है। इस प्रतिभावान चित्रकार को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने सन 1976 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों की सूची में शामिल किया था। अमृता शेरगिल का जन्म हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था। उनका ज्यादातर बचपन बुडापेस्ट में ही बीता।
सन 1921 में अमृता शेरगिल का परिवार शिमला आ गया। वहां उन्होंने पियानो और वायलीन सीखना शुरू कर दिया और मात्र नौ वर्ष की उम्र में अपनी बहन इंदिरा के साथ मिलकर संगीत कार्यक्रम पेश करने और नाटकों में भाग लेने लगीं। सन 1924 में इटली के फ्लोरेंस के एक आर्ट स्कूल में अमृता का दाखिला करा दिया गया। वे उस स्कूल में ज्यादा समय तक नहीं रहीं, जल्द ही भारत लौट आईं, पर वहां वे महान इतालवी चित्रकारों के कार्यों से अच्छी तरह परिचित हो गईं।
फिर सोलह वर्ष की उम्र में वे चित्रकारी सीखने पेरिस चली गईं। पेरिस में उन्होंने कई प्रसिद्ध कलाकारों जैसे पियरे वैलंट और लुसिएं साइमन से चित्रकारी सीखी। उन्होंने यूरोपीय चित्रकारों से प्रेरणा ली। उनके शुरुआती चित्रों में यूरोपीय प्रभाव साफ झलकता है। सन 1932 में उन्होंने अपनी पहली सबसे महत्त्वपूर्ण कृति यंग गर्ल्स बनाई, जिसके चलते उन्हें सन 1933 में पेरिस के ‘ग्रैंड सालों’ का एसोसिएट चुन लिया गया। यह सम्मान पाने वाली वे पहली एशियाई और सबसे कम उम्र की कलाकार थीं।
We remember the renowned painter & pioneer of modern art in India, Amrita Sher-Gil, on her birth anniversary. Revered as one of the greatest women artists of the 20th century, her art was a mirror to society, giving voice to women's liberation & validity to their experiences. pic.twitter.com/t5FvtMh2P2
— Congress (@INCIndia) January 30, 2023
सन 1934 में वे भारत लौटीं और भारत की परंपरागत कला की खोज में जुट गईं। वे कुछ समय तक शिमला के अपने पुस्तैनी घर में रहीं, फिर सन 1936 के आसपास भारतीय कला की खोज में यात्रा के लिए निकल पड़ीं। वे मुगल और पहाड़ी चित्रकारी से बहुत प्रभावित हुर्इं और अजंता की गुफाओं की चित्रकारी ने भी उन्हें बहुत प्रभावित किया।
सन 1937 में उन्होंने दक्षिण भारत की यात्रा की और ब्राइड्स टायलेट, ब्रह्मचारीज और ‘साउथ इंडियन विलेजर्स गोइंग टू मार्केट रचनाएं प्रस्तुत की। इन रचनाओं में उनकी भारतीय विषयों से सहानुभूति और संवेदना साफ झलकती है। इस समय तक उनकी कला में पूरी तरह बदलाव आ चुका था- यह परिवर्तन था भारतीय विषय और उनकी अभिव्यक्ति को लेकर।
अमृता शेरगिल की विशेषता है कि उन्होंने चित्रकला के प्रारंभिक काल में ऐसे यथार्थवादी चित्रों की रचना की, जिनकी संसार भर में चर्चा हुई। उन्होंने भारतीय ग्रामीण महिलाओं और भारतीय स्त्री कि वास्तविक स्थिति को चित्रित करने का सराहनीय प्रयास किया। उनके चित्रों की विविधता उस समय और भी बढ़ गई जब उन्होंने दक्षिण भारत का दौरा किया। उनका रुझान भारत की वास्तविक आधुनिकता की ओर था, न कि उस समय शांति निकेतन में चल रहे प्राचीन कला आंदोलन की ओर।
सन 1938 में अमृता गोरखपुर के सराया स्थित अपने पैतृक स्थान चली गईं और वहां रहकर चित्रकारी करने लगीं। इस दौरान उन्होंने जो कार्य किया उसका भारतीय कला पर वैसा ही प्रभाव पड़ा, जैसा कि रवींद्रनाथ ठाकुर और जामिनी राय के कार्यों का।
रवींद्रनाथ और अबनींद्रनाथ की कला ने अमृता शेरगिल को भी प्रभावित किया था, जिसका उदाहरण है अमृता द्वारा किया गया महिलाओं का चित्रण। गोरखपुर प्रवास के दौरान उन्होंने अपने जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण चित्र बनाए। ‘विलेज सीन’, ‘इन द लेडीज एन्क्लोजर’ और ‘सिएस्टा’ आदि चित्र उन्हीं में शुमार हैं। वे कांग्रेस की समर्थक थीं। गरीब, व्यथित और वंचित समाज से हमदर्दी रखती थीं, जो उनकी कला में भी झलकता है। वे गांधीजी के दर्शन और जीवन-शैली से बहुत प्रभावित थीं।
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