अस्तित्व का संकट

अस्तित्व का संकट

विश्व में 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने और वैश्विक तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की जरूरत है। पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती औद्योगिक गतिविधियों से जैव-विविधता पर खतरा मंडरा रहा है।

यह मानव अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर सकता है। जैव विविधता किसी एक क्षेत्र में मौजूद विभिन्न प्रजातियों और इन प्रजातियों के पारिस्थितिक तंत्र की विविधता है। प्राकृतिक जैव विविधता का संरक्षण स्थिरता और सतत कृषि की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में से एक है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक दुनिया की अनुमानित अस्सी लाख वनस्पतियों और जीवों की प्रजातियों में से दस लाख विलुप्त होने के कगार पर हैं। वर्षा के बदलते पैटर्न और चरम मौसमी घटनाएं पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रही हैं तथा कई प्रजातियों के व्यवहार को बदल रही हैं।

वनों की कटाई, कृषि, शहरीकरण और अवसंरचना विकास जैसी मानवीय गतिविधियां प्राकृतिक पर्यावासों को हानि एवं विखंडन की ओर ले जा रही हैं जिससे कई प्रजातियों के लिए जीवित रहना और प्रजनन करना कठिन हो गया है।

मानव समाज के लिए यह एक बड़ी चेतावनी है। इसलिए जैव विविधता के संरक्षण पर विश्व समाज को सचेत होना जरूरी है। दुनिया की 70 प्रतिशत जैव विविधता केवल सत्रह देशों में पाई जाती है। इनमें भारत भी शामिल है। भारत वर्तमान में विश्व की मानव जनसंख्या का 17 प्रतिशत और जैव विविधता हॉटस्पॉट में वैश्विक क्षेत्र का 17 प्रतिशत रखता है, जो इसे जैव विविधता चैंपियन बनने में दुनिया का मार्गदर्शन करने के मामले में शीर्ष स्थिति प्रदान करता है।

मानवीय गतिविधियों पर लगाम लगाने के साथ जैव विविधता के संरक्षण हेतु समाज में भी जागरूकता पैदा करनी होगी, तभी हम जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर पाएंगे। एक विज्ञान-आधारित और समावेशी निगरानी कार्यक्रम  जैव विविधता संरक्षण से संबंधित कदमों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।

बहुत से लोग जैव विविधता के महत्व और मानव कल्याण के समर्थन में इसकी भूमिका के बारे में अनभिज्ञ हैं। मानव जाति और प्रकृति के बीच संबंधों को दोबारा स्थापित करने, जैव विविधता संरक्षण को मुख्य धारा का हिस्सा बनाने और निजी संसाधन व बाजार तंत्र का सहारा लेने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन, राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन, कारोबार से जुड़े समूह और जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है। साथ ही जैव विविधता के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों और संरक्षण के प्रयासों को और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।