लखनऊ के इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में आज भी मौजूद हैं दसवें गुरु के हस्तलिखित हुकुमनामा और निशान

लखनऊ के इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में आज भी मौजूद हैं दसवें गुरु के हस्तलिखित हुकुमनामा और निशान

वीरेंद्र पांडेय / लखनऊ,अमृत विचार। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के यहियागंज में स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का अपना ऐतिहासिक महत्व है। यही कारण है कि इस गुरुद्वारे को ऐतिहासिक गुरद्वारा भी कहा जाता है। यहां पर आज भी गुरु गोविंद सिंह जी के द्वारा भेजी गई श्री गुरु ग्रंथ साहिब मौजूद हैं। इस पर गुरु गोविंद सिंह जी के हस्ताक्षर भी हैं। इसके अलावा उनके द्वारा लिखे गये दो हुकमनामे भी रखे गये हैं। 

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इसी गुरुद्वारे में गुरुनानक जी के पुत्र बाबा गुरूदित्ता जी भी पहुंचे थे। बताया जा रहा है कि यह गुरुद्वारा उदासी संप्रदाय के लोगों ने स्थापित कराया था। साल 1670 में गुरु तेज्ञ बहादुर जी भी यहां आये और तीन दिनों तक इसी जगह पर रुके थे।

यह स्थान इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी जगह से लखनऊ में साल 1580 के करीब सिख धर्म का प्रचार प्रसार शुरू हुआ था। यानी की पहली बार सिखों के 6वें गुरु हरगोविंद सिंह जी महाराज के दो शिष्य चंद्रचूड़ और चोझड़ इसी स्थान पर पहुंचे थे।  

यहियागंज स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के जाचक ज्ञानी जगजीत सिंह ने बताया कि गुरु गोविन्द सिंह जी महराज साल 1672 में इस गुरुद्वारे में आकर रुके थे। वह यहां पर करीब दो महीने रहे। उसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी ने साल 1686 में हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब का स्वरूप भेजा। जो उनके शिष्यों ने लिखा था, उस पर गुरु गोविन्द सिंह जी के हस्ताक्षर आज भी देखे जा सकते हैं। 

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गुरु गोविन्द सिंह जी का हुकुमनामा
इसके बाद साल 1693 में गुरु गोविन्द सिंह जी का एक हुकुमनामा आया। जो उन्होंने खुद लिखकर लखनऊ भेजा था, वह हुकुमनामा आज भी यहां पर मौजूद है। जिसमें लिखा गया है कि सिख 5 तोला सोना और अपनी कमाई का दसवां हिस्सा लोगों की भलाई के लिए भेजें। गुरु की तरफ से भेजा गया यह हुकुमनामा सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण निर्देश था।

इसके बाद साल 1701 में जब मुगुलों से युद्ध शुरू हुआ। उस समय लखनऊ से तोप का कारीगर बुलाने के लिए दूसरा हुकुमनामा गुरु गोविन्द सिंह जी ने भेजा था। यह दोनों हुकुमनामा आज भी गुरुद्वारे में मौजूद है।

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