प्रयागराज : संभावित हिंसा और कल्पना के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता

प्रयागराज : संभावित हिंसा और कल्पना के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता

अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि कथित धमकियों या हस्तक्षेप के आधार पर अदालत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आदेश पारित नहीं कर सकती है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की एकल पीठ ने विशेष न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, गाजियाबाद द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 29 के तहत दर्ज एक आपराधिक अपील में पारित आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। मामले के अनुसार श्रीमती बीनू शर्मा ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम की धारा 12 के तहत अपने पति, सास-ससुर, जेठ और जेठानियों के खिलाफ आरोप लगाते हुए थाना साहिबाबाद, गाजियाबाद में वर्ष 2019 में मामला दर्ज किया था।

विचारण न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पति-पत्नी गाजियाबाद के एक मकान में भूतल पर एक साथ रह रहे थे और परिवार के अन्य सदस्य ऊपर की मंजिल पर रहते थे। अतः केवल पति को पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा में लिप्त पाया गया था। शेष प्रतिवादियों के खिलाफ पीड़िता आरोप सिद्ध करने में विफल रही। इसी दौरान याची के पति धीरेंद्र कौशिक ने निचली अदालत के आदेश को रद्द करने की प्रार्थना करते हुए अपनी पत्नी के खिलाफ क्रॉस अपील दायर की।

अपीलकर्ता (पत्नी) ने विचारण न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ भी आदेश पारित करने की प्रार्थना की, जिस पर कोर्ट ने पाया कि महिलाओं को ऐसे व्यक्तियों से संरक्षित करने की आवश्यकता है, जो उनके खिलाफ घरेलू हिंसा करते हैं, लेकिन संभावित हिंसा और कल्पना के आधार पर किसी भी व्यक्ति को दोषी करार नहीं दिया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि अगर अदालतें कल्पना के आधार पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ घरेलू हिंसा के तहत कार्यवाही की अनुमति दे देती हैं तो यह बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति स्थापित करेगा, जिसके परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति शरारत या अन्य कारणों से किसी भी व्यक्ति के खिलाफ चाहे वह घरेलू रिश्ते में हो या ना हो, घरेलू हिंसा का आरोप लगा सकता है।

अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि परिवार के अन्य सदस्य, जो साझा घर में रहने के कारण उसके अधिकार में हस्तक्षेप करने की संभावना रखते हैं तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्यवाही की जा सकती है। इस आधार पर कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया।

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