बरेली: लेब्रा और जर्मन शेफर्ड हिप डिस्प्लेसिया के शिकार, हेड लीमर बोन के जरिए हो रहा इलाज
दोनों नस्लों के कुत्तों को लंगड़ा बना रही है यह आनुवांशिक बीमारी, आईवीआरआई में बढ़ रहे हैं केस
बरेली, अमृत विचार। डॉग लवर्स की सबसे खास पसंद में शामिल जर्मन शेफर्ड और लेब्राडोर नस्ल के कुत्तों में आनुवांशिक बीमारियों के कारण शारीरिक रूप से अपंगता के मामले बढ़े हैं। आईवीआरआई वैज्ञानिकों के अनुसार हिप डिस्प्लेसिया नाम की बीमारी इसका कारण है जो दोनों नस्लों के कुत्तों को चलने-फिरने में कमजोर बना देती है। रेफरल वेटेनरी पॉलीक्लिनिक में लगातार इस तरह के केस आ रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमार के चलते लेब्राडोर और जर्मन शेफर्ड के हिप यानी कूल्हे के जोड़ ढीले हो जाते हैं, जिसकी वजह से वह लंगड़ाने लगता है। जोड़ पर इसका ज्यादा असर पड़ता तो उसका उठना- बैठना तक मुश्किल हो जाता है। रेफरल वेटेनरी पॉलीक्लिनिक में इस तरह के सप्ताह में दो से चार तक केस आ रहे है। तमाम लोग अपने कुत्तों का पॉलीक्लिनिक आकर लगातार इलाज करा रहे हैं।
हेड लीमर बोन के जरिए इलाज
आईवीआरआई में इस बीमारी से प्रभावित कुत्तों को ठीक करने के लिए हेड लीमर बोन के जरिये इलाज किया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी से बचाव के लिए दोनो ही नस्ल के कुत्तों के बीच क्रॉस के दौरान ही चिकित्सकीय परीक्षण जरूरी है। पहले ही बीमारियों को चिह्नित किए जाने से उसे रोका जा सकता है और बेहतर इलाज किया जा सकता है।
लेब्राडोर और जर्मन शेफर्ड हिप डिस्प्लेसिया का सबसे ज्यादा शिकार हैं। इन्हीं के सबसे ज्यादा केस पशु अस्पताल पहुंच रहे हैं। इनका इलाज किया जा रहा है---डॉ. अमरपाल, आरवीसी प्रभारी।
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