अयोध्या : बाजार की भेंट चढ़ी शहर की एक और पहचान, मैजिस्टिक टॉकीज भी जमींदोज

अयोध्या : बाजार की भेंट चढ़ी शहर की एक और पहचान, मैजिस्टिक टॉकीज भी जमींदोज

अमृत विचार, अयोध्या । कभी शहर से गांव तक के बच्चे बूढ़े और नौजवान मनोरंजन के लिए घंटों इमारत के सामने लाइन लगाते थे। हालांकि समय बदला और बाजार की उठापटक में सिनेमा हॉल घाटे का सौदा साबित होने लगा तो तालाबंदी की नौबत आ गई। अब तो नवाबों के शहर की एक अहम पहचान रखने वाला सुभाषनगर स्थित मैजिस्टिक टॉकीज इतिहास बन गया है। बाजार की भेंट चढ़ा मैजिस्टिक हाल एक नया स्वरूप हासिल करने के लिए जमींदोज हो गया है।

तारीखें इतिहास पर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि आजादी के बाद पचास के दशक में रेडियो के बाद सिनेमा ही मनोरंजन का प्रमुख साधन था। उस दौर के लोग बताते हैं कि सिनेमा और चर्चित अपने मनपसंद अभिनेता-अभिनेत्रियों का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। सुभाष नगर स्थित मैजिस्टिक हाल अच्छे कारोबार का जरिया था और टिकट के लिए मालिक और मैनेजर से सिफारिश होती थी। कई वर्षों तक यहां मैरिज हाल की बुकिंग हुई तो सहालग के अलावा कभी जादू का शो आयोजित हुआ तो कभी फैक्ट्री सेल लगी।

पहले ही इतिहास बन चुका है पुष्पराज, तरंग और प्रभात

नवाबों की नगरी में मैजिस्टिक टॉकीज ही नहीं बल्कि बाजार की उठापटक में कभी चर्चा और मनोरंजन का केंद्र रहे अन्य सिनेमा हाल पुष्पराज, तरंग, प्रभात और कनक चित्र मंदिर भी इतिहास बन चुके हैं। पुष्पराज के बाद तालाबंदी का शिकार प्रभात सिनेमा हाल और कनक चित्र मंदिर का भवन तो अभी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है और अपने विरासत व इतिहास की गौरवमयी गाथा का मौन बखान कर रहा है, लेकिन पुष्पराज और तरंग का स्वरूप इतिहास में दफन हो चुका है तथा नया भूगोल अख्तियार कर नया इतिहास लिख रहा है।

तरंग हाल की जगह कामर्शियल कांपलेक्स बनकर तैयार है तो पुष्पराज वाली जगह पर भी नया कारोबार हो रहा है। प्रभात और कनक का स्वरूप भले ही न बदला हो लेकिन इनकी पहचान अन्य कारोबार से हो रही है। शहर में केवल सिनेमा के माध्यम से मनोरंजन के लिए पैराडाइज हाल बचा है।

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