एएसआई ने ‘नालंदा महाविहार’ के आसपास अतिक्रमण को लेकर बिहार सरकार को लिखा पत्र 

एएसआई ने ‘नालंदा महाविहार’ के आसपास अतिक्रमण को लेकर बिहार सरकार को लिखा पत्र 

पटना। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बिहार के नालंदा जिले में विश्व धरोहर स्थल ‘नालंदा महाविहार’ के आसपास अतिक्रमण और इसके प्रति स्थानीय प्रशासन की कथित उदासीनता को लेकर बिहार सरकार को पत्र लिखा है। एएसआई के पटना सर्कल की अधीक्षण पुरातत्वविद गौतमी भट्टाचार्य ने बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव (एसीएस) हरजोत कौर बम्हरा को लिखे पत्र में कहा है, यदि स्थानीय प्रशासन को खाली भूमि को अपने पास रखना मुश्किल लगता है, तो इसके संरक्षण का जिम्मा एएसआई को सौंपा जा सकता है, ताकि उक्त स्थल का रखरखाव किया जा सके। भट्टाचार्य ने 21 जुलाई को लिखे पत्र में कहा है कि वर्तमान में एएसआई का क्षेत्राधिकार चहारदीवारी से परे खर्च की अनुमति नहीं देता है। 

आगे भट्टाचार्य ने कहा कि नालंदा में ‘नालंदा महाविहार’ और पुरातत्व संग्रहालय के आसपास बार-बार होने वाला अतिक्रमण विश्व धरोहर स्थल के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य (ओयूवी) और इसकी प्रामाणिकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिहाज से अच्छा संकेत नहीं है। सभी हितधारकों की संतुष्टि के लिए इस समस्या को जल्द से जल्द हल करने की जरूरत है, ताकि विश्व धरोहर स्थल की पवित्रता से समझौता न हो। बिहार की राजधानी पटना से लगभग 95 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित नालंदा महाविहार को प्राचीन काल के महानतम विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है। 

बताया जाता है कि इसकी स्थापना गुप्त वंश के कुमारगुप्त प्रथम (413-455 ई.) ने की थी। बिहार सरकार का कला, संस्कृति एवं युवा विभाग राज्य में ऐतिहासिक धरोहरों के महत्व और उनके संरक्षण के संबंध में जनता के बीच जागरूकता फैलाने और दिलचस्पी पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। पुरातात्विक उत्खनन, अन्वेषण, संरक्षण, प्रकाशन और गोष्ठियों के माध्यम से पुरातत्व के नये आयामों को प्रकाश में लाने का दायित्व भी इस विभाग पर है। भट्टाचार्य ने अपने पत्र में लिखा है। यह पत्र आपके संज्ञान में लाने के लिए है कि जुलाई 2016 में नालंदा महाविहार के उत्खनन अवशेषों को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किए जाते समय स्थानीय प्रशासन ने उसके आसपास के क्षेत्रों के संबंध में कुछ प्रतिबद्धताएं व्यक्त की थीं। इनमें विश्व धरोहर संपत्ति के लिए मुख्य मार्ग को बेहतर बनाने का प्रावधान प्रमुख था।

उन्होंने लिखा है कि विश्व धरोहर स्थल की चहारदीवारी के साथ-साथ सड़क के दूसरी ओर स्थित पुरातत्व संग्रहालय के किनारे रेहड़ी लगाने वाले विक्रेताओं को स्थानांतरित करना भी स्थानीय प्रशासन की प्रतिबद्धताओं में शामिल था, जिसके अनुपालन के लिए नालंदा के जिलाधिकारी को भी एक पत्र भेजा गया है। भट्टाचार्य ने कहा है कि दुर्भाग्य से, नालंदा महाविहार को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलने के आठ साल बाद भी निर्दिष्ट जगहों से रेहड़ीवालों का स्थानांतरण प्रतीक्षित है। सड़क के दोनों ओर रेहड़ीवालों की भीड़ इस स्थल के परिवेश को खराब कर रही है।

बताया जाता है कि विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलने से पहले यूनेस्को की टीम की यात्रा के दौरान इन रेहड़ीवालों को हटा दिया गया था, लेकिन वैकल्पिक जगह के अभाव में रेहड़ीवालों ने खाली जगह पर फिर से कब्जा कर लिया। पिछले साल, बिहार सरकार के मुख्य सचिव को भी यूनेस्को से जताई गई प्रतिबद्धता से अवगत कराया गया था। भट्टाचार्य ने पत्र में लिखा है, जब हमने जून में जी20 प्रतिनिधियों की नालंदा यात्रा से पहले इस मुद्दे को उठाया, तो नालंदा विहार के आसपास से अतिक्रमण हटा दिया गया। लेकिन जी20 प्रतिनिधियों की यात्रा पूरी होने के तुरंत बाद रेहड़ीवालों ने एक बार फिर वहां अतिक्रमण कर लिया। 

उन्होंने कहा कि हम बार-बार एक ही रास्ते पर नहीं चल सकते। इस समस्या का कोई स्थायी समाधान होना चाहिए। बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव ने इस मामले में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुझे अब तक अधीक्षण पुरातत्वविद (एएसआई, पटना सर्कल) का पत्र नहीं मिला है। लेकिन हम विश्व धरोहर स्थल की पवित्रता बनाए रखने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएंगे।

यह भी पढ़ें- क्रिकेट बूकी व्यापारी को चूना लगाकर दुबई भागा, 17 करोड़ कैश...14 KG गोल्ड और 200 KG चांदी बरामद